‘धन के साथ धर्म का होना अतिआवश्यक है’
लखनऊ: विश्व शांति एवं मानव कल्याण हेतु भव्य श्रीमद भागवत का आयोजन परम पूज्य शांतिदूत पंडित श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के पावन सानिध्य में रेल नगर , बंगला बाजार चौराहा में किया जा रहा है आज तृतीय दिवस के कथा प्रसंग को प्रारंभ करते हुए पूज्य ठाकुर जी ने कहा कि आज जिसके पास धन है कलयुग के मनुष्य उस धनवान को ही सम्पन समझते है लेकिन वो यह नहीं समझते की राज्य,धन-दौलत तो दुर्योधन के पास भी था पर वह धर्मात्मा नहीं था और अंत में उसका सर्वनाश हो गया। क्योंकि ये धन हमारी मति को फिरा देता है और हमें धर्म से अधर्म की ओर ले जाता है इसलिए धन के साथ धर्म का होना अतिआवश्यक है और धर्म करने के लिए हमें उस धन का कुछ हिस्सा भगवान के शुभ कार्यों में दान करना चाहिए।
धन की तीन गति होती हैं – 1.दान 2.भोग 3.नाश। दान धन की सबसे उत्तम गति है। भोग धन की मध्यम गति है जिससे हम सुख के संसाधन एकत्रित करते हैं। धन की तीसरी गति नाश के स्वरूप में होती है जो हमें मात्र और मात्र दुःख देकर जाती है। जिन्होंने पहले दान दिया है वो आज धनी हैं और जो दान देंगे वो भविष्य में धनी होंगे व दिया हुआ अहंकार से मुक्त दान कभी भी निष्फल नहीं जाता। महाराज जी ने बताया इस संसार की सभी वस्तुओं पर भले हम विजय प्राप्त कर लें लेकिन मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिस पर हम विजय प्राप्त नहीं कर सकते और यह जानते हुए भी हम दुनिया की मोहमाया के चक्कर में अपना पूरा जीवन बेकार कर देते हैं। आज हम ध्रुव और प्रह्लाद जैसे भक्तों को भूलते जा रहे हैं अगर हमें अपने धर्म को बचाना है तो अपने अन्दर ध्रुव व प्रह्लाद के जैसी भक्ति जगानी होगी और सच्ची भक्ति को जगाने के लिए पहले हमें भगवान पर विश्वास करना होगा और जिस दिन हमें भगवान पर विश्वास हो जायेगा उसी दिन से हमारे अंदर सच्ची भक्ति जाग्रत हो जाएगी।
आज ठाकुर जी ने ध्रुव जी महाराज की कथा भक्तों को श्रवण कराई और आज ही सभी भक्तों ने बामन भगवान की सुंदर झांकी के दर्शन कर अपने आपको धन्य किया। कथा के मुख्य यजमान ने सह-पत्नी बामन भगवान का पूजन कर महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। भिन्न-भिन्न स्थानों से पधारे हुए हजारों की संख्या में भक्तों ने कथा श्रवण कर अपने जीवन को धन्य किया।
आज महाराज जी ने बताया की हम सभी एक ही परमात्मा की संतान है और हम सभी सनातन धर्म के अनुयायी है सनातन धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है हम सभी को अपने धर्म के अनुसार बताये हुए मार्ग पर हुए सत्कर्म करना चाहिए और इंसानियत से सभी का धायण रखें चाहिए और ईश्वर प्राप्ति का केवल एक मार्ग है और वो है हरि की भक्ति , इतिहास गवाह है है की रसखान सूरदास मीरा सभी ने सिर्फ भक्ति से ईश्वर को प्राप्त किया अकबर भी बांके बिहारी के दोहे सुनने वृन्दावन जाते थे