असहिष्णुता का शिकार: बी. आर. अंबेडकर
एम. ओ. मथाई, नेहरू के निजी सचिव
मेरे एक मित्र पी.के. पणिकर जो संस्कृत के विद्वान और गहरे धार्मिक थे के माध्यम से, बी. आर. अंबेडकर मुझ में दिलचस्पी लेने लगे। मैंने पणिकर को अंबेडकर के प्रति अपनी राय के बारे में बताया था, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा था कि वह एक महान व्यक्ति होने के लिए एक इंच कम हो गए, क्योंकि वह कड़वाहट से पूरी तरह ऊपर नहीं उठ सके। हालांकि, मैंने कहा कि किसी को भी उन्हें दोष देने का कोई अधिकार नहीं है, जीवन भर उन्हें जो अलगाव और अपमान सहना पड़ा उसे देखते हुए। पणिकर जो अंबेडकर के पास बार बार आते थे, ने जाहिर तौर पर उन्हें यह सब बताया। रविवार की सुबह अंबेडकर ने मुझे फोन किया और शाम को चाय के लिए कहा। उन्होंने कहा कि उन्होंने पणिकर से भी पूछा था। मैं नियत समय पर आ गया।
दुआ सलाम के बाद, अंबेडकर ने अच्छे अंदाज में मुझसे कहा, ”तो आपने मुझ में दोष पाया है, लेकिन मैं आपकी आलोचना को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ।“ फिर उन्होंने छुआछूत की बात की। उन्होंने कहा कि गांधी के अभियानों की तुलना में रेलवे और कारखानों ने अस्पृश्यता की समस्या से निपटने में अधिक प्रयास किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अछूतों की वास्तविक समस्या आर्थिक थी न कि ‘मंदिर प्रवेश’, जैसाकि गांधी ने वकालत की थी।
अंबेडकर ने कहा, ’हमारा संविधान निस्संदेह कागज पर छुआछूत को समाप्त कर देगा; लेकिन वह भारत में कम से कम सौ साल तक वायरस के रूप में रहेगा। यह लोगों के मन में गहराई से समाया हुआ है।‘ उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में दासता को याद किया और कहा, नीग्रो की स्थिति में सुधार 150 साल के बाद भी धीमा है।‘ मैंने कहा कि मैं उनसे पूर्णतया सहमत हूँ और अपनी माँ की कहानी सुनाई। अपने पीछे ईसाई धर्म के लगभग 2000 वर्षों के इतिहास के बावजूद, उन्होंने पंडित मदन मोहन मालवीय के समान दृढ़ विश्वास के साथ अस्पृश्यता का अनुपालन किया। वह एक हरिजन (अछूत) को गर्मियों में हमारे कुएं से पानी निकालने की अनुमति नहीं देती थीं, जब पानी की आम तौर पर कमी होती थी। अगर कोई अछूत उसके पास बीस फीट के भीतर आ जाए तो वह नहाने के लिए दौड़ती थी।
तब अंबेडकर ने गर्व से कहा, ’ हिंदुओं को वेद चाहिए थे, और उन्होंने व्यास को बुला भेजा, जो हिन्दू जाति के नहीं थे। हिन्दू एक महाकाव्य चाहते थे और उन्होंने वाल्मीकि को बुला भेजा , जो एक अछूत था। हिन्दू एक संविधान चाहते हैं, और उन्होंने ने मुझे बुला भेजा है।‘ उन्होंने कहा, ‘भारत में हिन्दी पट्टी की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि उत्तरी क्षेत्र के लोगों ने वाल्मीकि को त्याग दिया और तुलसी दास की स्थापना कर दी।‘ उन्होंने विचार व्यक्त किया कि इस विशाल क्षेत्र के लोग तब तक पिछड़े और अड़ियल बने रहेंगे जब तक वे वाल्मीकि द्वारा तुलसी दास की जगह ले नहीं लेते। उन्होंने याद दिलाया कि, वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ‘जब राम और लक्ष्मण भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे, तो ऋषि ने कुछ बछड़ों को इकट्ठा किया, ताकि दावत के लिए वध किए जा सकें। इसीलिए राम और उनके दल को बीफ (गोमांस) खिलाया गया, पर तुलसीदास ने यह सब काट डाला। मैंने उनसे कहा कि वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र में यह निर्धारित किया कि युवा जोड़ों को शादी से छह महीने पहले बीफ खिलाया जाना चाहिए।
अंबेडकर ने मुझ पर उंगली उठाई और कहा, ‘आप मलयाली लोगों ने इस देश का सबसे बड़ा नुकसान किया है।‘ मैं चौक गया और उनसे पूछा कि कैसे। उन्होंने कहा, ’आप लोगों ने उस आदमी (शंकराचार्य) को, जो तर्कशास्त्र में एक शुष्क विशेषज्ञ था, इस देश से बौद्ध धर्म को भगाने के लिए उत्तर की ओर एक पदयात्रा पर भेजा।‘ अंबेडकर ने कहा कि बुद्ध भारत की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि थे। उन्होंने यह भी कहा कि हाल की शताब्दियों में भारत ने जो सबसे महान व्यक्ति पैदा किया, वह गांधी नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद थे। मैंने अंबेडकर को याद दिलाया कि, ‘यह गांधी ही थे जिन्होंने नेहरू को सुझाव दिया था कि वे आपको अपनी सरकार में शामिल होने के लिए आमंत्रित करें।‘ उनके लिए यह खबर थी। मैंने यह कह कर अपने बयान में संशोधन किया कि यह विचार गांधी और नेहरू को एक साथ आया। अंबेडकर ने ही संविधान सभा में विधेयक पेश किया था।
अंबेडकर ने मुझे विश्वास दिलाया था कि उन्होंने बौद्ध बनने का फैसला किया है। जब तक उन्होंने दिल्ली नहीं छोड़ी, तब तक अंबेडकर मेरे संपर्क में रहे। वह एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे जो भारतीय लोगों के आदर के बड़े पैमाने पर हकदार थे।
(सौजन्य से:- एम. ओ. मथाई, Reminiscences of the Nehru Age, 1978, विकास पब्लिशिंग हॉउस प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ 24-25)
साभार: अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: बौद्ध धर्म प्रचारक, मासिक पत्रिका