उत्तर प्रदेश का सच और विकास के झूठे दावे
लगभग 25 करोड़ जनसंख्या और 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश के बारे में
उत्तर प्रदेश (2011 की जनगणना के अनुसार)
क्षेत्रफल 240928 वर्ग किमी, जनसंख्या घनत्व 829 प्रति वर्ग किमी।
कुल जनसंख्या 199812341, पुरूष 104480510, महिला 95331831
ग्रामीण जनसंख्या 155317278, नगरीय 44495063
अनुसूचित जाति 41357608, अनुसूचित जनजाति 1134273।
कुल ब्लाक 827 व कुल ग्राम पंचायतें – 59168 (स्रोत- मनरेगा की वेबसाइट से)
नगर निगम – 17, नगर पालिका – 199, नगर पंचायतें – 544
कुल पुलिस जोन – 08, पुलिस आयुक्त – 07 (स्रोत- यूपी पुलिस की वेबसाइट से)
प्रदेश की प्रमुख भाषा – हिन्दी (94.08 प्रतिशत) व उर्दू (5.42 प्रतिशत) है।
प्रदेश में धर्मों के अनुसार जनसंख्या
हिन्दू-159312654 (79.7 प्रतिशत), मुस्लिम-38483967 (19.3 प्रतिशत), ईसाई-356448 (00.2 प्रतिशत), सिक्ख-643500 (00.3 प्रतिशत), बौद्ध-206285 (00.1प्रतिशत), जैन-213267 (00.1 प्रतिशत), अन्य तथा अवर्णित धर्म-596220 (00.3 प्रतिशत)
साक्षरता दर 57.2 प्रतिशत
नोट:- 2021 में प्रदेश में जनगणना होनी थी लेकिन हुई नहीं। इसलिए 2011 की जनगणना के अनुसार ये आंकड़ें दिए गए हैं।
जमीन का वितरण उत्तर प्रदेश में
कुल जोतें 2.38 करोड़, क्षेत्रफल 1.74 करोड़ हेक्टेयर
1 हेक्टेयर से कम 1.91 करोड़ (80.2 फीसद), क्षेत्रफल 0.73 करोड़ हेक्टेयर (41.8 फीसद)
1-2 हेक्टेयर 0.30 करोड़ (12.6 फीसद), क्षेत्रफल 0.42 करोड़ हेक्टेयर (23.9 फीसद)
2-4 हेक्टेयर 0.13 करोड़ (5.5 फीसद), क्षेत्रफल 0.66 करोड़ हेक्टेयर (20.4 फीसद)
4-10 हेक्टेयर 3.77 लाख (1.6 फीसद), क्षेत्रफल 0.21 करोड़ हेक्टेयर (11.9 फीसद)
10 हेक्टेयर से ज्यादा 23 हजार (0.1 फीसद), क्षेत्रफल 3.43 लाख हेक्टेयर (2 फीसद)
सीमांत किसान 1.91 करोड़, लघु 30.08 लाख, कृषि श्रमिक 97.50 लाख
(स्रोत- राजस्व परिषद् उत्तर प्रदेश एवं भारतीय जनगणना 2011)
भूमि उपयोग 2018-19 (स्रोत- कृषि सांख्यिकी एवं फसल निदेशालय उत्तर प्रदेश)
समग्र क्षेत्रफल 2.42 करोड़ हेक्टेयर
वास्तविक बोया गया क्षेत्रफल 1.65 करोड़ हेक्टेयर
एक से अधिक बोया गया क्षेत्रफल 1.03 करोड़ हेक्टेयर
वन 17.15 लाख हेक्टेयर
ऊसर और खेती के अयोग्य 4.82 लाख हेक्टेयर
स्थायी चारागाह एवं अन्य चराई की भूमि 70 हजार हेक्टेयर
अन्य वृक्षों, झाड़ियों आदि की भूमि 2.69 लाख हेक्टेयर
वर्तमान परती 9.87 लाख हेक्टेयर
अन्य परती 5.94 लाख हेक्टेयर
शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल से शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल 1.43 करोड़ हेक्टेयर है।
नहर से 21.74 लाख हेक्टेयर (15.2 प्रतिशत), नलकूप 1.06 करोड़ हेक्टेयर (74.6 प्रतिशत) इसमें राजकीय नलकूप की संख्या 34401, कुएं 12.58 लाख हेक्टेयर (8.8 प्रतिशत), तालाब एवं झील आदि 86 हजार हेक्टेयर (0.6 प्रतिशत), अन्य 1.14 लाख (0.8 प्रतिशत)।
लगभग 13 प्रतिशत खेती मानसून पर अभी भी पूरी तौर पर निर्भर है।
2020 जलवायु व वर्षा
उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है, मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 94 सेमी है, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 84 सेमी है। प्रदेश के बुदेलखण्ड़ में औसत वार्षिक वर्षा 80 सेमी है लेकिन इधर के वर्षों में बरसात में गिरावट दिखी है।
वनाधिकार कानून के तहत दावों और निस्तारण की स्थिति:
सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, ललितपुर, चित्रकूट, बहराइच, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी, गोरखपुर, महाराजगंज, गोण्डा, बिजनौर, सहारनपुर में अनुसूचित जनजाति और वनाश्रितों के 93430 दावे थे जिसमें से सरकार ने 74538 दावे (80 फीसदी) निरस्त कर दिए।
(स्रोत – जनजाति कल्याण निदेशालय, उत्तर प्रदेश द्वारा 2019 में प्राप्त)
सहकारिता
प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समितियां 2020-21
संख्या 7479, सदस्यता 13369 हजार, अंश पूंजी 86844 लाख रुपए, अल्पकालीन वितरित ऋण 708559 लाख रुपए, नकद 596741 लाख रुपए, वस्तु के रूप में 111818 लाख रुपए
शीर्ष सहकारी समितियां – शीर्ष सहकारी समितियों में उ0 प्र0 कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड़, उ0 प्र0 कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड, उ0 प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक, उ0 प्र0 राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, उ0 प्र0 राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी लिमिटेड़, यूपी कोआपरेटिव यूनियन लिमिटेड, उ0 प्र0 उपभोक्ता सहकारी संघ लिमिटेड आदि आते हैं।
ऋण समितियां – संख्या 2 सदस्यता 1457 हजार
गैर ऋण समितियां – संख्या 7 सदस्यता 5 हजार
उत्तर प्रदेश में सहकारी बैंकों की प्रगति
उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड – संख्या 1 सदस्यता 61
उत्तर प्रदेश सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक – संख्या 1 सदस्यता 1457 हजार
जिला केंद्रीय सहकारी बैंक – संख्या 50 सदस्यता 20 हजार
(स्रोत- आयुक्त एवं निबंधक, सहकारिता विभाग उत्तर प्रदेश)
प्रारंभिक सहकारी दुग्ध समितियां – संख्या 8578 सदस्यता 3.70 लाख
दुग्ध संघों एवं संस्थाओं की अंश पूंजी 11104 लाख रुपए
दुग्ध संघों के माध्यम से दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का विक्रय
दुग्ध 78662 लाख रुपए
दुग्ध उत्पाद 13060 लाख रुपए
(स्रोत- दुग्ध आयुक्त उत्तर प्रदेश)
बैंकिंग/वित्तीय 31.3.2021
बैंक कार्यालय
उत्तर प्रदेश – 17666, प्रति बैंक कार्यालय में जनसंख्या 13 हजार
भारत – 150207, प्रति बैंक कार्यालय में जनसंख्या 9 हजार
अनुसूचित व्यवसायिक बैंकों का ऋण जमा एवं उनका अनुपात
ऋण 525691 करोड़ जमा 1287176 करोड़, अनुपात 40.84 फीसद
(स्रोत- संस्थागत वित्त बीमा एवं वाह्य अनुदानित परियोजना महानिदेशालय, उत्तर प्रदेश)
आॅगनाइजेशन फार इकोनामिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार देश में 2000 से 2016-17 के बीच किसानों को उनकी फसल का उचित दाम न मिलने से 45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है।
उत्तर प्रदेश के किसान परिवार की मासिक आमदनी 8061 रूपये
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय 10218 रूपये है।
(स्रोत-एनएसओ रिपोर्ट 2019)
(नोट – 2013 की एनएसओ रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में एक किसान परिवार की मासिक औसत आय सिर्फ 4,923 रुपये है। यह राष्ट्रीय स्तर पर किसान परिवारों की औसत आय 6,223 रुपये का लगभग तीन चैथाई है। पंजाब में किसान परिवारों की 13,311 रुपये, केरल और हरियाणा क्रमशः 11,008 रुपये और 10,637 रुपये थी। जबकि बिहार 5,485 रुपये और पश्चिम बंगाल में 5,888 रुपये से भी उत्तर प्रदेश में किसान परिवारों की आय कम थी।)
उत्तर प्रदेश का चीनी में 30 प्रतिशत, खाद्यान्न 21 प्रतिशत, फल 10.8 प्रतिशत, सब्जी उत्पादन में 15.4 प्रतिशत, दुग्ध उत्पादन व डेयरी में 16 प्रतिशत उत्पादन में योगदान है। राष्ट्रीय कृषि निर्यात में उत्तर प्रदेश का योगदान 7.35 प्रतिशत है। जबकि देश के कुल निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 4.73 प्रतिशत है। इसमें प्रमुख उत्पादों में गेहूं 37.88 प्रतिशत, भैंस मांस 50.34 प्रतिशत, प्राकृतिक शहद 26.59 प्रतिशत, ताजे आम 4.12 प्रतिशत, अन्य ताजे फलों में 15.84 प्रतिशत, दुग्ध उत्पाद 13.31 प्रतिशत, गैर बासमती चावल 4.02 प्रतिशत, बासमती चावल 3.21 प्रतिशत, पुष्प कृषि उत्पाद 0.57 प्रतिशत, प्रसंस्कृत फलों और मेवे आदि 0.51 प्रतिशत कुल निर्यात में योगदान है। 2021-22 में कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात 4.02 लाख करोड़ रूपये पहुंच गया है। प्रदेश में कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 26 प्रतिशत है जबकि जीविका के लिए आबादी का करीब 60 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
देश की जीडीपी 2022-23, 258 लाख करोड़
उत्तर प्रदेश की जीडीपी 2022-23, 20.48 लाख करोड़
प्रति व्यक्ति आय
राष्ट्रीय 2021-22 – 172761 रुपये एवं उत्तर प्रदेश 81398 रूपये
उत्तर प्रदेश में सेक्टरवाईज जीडीपी शेयर
कृषि – 26 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग 25 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र 49 प्रतिशत
राष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी सेक्टरवाईज शेयर
कृषि 17 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग 30 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र 53 प्रतिशत
प्रमुख खण्डवार सकल घरेलू उत्पाद की हिस्सेदारी वर्ष 2019-20 (प्रचलित भावों पर)
कृषि, वानिकी एवं मत्स्यन का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा
उत्तर प्रदेश – 382597.15 करोड़, राष्ट्रीय – 3394033 करोड़
खनन और उत्खनन – उत्तर प्रदेश – 13118.28 करोड़, राष्ट्रीय – 355833 करोड़
विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) – उत्तर प्रदेश – 168577.82 करोड़, राष्ट्रीय – 2712269 करोड़
विद्युत, गैस तथा जल सम्पूर्ति एवं अन्य उपयोगी सेवाएं – उत्तर प्रदेश – 39231.99 करोड़, राष्ट्रीय – 483644 करोड़
निर्माण कार्य – उत्तर प्रदेश – 166687.32 करोड़, राष्ट्रीय – 1368638 करोड़
सेवा क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा
1.व्यापार, मरम्मत, होटल एवं जलपान गृह – उत्तर प्रदेश – 163387.09 करोड़, राष्ट्रीय – 2323632 करोड़
2. परिवहन, संग्रहण तथा संचार – उत्तर प्रदेश – 121414.96 करोड़, राष्ट्रीय – 1156608 करोड़
3. वित्तीय सेवा – उत्तर प्रदेश – 58790.40 करोड़, राष्ट्रीय – 1052827 करोड़
4. अचल संपदा, आवास गृहों का स्वामित्व तथा व्यवसायिक सेवाएं – उत्तर प्रदेश – 225344.21 करोड़, राष्ट्रीय – 2863021 करोड़
5. लोक प्रशासन और रक्षा – उत्तर प्रदेश – 109457.65 करोड़, राष्ट्रीय – 1169949 करोड़
6. अन्य सेवाएं – उत्तर प्रदेश – 102171.54 करोड़, राष्ट्रीय – 1580888 करोड़
(स्रोत – अर्थ एवं संख्या विभाग की डायरी से)
मैन्यूफैक्चरिंग
प्रदेश की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 25 फीसद है जोकि हाल के वर्षों में करीब 28 फीसद थी, इस तरह मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों की संख्या की दृष्टि से (लगभग 90 लाख, 14.2 प्रतिशत कुल संख्या का) उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। देश भर में करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है इसमें उत्तर प्रदेश में 1.65 करोड़ है। रोजगार प्रदान करने में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम (एमएसएमई) सेक्टर का कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा स्थान है। राष्ट्रीय स्तर पर एमएसएमई सेक्टर का जीडीपी में 8 प्रतिशत व मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन में 45 प्रतिशत और निर्यात में 40 प्रतिशत योगदान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एमएसएमई ईकाइयों के पुनर्जीवन और मजबूत बनाने के नीति के तहत 2017-22 अवधि में 253402 करोड़ लोन दिया गया। लेकिन अभी भी यह सेक्टर संकटग्रस्त स्थिति में है। प्रदेश में बुनकरी और सूती वस्त्र उद्योग 90 के दशक से ही संकटग्रस्त था, इसके बाद नोटबंदी, जीएसटी व लाक डाउन नेे इस सेक्टर की कमर तोड़ दी। इसके पुनर्जीवन के लिए लोन मुहैया कराने जैसे कदम नाकाफी हैं। तकनीक और बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आजीविका के अन्य साधनों के अभाव से कुटीर उद्योगों में भी लोग जुड़े हुए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर सर्वे में देखा गया है कि लोगों की आय में तेजी से गिरावट आई है।
उदाहरणार्थ इस सेक्टर के कुछ प्रमुख उत्पादों के संबंध में दी गई जानकारी इस सेक्टर की समस्या व जटिलता को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
अलीगढ़ में ताला उत्पादन के करीब 6400 मध्यम यूनिट और 3,000 कुटीर उद्योग हैं और इनमें करीब 2 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। देश का करीब 80 फीसदी ताला अलीगढ़ में ही बनता है। कई देशों में निर्यात भी किया जाता है। यहां का ताला उद्योग कारोबार करीब 4,000 करोड़ रुपये का है। लेकिन जीएसटी, नोटबंदी व कोरोना महामारी के बाद संकटग्रस्त है खासकर कुटीर उद्योग।
वाराणसी में बनारसी साड़ी का सालाना कारोबार 2400 करोड़ का है, इसमें प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सात लाख लोगों की आजीविका जुड़ी है। यह कारोबार भी संकटग्रस्त है।
प्रदेश में कालीन उद्योग में 15-20 लाख लोग जुड़े हैं। इसमें दो से ढाई लाख बुनकर व मजदूर शामिल हैं। भदोही जनपद में ही 800 से अधिक कालीन कारखानों में विभिन्न प्रांतों के करीब डेढ़ लाख से अधिक बुनकर काम करते हैं। बुनकरी कारोबार सर्वाधिक संकटग्रस्त है।
आगरा में करीब सात हजार छोटे जूता कारखाने हैं। यह देश के जूता कारोबार की 65 फीसद मांग को पूरा करता है। करीब 15 हजार करोड़ रुपये का वार्षिक टर्नओवर है। लेकिन यह कारोबार भारी संकट में है।
उत्तर प्रदेश में समय-समय पर बाहर से पूंजी लाने के लिए उद्यमियों की इंवेस्टर्स मीट और निवेश की खूब चर्चा होती है। फरवरी 2018 की लखनऊ में आयोजित इंवेस्टर्स मीट में ही 4.28 लाख करोड़ रुपये के 1045 निवेश प्रस्ताव सरकार को सौपें थे। जबकि सरकारी आंकडे़ को ही अगर माना जाए तो वास्तव में अभी तक 51240 करोड़ रूपये का ही निवेश प्रदेश में हुआ है। सन 2023 में भी बड़े इंवेस्टर्स मीट की चर्चा सरकार चला रही है जिसमें 10 लाख करोड़ रूपये के निवेश की बात हो रही है। मीडिया की खबरों और पुराने विदेशी निवेश के अनुभव के आधार पर लोगों को यह लग रहा है कि निवेश के नाम पर सरकार के मंत्री और अफसर विदेश के दौरों पर हैं। वास्तविक निवेश की अभी तक कोई तस्वीर उभर कर नहीं आयी है।
उत्तर प्रदेश में महज 5616 स्टार्टअप का पंजीकरण कराया गया है, जिसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें कितने क्रियाशील हैं और उनमें पूंजी निवेश की क्या स्थिति है। इसमें भी अधिकांश नोयडा, गाजियाबाद व लखनऊ में हैं।
कुछ प्रमुख जिलों का पंजीकरण
गौतम बुद्ध नगर- 1899, लखनऊ- 907, गाजियाबाद- 867, कानपुर-268, वाराणसी-197, आगरा-178, मेरठ-150, इलाहाबाद-127, गोरखपुर-89, बरेली-62।
देश के समस्त निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 4.73 प्रतिशत है जबकि जीडीपी में हिस्सेदारी करीब 8 प्रतिशत है और जनसंख्या में हिस्सेदारी 15.98 प्रतिशत है।
रोजगार
उत्तर प्रदेश में नवंबर 2022 में श्रम शक्ति भागीदारी दर 33.50 प्रतिशत थी। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह 39 प्रतिशत रही। दरअसल बेरोजगारी के आंकड़ों से आजीविका संकट का संपूर्ण परिदृश्य स्पष्ट नहीं होता है। इसकी वास्तविक स्थिति श्रम भागीदारी दर और लोगों की आय से समझी जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी रेखा के नीचे 22 प्रतिशत जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत नीति आयोग द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक में 37.79 फीसद है जोकि बिहार 51.91 फीसद, झारखंड 42.16 फीसद के बाद तीसरे स्थान पर है।
बजट का विवरण
केन्द्र सरकार का बजट 2022-23, 39.45 लाख करोड़ रूपये।
उत्तर प्रदेश बजट 2022-23, 6.15 लाख करोड़ रूपये।
प्रदेश में राजकोषीय घाटा – 81178 करोड़ रूपये, जोकि राज्य जीडीपी का 3.96 प्रतिशत है।
देश में राजकोषीय घाटा – 1661196 करोड़ रूपये जोकि जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है।
उत्तर प्रदेश बजट 2022-23 में प्रमुख सेक्टरवाईज खर्च
शिक्षा – 75165 करोड़ (12.2 प्रतिशत बजट शेयर) यह सभी राज्यों द्वारा शिक्षा के लिए औसत आवंटन (15.2 प्रतिशत) से कम है।
स्वास्थ्य – 40991 करोड़ (6.67 प्रतिशत बजट शेयर है।) नीति आयोग के अनुसार स्वास्थ्य रैकिंग में केरल पहले नम्बर, बिहार 18 वें और उत्तर प्रदेश 19 वें नम्बर पर है।
ट्रांसपोर्ट – 39864 करोड़ (6.48 प्रतिशत बजट शेयर)
ऊर्जा – 37566 करोड़ (6.11 प्रतिशत बजट शेयर)
समाज कल्याण – 31239 करोड़ (5.08 प्रतिशत बजट शेयर)
रूरल डेवलपमेंट – 29542 करोड़ (4.80 प्रतिशत बजट शेयर) यह राज्यों द्वारा ग्रामीण विकास के लिए औसत आवंटन 5.7 प्रतिशत से कम है।
शहरी विकास – 27541 (4.41 प्रतिशत बजट शेयर)
वाटर सप्लाई एवं सैनीटेशन – 21733 (4.51 प्रतिशत बजट शेयर)
सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण – 21431 करोड़ (4.46 प्रतिशत बजट शेयर)
कृषि एवं संबद्ध गतिविधि 2.8 प्रतिशत बजट शेयर। यह राज्यों द्वारा कृषि के लिए औसत आवंटन (6.2 प्रतिशत) से काफी कम है।
(स्रोत- पीआरएस, बजट विश्लेषण)
केंद्र सरकार के बजट में प्रमुख सेक्टरवाईज
शिक्षा – 104278 करोड़ (2.64 प्रतिशत बजट शेयर)
नोट- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय (केंद्र व राज्य) 4.39 प्रतिशत जीडीपी का है जोकि बजट का 14.1 प्रतिशत है। जो समान स्तर के जीडीपी वाले वियतनाम 18.5 प्रतिशत व इंडोनेशिया 20.6 प्रतिशत से काफी कम है।
स्वास्थ्य – 86606 करोड़ (2.19 प्रतिशत बजट शेयर)
ऊर्जा – 49220 करोड़ (1.25 प्रतिशत बजट शेयर)
ग्रामीण विकास – 206293 करोड़ (5.23 प्रतिशत बजट शेयर)
सोशल वेलफेयर – 51780 करोड़ (1.31 प्रतिशत बजट शेयर)
शहरी विकास – 76549 करोड़ (1.94 प्रतिशत बजट शेयर)
वित मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक आदमी पर 98776 रूपये का कर्ज है। भारत पर कुल कर्ज 128.41 लाख करोड़ का है। (स्रोत:- न्यूज 18 हिन्दी 30 मार्च 2022 की रिपोर्ट) उत्तर प्रदेश में कुल कर्ज वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.66 लाख करोड़ रूपये है। वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज 26000 रूपये से ज्यादा था। (स्रोत:- पत्रिका हिन्दी 22 फरवरी 2022 की रिपोर्ट)
एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार देश में किसान परिवारों पर 2013 में औसतन 47000 रूपये कर्ज था जबकि 2019 में बढ़कर 74121 रूपये हो गया।
(नोट – उत्तर प्रदेश में बजट में प्रस्तावित धनराशि वास्तविक खर्च व आय में भारी अंतर है, उदाहरण के लिए 2020-21 बजट)
बजट में प्रस्तावित खर्च – 512861 करोड़
वास्तविक खर्च – 351933 करोड़
शिक्षा में प्रस्तावित बजट 64805 करोड़, वास्तविक खर्च 54844 करोड़
स्वास्थ्य में प्रस्तावित बजट 26266 करोड़, वास्तविक खर्च 21549 करोड़
सोशल वेलफेयर में प्रस्तावित बजट 23438 करोड,़ वास्तविक खर्च 14753 करोड़
रूरल डेवलपमेंट में प्रस्तावित बजट 31402 करोड़, वास्तविक खर्च 23247 करोड़)
(स्रोत- उत्तर प्रदेश बजट 2022-23)
2022-23 के 6.15 लाख करोड़ के बजट में राजस्व खर्च 4.56 लाख करोड़ है, जिसमें से 2.76 लाख करोड़ रूपया मुख्य रूप से वेतन, पेंशन व ब्याज की अदायगी में खर्च होता है। 2020-21 के बजट में इस मद में वास्तविक खर्च 1.83 लाख करोड़ था जोकि कुल खर्च 3.52 लाख करोड़ का 52 प्रतिशत था। पूंजीगत व्यय जो इंफ्रास्ट्रक्चर आदि विकास मदों पर खर्च किया जाता है उसका बजट में महज 1.23 लाख करोड़ का आवंटन है जोकि बजट का 20 प्रतिशत है। इसमें यह नोट किया जाना चाहिए कि वास्तविक आय-व्यय 4 लाख करोड़ के ही करीब होगा। इसके लिए 2020-21 बजट के वास्तविक खर्च व आय के प्राप्त सरकारी आंकड़ों में देखा जा सकता है। बजट से यह भी देखा जा सकता है कि महत्त्वपूर्ण सेक्टर सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण, समाज कल्याण, ग्रामीण व शहरी विकास आदि में बेहद कम बजट का आवंटन है। इस तरह आंकड़ों से स्पष्ट है जो पूंजीगत व्यय इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च भी किया गया है, उसका अधिकांश हिस्सा एक्सप्रेस वे, मेट्रो आदि में खर्च किया गया है। शिक्षा व स्वास्थ्य में भी जो बजट आवंटित हैं उसका बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन आदि में ही खर्च होता है। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर सार्वजनिक व्यय करने के बजाय सरकार का फोकस पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल की नीति में है। तमाम स्कूलों, कालेजों व अस्पतालों को पीपीपी मॉडल के तहत संचालित करने की घोषणा भी की गई है। स्वास्थ्य महकमे के कायाकल्प की सच्चाई यह है कि चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ के औसतन 40 प्रतिशत स्वीकृत पद रिक्त पड़े हुए हैं, विशेषज्ञ डॉक्टर के तो 60 प्रतिशत से ज्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं। यही हाल प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज तक में है।
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था भारी संकट में
ऊपर दिए गए आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था ठहरी हुई है और इससे उबरने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। प्रदेश के ऊपर वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 6.66 लाख करोड़ रूपये का कर्जा है और प्रति व्यक्ति कर्ज 26000 रूपये से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति सालाना आय 81398 रूपये है यानी एक माह में 7 हजार रूपये से भी कम आय है। रोजगार की हालत बेहद खराब है। प्रदेश में करीब 6 लाख सरकारी पद खाली पड़े हुए हंै। निजी क्षेत्र में महज 5616 स्टार्टअप का पंजीकरण हुआ है। प्रदेश में विकास के नाम पर मेट्रो, ग्लोबल समिट, एक्सप्रेस वे, स्मार्ट सिटी आदि की ही चर्चा होती है। एक डिलाॅयट कम्पनी ने विकास के लिए राज्य सरकार को बड़े पैमाने पर शहरीकरण का सुझाव दिया है। उसका कहना है कि उत्तर प्रदेश की शहरी आबादी अभी भी 22 फीसदी है, जिसकी संख्या बढ़ाकर ही प्रदेश विकास कर सकता है। हालांकि अभी भी प्रदेश में बहुत सारे जिले हैं जिनकी शहरी आबादी अधिक है जैसे गौतमबुद्ध नगर 83.6 प्रतिशत, गाजियाबाद 81 प्रतिशत, लखनऊ 67.8 प्रतिशत, कानपुर नगर 66.7 प्रतिशत, झांसी 43.2 प्रतिशत, वाराणसी 43 प्रतिशत आदि। इन शहरों में भी बड़े पैमाने पर बेकारी है और आम शहरी की आमदनी में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखता है। सरकार भी बड़े पैमाने पर प्रदेश में स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रही है। मकसद साफ है किसानों की जमीन जैसे-तैसे दाम पर खरीद कर बिल्डर्स और कम्पनियों के हवाले करना। विपक्षी दल भी इसी तरह के विकास के माॅडल की बात करते हैं और सरकार से इसी क्षेत्र में प्रतिद्वंद्विता में उतरते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि पूंजी और उच्च तकनीक केन्द्रित इस तरह के विकास की योजनाएं लोगों की गरीबी और बेकारी दूर करने में कतई सक्षम नहीं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2018-19 में दो पहिया वाहन की खरीद में 36 प्रतिशत की गिरावट आई है। वहीं कार की खरीद में 9 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 की तुलना में 2019-21 में 22 प्रतिशत लोगों की जोत में कमी आयी है। स्वतः स्पष्ट है कि किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जमीन बेच रहे हंै। यह भी रिपोर्ट है कि इसी गरीबी के दौर में कारपोरेट घराने खासकर अम्बानी और अडानी ने अकूत सम्पत्ति बनाई है। केन्द्र की मोदी सरकार के सहयोग से अडानी ने अपनी सम्पत्ति में भारी इजाफा किया है। इस समय उनकी सम्पत्ति 10.94 लाख करोड़ है जबकि 2014 में उनकी सम्पत्ति न्यूज क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार महज 50.4 हजार करोड़ रूपये थी।़ उनकी सम्पत्ति अभी अम्बानी की सम्पत्ति से 3 लाख करोड़ रूपये अधिक है। संसद में यह भी बताया गया कि पिछले पांच वित्तीय वर्षों में कर्जे के लगभग 10 लाख करोड़ रूपये कारपोरेट के माफ कर दिए गए। उच्च मध्य वर्ग के एक छोटे से हिस्से की भी आमदनी बढ़ी है। 2021 वर्ष की तुलना में 2022 में मर्सडीज, बेंज जैसी कारों की खरीद में 64 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यह भी स्वतः स्पष्ट है कि आर्थिक असमानता में भी बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है।
प्रदेश में श्रमशक्ति के लिहाज से देखा जाए तो गरीब किसानों और निम्न मध्यम वर्ग के किसानों की संख्या सबसे बड़ी है। एक हेक्टेयर से कम छोटी जोतों की संख्या राजस्व परिषद् उत्तर प्रदेश से लिए आंकड़ो के अनुसार 1.91 करोड़ यानी 80 फीसदी है। एक से दो हेक्टेयर जोत के अंदर किसानों की संख्या 30 लाख यानी 12.6 फीसदी है। इन छोटी जोतों को सहकारी आधार पर यदि पुनर्गठित किया जाए तो फसलों की उपज में बढोत्तरी तो होगी ही साथ ही पूंजी निर्माण और प्रदेश के विकास में इनकी बड़ी भूमिका हो सकती है। सहकारिता को प्रोत्साहन देने की बात दूर रही पूरे कृषि विकास पर सरकार अपने 6.15 लाख करोड़ के बजट का 2.8 प्रतिशत यानी 16-17 हजार करोड़ रूपये ही खर्च करती है। जो किसान गन्ना, धान, गेहूं आदि बाजार के लिए पैदा कर पाते हैं उन्हें अपनी उपज को बेचने और भुगतान पाने में गंभीर किस्म के संकट का सामना करना पड़ता है। हजारों करोड़ रूपये गन्ना किसानों के मिल मालिकों के ऊपर बकाया रहता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए धारावाहिक बड़े किसान आंदोलन के बावजूद सरकार ने लागत पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने से इंकार कर दिया है। यदि तीन-चार ग्रामसभाओं के क्लस्टर के आधार पर किसानों और व्यापारियों के सहयोग से नौकरशाही मुक्त मंडी समितियां बनती और समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद और भुगतान किया जाता तो किसानों की आर्थिक हालत में बड़ा बदलाव होता। कृषि आधारित उद्योग लगते तो खेती पर निर्भर अतिरिक्त श्रम से बचा जाता और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलता। इसी तरह डेयरी, मत्स्य और अन्य क्षेत्रों में सहकारी उत्पादन की प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है।
खेत मजदूरों, दलितों, आदिवासियों, अति पिछड़े वर्गों में जमीन की बड़ी भूख दिखती है और काम के अभाव में बड़े पैमाने पर इन वर्गों के लोगों का पलायन दूसरे प्रदेशों में होता है। उनकी श्रम शक्ति का उपयोग अपने प्रदेश के विकास में नहीं होता है। वनाधिकार कानून के तहत ऊपर दिए गए आंकड़ों से स्पष्ट है कि आदिवासियों और वनाश्रितों को वन भूमि बहुत सीमित संख्या में दी गई है। गांव में हमारे सर्वे के आधार पर हम यह कह सकते हंै कि दो जून भरपेट भोजन का भी संकट उनके ऊपर रहता है। सोनभद्र जिले में यह भी देखा गया कि लड़कों के अलावा लड़कियां भी समूह बनाकर बंगलौर जैसे शहर में जाकर काम करती हंै। यदि उनको यहां उच्च शिक्षा व काम के अवसर मिलते तो उनका पलायन रूक जाता और उनकी श्रम शक्ति प्रदेश के विकास में लगती। यह तथ्य नोट करने लायक है कि हमारे प्रदेश में बैंक क्रेडिट डिपोजिट अनुपात में बड़ा अंतर है। वर्ष 2020-21 में बैंकों में यहां के लोगों का जमा धन 1287176 करोड़ और दिया गया ऋण 525691 करोड़ रूपये है। प्रदेश से पूंजी का पलायन प्रति वर्ष महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में हो जाता है। बैंकों में लोगों की जमा की गई धनराशि से स्व रोजगार के लिए ऋण मिलता तो लोगों का प्रदेश से पलायन एक हद तक रूक जाता। प्रदेश में साढे़ तीन लाख आंगनबाड़ी व सहायिकाएं और दो लाख दस हजार आशाएं है। इन लोगों को बहुत कम पैसे में काम करना पड़ता है। यदि इन्हें न्यूनतम वेतनमान मिलता तो मंदी के संकट से निपटने में बड़ी मदद मिलती और देश निर्माण में महिलाओं की बड़ी भूमिका बनती।
खेत मजदूरों की संख्या प्रदेश में 97.50 लाख है और उनकी क्रय शक्ति नगण्य है। बगैर उनकी आमदनी को बढ़ाए हुए पूंजी संचय की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि ऊसर, परती, कृषि योग्य बेकार जमीनों का उनके बीच में वितरण किया जाए, उनके रहने के लिए आवासीय जमीन दी जाए तथा मनरेगा में 200 दिन के काम की गारंटी की जाए और जिन जिलों में मनरेगा की उपेक्षा हो वहां के जिला प्रशासन को जवाबदेह बनाया जाए। ज्ञातव्य है कि मनरेगा में महज 34 दिन ही साल में एक मजदूर को औसतन काम मिल पाता है। गरीबों के शहरी रोजगार के लिए भी मनरेगा जैसी योजना बनाई जानी चाहिए।
उत्तर प्रदेश में कुटीर व छोटे उद्योग फैले पड़े हंै, उन्हें पुनर्जीवित और विकसित करने की जरूरत है। रोजगार, पूंजी विकास और सेवा क्षेत्र के विस्तार में इनकी बड़ी भूमिका हो सकती है। आगरा में चमड़ा और हस्तशिल्प उद्योग, अमरोहा में वाद्य यंत्र व रेडिमेड कपडे, अलीगढ़ में ताला, आजमगढ़ में मिट्टी के बर्तन, बरेली में जरी जरदोई व बांस की सामग्री, भदोही में कालीन, चित्रकूट में लकड़ी के खिलौने, एटा में घुघंरू, घंटी और ब्रास के उत्पाद, हरदोई में हैण्डलूम, झांसी में नर्म खिलौने, कन्नौज में इत्र, कानपुर देहात में एलमोनियम, कानपुर में चमड़ा, लखनऊ में चिकनकारी, मेरठ में खेल के सामान, मिर्जापुर में कालीन और ब्रास के बर्तन, मुरादाबाद में धातु शिल्प और ब्रास के बर्तन, वाराणसी में बनारसी सिल्क साड़ी, मऊ में पावरलूम वस्त्रों आदि का उत्पादन होता है। प्रदेश का कोई ऐसा जिला नहीं है जहां कुटीर उद्योग न हो।
राज्य की सकल घरेलू उत्पाद का 49 प्रतिशत सेवा क्षेत्र का है। खुदरा व्यापार के विस्तार से सेवा क्षेत्र मजबूत हुआ था लेकिन जीएसटी, कोविड और नोटबंदी की वजह से इसमें बड़ी गिरावट आयी है और आनलाइन कारोबार ने इनके सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में कृषि, कुटीर उद्योग और श्रम आधारित उद्योग के विकास के बिना सेवा क्षेत्र का भी विस्तार नहीं हो सकता। अच्छी तकनीकी, पूंजी केन्द्रित और कुशल श्रम आधारित उद्योग प्रदेश के बाहर हैं क्योंकि प्रदेश में उद्योग के फलने फूलने जैसा सामाजिक वातावरण भी नहीं है। फिर भी प्रदेश में सेवा क्षेत्र के दो तीन सेक्टर ऐसे हैं जिन पर सरकार ध्यान दे तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था सुधर सकती है। मसलन प्रदेश का स्वास्थ्य क्षेत्र – कोविड महामारी ने यह साबित कर दिया कि सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद खराब है और निजी अस्पताल भी बेहतर चिकित्सा सुविधा देने में अक्षम हैं। यदि प्रदेश में आक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता होती तो बहुत सारी जिंदगियों को बचाया जा सकता था। यानी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं और उसके लिए जरूरी उपकरण के लिए आवश्यक है कि सेवा क्षेत्र के साथ-साथ मैन्यूफैक्चरिंग पर सरकार पर्याप्त निवेश करे। यही हाल शिक्षा का है प्राथमिक विद्यालयों के कमजोर होने से गांव-गांव तक अंग्रेजी के नर्सरी स्कूल खुल रहे हैं। उच्च शिक्षा क्षेत्र में भी प्राइवेट मैनेजमेंट स्कूल और कालेजों की भरमार है। लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में विकास नहीं हुआ। आईटीआई और पालिटेक्निक जैसे संस्थानों को मजबूत करना चाहिए।
आज्ञापालक नागरिक, विभाजित समाज और डण्डे का लोकतंत्र
प्रदेश में राजनीति और लोकतंत्र की संस्कृति को बदलना होगा। यहां भी मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन सूत्र एक चालक अनुवर्तिता यानी एक नेता के अधिनायकत्व में चलते हैं। इसकी जगह सामूहिकता की संगठन संस्कृति और राजनीति को विकसित करना होगा। 1990 के बाद की अर्थनीति ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया, नौकरशाही और ताकतवर हुई, लोकतांत्रिक अधिकारों का दायरा सिमटता चला गया। सार्वजनिक सम्पत्ति जैसे चीनी मिल व सीमेंट उद्योग आदि को भारी कमीशन लेकर औने पौने दाम पर निजी पूंजीपतियों को बेच दिया गया। क्रमशः लोकतांत्रिक अधिकारों का क्षरण होता चला गया। 2017 के बाद स्थिति और बदतर हुई है। आज के दौर में सरकार की हर सम्भव कोशिश है कि नागरिकों को आज्ञापालक बनाया जाए, समाज में साम्प्रदायिक जहर घोला जाए और कानून के राज की जगह ‘ठोक दो’ की प्रशासनिक संस्कृति विकसित की जाए।
अमूमन राजनीतिक गतिविधियों को ठप कर दिया गया है। शांतिपूर्ण धरने, प्रदर्शन, यात्रा और सम्मेलन तक की गतिविधियों पर किसी न किसी बहाने प्रतिबंध लगा दिया जाता है। संविधान के मूल तत्व न्याय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए पहल लेना सरकार की नजर में असंवैधानिक हो गया है। साम्प्रदायिक राजनीति का सबसे बड़ा शिकार लोकतंत्र ही हुआ है। लोग राजनीतिक, सामाजिक कर्म से विमुख हो जाएं इसके लिए कठोर कानून बना दिए गए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020 है। यदि आप सरकार के आलोचक हांे तो आपको किसी आंदोलन में शरीक न होते हुए भी आंदोलन खड़ा करने के षडयंत्र के अभियुक्त के बतौर आईपीसी की धारा 120 बी के तहत गिरफ्तार कर महीनों जेल में रखा जा सकता है। शारीरिक प्रताड़ना और सार्वजनिक रूप से बदनाम करने के साथ ही आपकी सम्पत्ति को जब्त करने की कार्यवाही इस वसूली अधिनियम के तहत हो सकती है। स्वतंत्र भारत में आंदोलन के दमन का यह एक नया हथियार है। इस तरह के कानून से नागरिक आमतौर पर भयभीत है। जिसका प्रभाव उनकी राजनीतिक सामाजिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। रासुका, गुण्डा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट जैसे काले कानूनों का भारी पैमाने पर दुरूपयोग हो रहा है। याद रहे नागरिकता आंदोलन के दौर में ऐसे नागरिकों को जिन्हें सरकार ने अभियुक्त घोषित कर दिया था, के फोटो सार्वजनिक स्थानों पर लगा दिए गए थे। जिसे उच्च न्यायालय ने भी अनुचित मानते हुए हटा देने का आदेश दिया था लेकिन न्यायालय के आदेश के बावजूद योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उन्हें नहीं हटाया। इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं और नागरिक अधिकारों के बारे में इस सरकार का क्या रूख है। लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करके और नागरिक अधिकारों की रक्षा करके ही प्रदेश में समावेशी विकास की गारंटी हो सकती है।
सामाजिक न्याय और पंचायती राज
सामाजिक न्याय के क्षेत्र में दो समुदाय आदिवासी और अति पिछड़ों का प्रतिनिधित्व अभी कम दिखता है। यदि कोल जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कर लिया जाए तो आदिवासियों की आबादी प्रदेश में लगभग 25 लाख हो जायेगी। यह विडम्बना है कि साढ़े सात लाख की आबादी वाले आदिवासी कोल को अभी तक जनजाति की सूची में शामिल नहीं किया गया। जिसकी वजह से संसद में प्रदेश से किसी भी आदिवासी का प्रतिनिधित्व नहीं है। नगर पंचायतों में इन्हें महज एक सीट दी गई है वह भी इटावा जिले के बकेवर नगर पंचायत में जहां एक भी आदिवासी नहीं है। दूसरी बड़ी आबादी अति पिछड़ों की है उनका भी प्रतिनिधित्व आबादी के हिसाब से नौकरियों और पंचायतों में कम है। उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। पंचायतों में उनकी हिस्सेदारी की व्यवस्था बिहार माडल पर हो सकती है जिसमें अति पिछड़ों और महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व है। जातीय जनगणना प्रदेश सरकार को भी कराना चाहिए।
सत्ता का विकेन्द्रीकरण भी एक प्रमुख जनवादी मांग रही है। पंचायती राज व्यवस्था प्रदेश में जरूर कायम है लेकिन ये लोकतांत्रिक संस्थाएं नौकरशाही के भारी दबाव में हंै। जिला पंचायतों के अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुखों के चुनाव में भारी पैमाने पर खरीद फरोख्त होती है। यहां भी सीधे मतदान हो और लोग चुने जाएं। पंचायतों का जनतंत्रीकरण और चुने हुए प्रतिनिधियों की संस्थाओं का पूर्ण वित्तीय अधिकार सुनिश्चित करना होगा।
बड़ी संख्या में अदालतों में मुकदमें लम्बित हैं और बिना ट्रायल के ढेर सारे लोग जेलों में बंद हैं। त्वरित और सस्ते न्याय के लिए न्यायिक व्यवस्था पंचायतों तक विकसित करना होगा और यदि मुकदमों का निस्तारण निचले स्तर पर न्यायिक पंचायतों से हो जाए तो सबसे बेहतर होगा।
इस समय पूरे प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 20.48 लाख करोड़ है। उत्तर प्रदेश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार एक ट्रिलियन डालर यानी 80 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य लेकर काम कर रही है। सरकार कहने को तो कुछ भी कह सकती है लेकिन सच्चाई यह है कि जिस ग्लोबल निवेश का सपना प्रदेश सरकार दिखा रही है उसमें न कोई प्रदेश में बड़ा निवेश करने आ रहा है और न ही उसके बूते प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है। यह तथ्य नोट करने लायक है कि दुनिया में मंदी का दौर चल रहा है और हमारा प्रदेश भी उससे प्रभावित है। मंदी से निपटने के लिए जरूरी है कि लोगों की आमदनी बढ़े जिससे उनकी खरीदने की क्षमता बढ़े यानी लोगों की क्रयशक्ति और बाजार में मांग बढ़ाई जाए। अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो कारपोरेट को मदद देने वाली सप्लाई साइड इकोनाॅमी यानी आपूर्ति आधारित अर्थव्यवस्था से सरकार पीछे हटे, आम लोगों को राहत देने वाली डिमांड साइड इकोनाॅमी यानी मांग बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिले।
इसके लिए यह जरूरी है कि प्रदेश सरकार आर्थिक विकास की दिशा बदले। प्रदेश में रिक्त पड़े 6 लाख पदों को तत्काल भरा जाए और सरकार बेरोजगार लोगों के लिए नौकरी की गारंटी करे। कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा दे, किसानों की फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की जाए, सब्जी के रखरखाव के लिए स्टोरेज बनाया जाए, रोजगार पैदा किया जाए, व्यापारियों के जीएसटी में कमी लाई जाए, ई-काॅमर्स के बिजनेस का सही नियमन हो, डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए, ठेका मजदूरों व मानदेय कर्मियों को वेतनमान दिया जाए, पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल की जाए और स्वास्थ्य, शिक्षा पर खर्च बढ़ाया जाए तो ठहरी हुई अर्थव्यवस्था में गति आ सकती है। साथ ही सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध न लगाया जाए, काले कानून उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020 को रद्द किया जाए और आईपीसी की धारा 120 बी, रासुका, गैंगस्टर व गुण्ड़ा एक्ट का दुरूपयोग रोका जाए। सर्वाेपरि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा साम्प्रदायिक आधार पर समाज का विभाजन बंद करें और सदियों से लोगों में बने मैत्री भाव को नष्ट न करें। तब बेहतर लोकतांत्रिक वातावरण में उत्तर प्रदेश भी अपने अंतर्निहित क्षमताओं को विकसित कर सकता है और हर क्षेत्र में देश में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
अखिलेन्द्र प्रताप सिंह