पूर्व राज्यपाल राम नाईक पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के लिये ‘साहित्य शिरोमणि पुरस्कार’ से सम्मानित
हिन्दी-उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी द्वारा किया गया आनलाइन सम्मान समारोह का आयोजन
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक को आज हिन्दी-उर्दू साहित्य कमेटी, लखनऊ द्वारा आयोजित ‘रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी 20वें अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन’ में पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ के लिये साहित्य जगत के विख्यात ‘साहित्य शिरोमणि पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कोविड-19 के दृष्टिगत आनलाइन किया गया था|
पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने फिराक गोरखपुरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर होने के बावजूद भी उन्होंने उर्दू साहित्य में महान रचनाएं की एवं अपनी पहचान बनाई। श्री नाईक ने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं आपस में बहनें हैं। भाषा एक इंसान से दूसरे इंसान को जोड़ने तथा आपसी प्रेम एवं भाईचारे को बढ़ाने का काम करती हैं। भारतीय दर्शन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को आत्मसात किया गया है जिसका अर्थ है संपूर्ण विश्व एक परिवार है। श्री नाईक ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वापजेयी जी ने ‘जय जवान-जय किसान’ में ‘जय विज्ञान’ जोड़कर देश को विकास की राह दिखायी थी। आज का कार्यक्रम उसी विज्ञान की देन है कि वे मुंबई से समारोह में शामिल हैं तो आयोजकगण दिल्ली एवं लखनऊ से जुड़े हुए हैं और सैकड़ों जगह के लोग उन्हें सुन रहे हैं।
श्री नाईक ने पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ पर प्रकाश डालते हुए बताया कि दिसम्बर 2014 में महाराष्ट्र के 80 वर्ष पुराने प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘सकाळ’ के आग्रह पर वे अपनेे राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के संस्मरण लिखने लगे। मराठी भाषा में एक वर्ष तक 27 संस्मरण लिखने के बाद उन्होंने विराम लिया। परन्तु मित्रों और शुभचिंतकों को उनके संस्मरण इतने पसंद आये कि उन्होंने उसे पुस्तक के रूप में संकलित करने का आग्रह किया। संस्मरणों को संकलित कर पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ का प्रकाशन इंकिंग इनोव्हेशन द्वारा किया गया जिसका विमोचन 25 अप्रैल 2016 को मुंबई में हुआ। मराठी भाषा में मिले समर्थन को देखते हुए पुस्तक का प्रकाशन गुजराती, हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओं में 9 नवम्बर 2016 को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, उप राष्ट्रपति डाॅ0 मो0 हामिद अंसारी, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री एम0 वैंकेया नायडु एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्री शरद पवार की उपस्थिति में हुआ। पुस्तक के संस्कृत संस्करण का विमोचन संस्कृत नगरी वाराणसी में 26 मार्च 2018 को राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द के कर कमलों से हुआ। पुस्तक के सिंधी संस्करण का लोकार्पण 21 फरवरी 2019 को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा असमिया संस्करण का लोकार्पण 6 जुलाई 2019 को असम के राज्यपाल श्री जगदीश मुखी द्वारा गुवाहाटी में हुआ।
श्री नाईक ने बताया कि पुस्तक तीन विदेशी भाषाओं अरबी, फारसी तथा जर्मन में भी अनुवादित होकर प्रकाशित हुई। अरबी-फारसी भाषा का लोकार्पण 22 फरवरी 2019 को नई दिल्ली में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर तथा जर्मन अनुवाद का लोकार्पण डाॅ0 विनय सहस्रबुद्धे द्वारा 30 जून 2019 को किया गया। पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ का दृष्टिहीन दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि में हिंदी, मराठी, अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशन नेशनल असोसिएशन फॉर द ब्लाइंड संस्थान द्वारा किया गया, जिसका लोकार्पण मुंबई में 27 जून, 2019 को महाराष्ट्र के मा0 मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस ने किया। इन पुस्तकों का प्राक्कथन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मा0 सरसंघाचालक डॉ0 मोहन भागवत ने लिखा हैं। शीघ्र ही पुस्तक ‘चरैवेति!चरैवेति!!’ का कश्मीरी, बांग्ला, तमिल तथा नेपाली भाषा में भी प्रकाशन होना प्रस्तावित है।
श्री नाईक ने कहा कि पुस्तक उनके लंबे राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन के संस्मरणों की मंजूषा है। राजनैतिक एवं सामाजिक कार्य करने वालों का जीवन पारदर्शी होना जरुरी है। पुस्तक के माध्यम से उन्होंने अपने अंदर के द्वार पाठकों के समक्ष खोल कर रख दिए हैं। उनके चिंतन और कार्य का परिणाम है कि मित्रों और शुभ चिन्तकों ने राजभवन में राज्यपाल के रूप में किये गये कार्यों और संस्मरणों के भी चरैवेति!! प्रकाशन का अनुरोध किया गया है। उन्होंने इस नयी चुनौती को स्वीकार किया है, पर यह कार्य बिना जनता के स्नेह व सहयोग के संभव नहीं, क्योंकि राजनीति के सफर का कोई अंत नहीं होता।
हिन्दी-उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी के महासचिव अतहर नबी ने बताया कि हिन्दी-उर्दू भाषाओं के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन के लिये समिति पिछले 40 वर्षों से कार्य कर रही है। आज का समारोह उर्दू के विख्यात साहित्यकार फिराक गोरखपुरी के व्यक्तित्व पर आधारित है, जिसमें पूर्व राज्यपाल को हिन्दी-उर्दू भाषा में सेतु के रूप में कार्य करने के लिये ‘साहित्य शिरोमणि पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।