नई दिल्ली: 60 दिनों से ज्यादा के लॉकडाउन ने देश में अब तक का सबसे बड़ा रोजगार संकट खड़ा कर दिया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (सीएमआइइ) के अनुसार अकेले अप्रैल महीने में 11.4 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी है। इसमें सबसे ज्यादा मार श्रमिकों पर पड़ी है। करीब 9.1 करोड़ श्रमिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। इसी तरह 1.8 करोड़ छोटे बिजनेसमैन और 1.78 करोड़ वेतनभोगी लोगों की नौकरियां गई हैं।

सीएमआइइ के एमडी और सीइओ महेश व्यास के अनुसार सर्वेक्षण में मार्च के मुकाबले अप्रैल में नौकरी पेशा लोगों की संख्या 39.6 करोड़ से 29 फीसदी घटकर 28.2 करोड़ पर आ गई है। इन आंकड़ों में सबसे चौंकाने वाली बात, बिजनेस कैटेगरी के लोगों का बेरोजगारों में शामिल होना है। क्योंकि कोई बिजनेसमैन तभी अपने को बेरोजगार घोषित करता है, जब उसे लगता है कि उसका बिजनेस अब रिकवर नहीं हो सकता है और वह पूरी तरह तबाह हो गया है। सर्वे में करीब 1.8 करोड़ लोगों को बेरोजगार होने की बात सामने आई है। इसी तरह वेतनभोगी के सामने इस संकट में एक और परेशानी खड़ी होने वाली है। लॉकडाउन पूरी तरह से खुलने के बाद नौकरी पेशा के लिए दोबारा नौकरी पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि पिछले तीन साल से संगठित क्षेत्र में नौकरियां 8-9 करोड़ के बीच ही बनी हुई हैं।

इन आंकड़ों का अगर उम्र के आधार पर विश्लेषण किया जाय, तो स्थिति और भयावह दिखती है। अप्रैल के महीने में 20-24 साल के उम्र के 1.3 करोड़ लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। इसी तरह 25-29 साल के उम्र के 1.4 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए हैं। यानी 30 साल तक के 2.7 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी है। जिनके लिए आने वाले समय में नौकरी पाना आसान नहीं होगा। इसी तरह ऐसे लोग जो 30 से ज्यादा के उम्र के हैं और 40 साल से कम के हैं, उनमें 3.3 करोड़ लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। इस वर्ग में 86 फीसदी पुरुषों की नौकरियां गई हैं। जबकि 40 और उससे ज्यादा उम्र वालों की कुल बेरोजगार हुए लोगों में 48 फीसदी हिस्सेदारी है।

बिगड़ते हालात पर सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के प्रेसिडेंट राजन वाढेरा के अनुसार “ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री करीब 3.7 करोड़ लोगों को रोजगार देती है। कोविड-19 के संकट की वजह से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में 22-35 फीसदी की डीग्रोथ की आशंका है। इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा।” इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार 25 फीसदी तक नौकरियां कम हो सकती हैं। ऐसा ही हाल टूरिज्म और हॉस्पिटेलिटी इंडस्ट्री पर होता दिख रहा है। ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट विजय कलांतरी के अनुसार सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज में टूरिज्म, हॉस्पिटेलिटी, इवेंट और इंटरनमेंट इंडस्ट्री को फौरी तौर पर कोई राहत नहीं मिली है। इस वजह से बड़े पैमाने पर नौकरियों पर संकट है। अकेले टूरिज्म एंड हॉस्पिटेलिटी सेक्टर में 4.2 करोड़ नौकरियां है, इसी तरह इवेंट इंडस्ट्री में करीब एक करोड़ लोग और मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में 50 लाख लोग काम करते हैं। इन सब पर कोविड-19 का संकट गहरा गया है। इसी तरह रेस्टोरेंट इंडस्ट्री करीब सात करोड़ लोगों को नौकरी देती है। कोविड संकट की वजह से करीब 20 लाख नौकरियां जा सकती है।

साफ है बेरोजगारी के आंकड़े काफी भयावह हैं, ऐसे में निश्चित तौर पर यह आजादी के बाद का सबसे बड़ा संकट है। अब देखना यह है कि इस भयावह संकट को मोदी सरकार किस तरह दूर करती है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब पहली बार 2014 में सत्ता में आए थे, तो उनकी जीत की सबसे बड़ी वजह बड़े पैमाने पर नौकरियां देने का वादा था। लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद वह वादा शायद अब सरकार भूल गई है।