दिल्ली दंगल: बीजेपी के आंतरिक सर्वे से भाजपा चिन्तित
नई दिल्ली। बीजेपी की ओर से दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कराए गए सर्वे ने पार्टी की परेशानियां बढ़ा दी हैं। हाल ही में राजधानी में हुई पीएम नरेंद्र मोदी की रैली में उमड़ी कम भीड़ और ताजा सियासी हालात के मद्देनजर पार्टी की चिंताएं और बढ़ गई हैं। बीजेपी की ओर से कराए गए तीन इंटरनल सर्वे के आंकड़े बीजेपी की उम्मीद के विपरीत हैं। इन सर्वे में कहा गया है कि दिल्ली का अल्पसंख्यक वोट पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के खाते में जाने वाला है। वहीं, दलित वर्ग में भी बीजेपी के प्रति कोई खास रुझान देखने को नहीं मिल रहा है। जाहिर है, इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को होगा। बीते कुछ महीनों में बीजेपी की कमजोर होती जमीन को दुरुस्त करने के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने नई रणनीति बनाई है।
बीजेपी ने अब तक तीन इंटरनल सर्वे कराए हैं। इनमें दिसंबर की शुरुआत का सर्वे पार्टी की जीत का भरोसा दिलाता है। लेकिन उसके बाद आई रिपोर्ट्स ने पार्टी की चिंताएं बढ़ा दीं। दूसरा सर्वे दिसंबर के अंत में और तीसरा जनवरी के शुरुआत में कराया गया है। पहले सर्वे में 60 सीटों पर रिपोर्ट बीजेपी के फेवर में थी, जो दूसरे में घटकर 49 और तीसरे में 38 पर टिक गई है। बाद के सर्वे के मुताबिक, राजधानी के ज्यादातर मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो अच्छा मानते हैं, लेकिन दिल्ली के मामले में उनकी पहली पसंद केजरीवाल हैं। इसके अलावा, झुग्गी झोपड़ी और अनियमित कॉलोनियों में रहने वाला मतदाता भी आप से जुड़ रहा है, क्योंकि उसके वॉलिंटियर उनके सीधे संपर्क में हैं और जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं।
दिल्ली में 12 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जबकि पांच सीट मुस्लिम बहुल मतदाताओं वाली है। पार्टी के सर्वे के मुताबिक, भाजपा दलित और मुस्लिम बहुल करीब 17 से 18 सीटों पर कहीं भी सीधे तौर पर संघर्ष में नजर नहीं आ रही है। भाजपा की मुश्किलें अनियमित कॉलोनियों के मतदाताओं (करावल नगर, मटियाला और किराड़ी सीट) ने भी बढ़ाई हैं। इसके अलावा, जिन 29 सीटों पर भाजपा मजबूत है, उनमें से 26 सीटों पर जीत के लिए भाजपा को कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है। सर्वे के मुताबिक, दिल्ली चुनाव में भाजपा को 70 में से 49 सीटों पर आप से कड़ी चुनौती मिलेगी। इन सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। इनमें से पांच पूरी तरह से मुस्लिम मतदाता बाहुल्य, 12 दलित और 29 अनियमित कॉलोनियों वाले विधानसभा क्षेत्र हैं। तीन सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता सीधे तौर पर चुनावी नतीजों को प्रभावी करते हैं।
दिल्ली चुनाव के लिए बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट पर भरोसा करें तो प्रदेश नेतृत्व लगातार खिसक रहे दलित, मुस्लिम और सिख वोट बैंक के साथ झुग्गी बस्तियों और अनियमित कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के वोटबैंक को रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। इससे भाजपा आलाकमान प्रदेश नेतृत्व से खासा खफा बताया जा रहा है। यही वजह है कि किरण बेदी को पार्टी में शामिल करते हुए समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली इकाई के नेताओं को भाव तक नहीं दिया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इन सर्वेक्षणों पर गौर करने के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
दिल्ली चुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की सूची अब तक लटके रहने के पीछे एक मुख्य वजह इन सर्वे के नतीजे भी हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कड़े तेवर अपनाते हुए सिर्फ योग्य और लोकप्रिय दावेदारों को टिकट देना तय किया है। इसके अलावा, चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया के साथ जमीनी स्तर पर जनता के बीच जाकर ये मैसेज देने को कहा गया है कि दिल्ली में वही सरकार विकास करा सकेगी, जो केंद्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाए।