मस्जिदों में सोशल डिस्टेसिंग का प्रयोग करते हुए करें नमाज़ अदा:सूफ़ियान क़ासमी
तौसीफ कुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।कोरोना वायरस कोविड-19 को लेकर मुस्लिम धर्मगुरु भी बहुत ही ज़्यादा सतर्क है कोरोना वायरस कोविड-19 के भारत में प्रवेश से ही इसके बचाव के प्रयास के साथ-साथ समय-समय पर अपीलें जारी कर देश दुनियाँ के लोगों को इससे बचने की सलाह दी यहाँ तक की इन्होंने अपने धार्मिक स्थलों को भी लगभग बंद सा कर दिया है मस्जिदों में नमाज़ अदा करने के लिए मात्र पाँच मुस्लिमों को ही नमाज़ अदा करने के लिए कहा गया जिसका मुस्लिमों ने पालन भी किया जो अभी तक जारी है इसी परिपेक्ष में क़ासमी ख़ानदान के चश्मों चिराग़ दारूल उलूम वक़्फ़ के मोहतमिम (कुलपति) हज़रत मौलाना सूफ़ियान क़ासमी ने एक अपील जारी कर दस बिंदुओं पर ख़ास तौर पर ज़ोर दिया है।हज़रत मौलाना सूफ़ियान क़ासमी का कहना है कि मुल्क का ख़ास व आम तबका इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ है कि मुल्क में कोविड-19 के क़हर का सिलसिला अभी तक जारी है उसी वजह से केन्द्र सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एहतियात बरतने की सलाह दी जा रही हैं लॉकडाउन में मिली छूट से इस महामारी में और तेज़ी आ रही हैं।लॉकडाउन में मिलने वाली छूट में धार्मिक स्थलों को भी छूट दी जाएगी हिकमत और मस्लेहत को देखते हुए अपनी और अपनों की हिफ़ाज़त को ध्यान में रखते हुए नमाज़ियों और मुतवल्लियों को चाहिए कि वह हर मुमकिन कोशिश करें जिससे इस बीमारी से ग्रसित न हो हमें ऐसे प्रयास करने होंगे।उन्होंने कहा कि एहतियाती कदमों पर अमल करते हुए इंसानों की हर तरह की हिफ़ाज़त करते हुए मुल्कों मिल्लत की मस्लेहत समेत हर मुसलमान का दीनी व मज़हबी फरीज़ी भी है।हज़रत मौलाना सूफ़ियान क़ासमी ने कहा कि मुसलमान मस्जिदों में जमात के वक़्त सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए दो नमाज़ियों के बीच में मुनासिब फासला रखना ज़रूरी है।मस्जिद में सिर्फ़ फ़्राइज़ की अदायगी करें बेहतर होगा कि सुन्नतें और नफले घर पर ही अदा करें ताकि आपसी मेल झोल ज़्यादा न हो।
मस्जिद में मास्क पहन कर आना और जब तक मस्जिद में रहे तब तक मास्क पहन कर रहना ज़रूरी और लाज़मी है इसका ख़ास तौर पर ध्यान रखना ज़रूरी है मुलाक़ात के वक़्त हाथ मिलाने और गले मिलने से परहेज़ किया जाए मस्जिद में आने जाने के वक़्त मुनासिब फ़ासला रखा जाए और इस दौरान जल्दबाज़ी से परहेज़ करें अजान और नमाज़ के दरमियान पाँच मिनट से ज़्यादा का टाईम न रखें मस्जिद के इमाम को ध्यान रखना ज़रूरी है कि वह नमाज़ पढ़ाते टाईम ज़्यादा समय न लगाए मस्लेहत को देखते हुए जुमे की नमाज़ में खुतबा मुख्तसर (छोटा) पढ़ाया जाए जिसके अहले नजर उलेमा ने इसी मस्लेहत के पेशेनजर मुख़्तसर मुरत्तब किया है जो किसी भी आलिम से राबता करके हासिल किया जा सकता है जबकि तक़रीर और खिताबत के सिलसिले को फ़िलहाल मुकम्मल तौर पर बंद रखा जाना ही बेहतर है जिसका मक़सद आपसी मेल झोल को कम से कम रखना ज़रूरी है यानी सोशल डिस्टेंसिग का पालन करना है। वुजू अपने घर से ही करके आना बेहतर रहेगा बेहतर होगा कि मस्जिद के ज़िम्मेदार वुजू खाने और गुस्ल खाने बंद रखे नमाज़ी अपनी-अपनी जानमाजे अपने घरों से लेकर आए (अगर किसी को फ़र्श पर नमाज़ अदा करने में दिक़्क़त हो) जबकि एहतियात के पेशे नज़र मस्जिद की सफ़ों को लपेट कर रख दिया जाए यानी सफ़ों का प्रयोग न करें।और मस्जिदों आम तौर पर रखी जाने वाली टोपियों का प्रयोग न करें यानी उनका नमाज़ पढ़ने में इस्तेमाल न किया जाए बेहतर तो यह है कि हर नमाज़ की अदायगी से पहले मस्जिदों के फ़र्श और दीवारों को सेनेटाइज किया जाए अगर पाँच वक़्त का एहतेमाम मुश्किल या ना मुमकिन हो तो कम से कम दिन में तीन मर्तबा फनाइल या डिटोल से धुलाई का एहतेमाम ज़रूर हो जाए और मुतवल्ली हजरात मस्जिदों के ख़ादिमों को इस काम की सहूलियात व ज़रूरियात को फ़राहाम करते हुए इस खिदमत के लिए मुतअय्यन लोगों को इस तरफ़ मुतवज्जेह फर्माए मस्जिद में जमात से पहले या बाद में गैर ज़रूरी उठने बैठने से परहेज़ किया जाए।ताकि किसी भी तरह से एतराज़ का कोई मौक़ा न रहें इसी हवाले से इन एहतियाती ज़रूरी कदमों पर ज़ोर दिया जा रहा है।(तिलका अश रतुल कामिला) अल्लाह ताला पर भरोसा का तक़ाज़ा भी यही है कि जाहिरी तमाम असबाब को अख़्तियार करते हुए नबी ए करीम स अ व सल्लम की मुजर्रब दुआ अल्लाह हुम्मल हाज़ल जहदा वा अलाईकल तकलान पढ़कर तमाम नताइज अल्लाह ताला के सुपुर्द कर दिया जाए इंशा अल्लाह यक़ीन है कि अल्लाह ताला की जानिब से ख़ैर ज़हूर होगा।