आजादी की लड़ाई में उर्दू का महान योगदान रहा: राम नाईक
उर्दू केवल एक भाषा नहीं बल्कि संगीत है: आरिफ नक़वी
राज्यपाल ने किया अंतर्राष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेंस का उद्घाटन
तौकीर सिद्दीक़ी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में अंतर्राष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेंस का उद्घाटन किया। सम्मेलन का आयोजन लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग तथा मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट आफ ह्यूमैनिटीज, साइंस एण्ड टेक्नोलाॅजी, महमूदाबाद सीतापुर के तत्वावधान में किया गया था। इस अवसर पर इंटीग्रल विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलाधिपति डाॅ0 सईदुर रहमान आज़मी नदवी, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एस0बी0 निम्से, इंटीग्रल विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ0 वसीम अख्तर, शारिब रूदौलवी, बर्लिन से पधारे उर्दू विद्वान आरिफ नक़वी सहित देश एवं विदेश के अनेक उर्दू विद्वानों एवं उर्दू प्रेमियों ने भाग लिया। राज्यपाल ने कहा कि वे अपने मराठी संस्मरण के संकलन का भाषांतरण शीघ्र ही उर्दू और हिन्दी में करेंगे।
राज्यपाल ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू शानदार भाषा है। उत्तर प्रदेश आने के बाद लगता है कि उर्दू विशिष्ट लोगों की नहीं आम आदमी की भाषा है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदियों को जोड़ने की योजना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उसी प्रकार सभी भारतीय भाषाओं को जोड़कर देश की एकता को मजबूत करने का काम करें। उर्दू पढ़ने वालों को भी रोजगार मिल सकता है, यह विश्वास उर्दू पढ़ने वालों को दिलाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उर्दू को भाषण से नहीं रोजगार से जोड़कर आगे बढ़ाने का प्रयास करें।
श्री नाईक ने कहा कि उर्दू के विकास के संबंध में यदि कोई मांग पत्र उन्हें प्राप्त होगा तो वे मुख्यमंत्री से निश्चित रूप से चर्चा करके जायज मांग पूरी कराने की कोशिश करेंगे। राज्य के 25 विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की हैसियत से वे आगामी कुलपति सम्मेलन में उर्दू के विकास के लिए कुलपतियों से चर्चा भी करेंगे। उर्दू की अच्छी पुस्तकों का भाषान्तरण अन्य भाषाओं में किया जाये तथा अन्य भाषाओं के अच्छे ग्रंथ उर्दू में भाषान्तरित किये जाये। अनुवाद से एक ओर जहाँ वाचक बढे़गें वहीं इस भूमिका में वाचन संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि भाषा एक दूसरे को जोड़ने का काम करती है।
राज्यपाल ने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में उर्दू ने महान योगदान किया है। उर्दू के कलम के ताकत आजादी की लड़ाई में उभर कर सामने आयी है। देश ने मुंशी प्रेमचंद, गोपीचंद नारंग, फिराक गोरखपुरी, मौलवी बाकर अली, हसरत मोहानी जैसे महान उर्दू साहित्यकार दिये हैं। भारत बहुभाषी देश है। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। हिन्दी बड़ी बहन है, मराठी, उर्दू व अन्य भारतीय भाषाएं आपस में बहनें हैं। उन्होंने कहा कि देश में हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा उर्दू है।
कुलाधिपति इंटीग्रल विश्वविद्यालय डाॅ0 आज़मी ने कहा कि उर्दू अंतर्राष्ट्रीय भाषा है जिसके बोलने वाले पूरी दुनिया में मिलते हैं। आजादी की लड़ाई में उर्दू का योगदान महत्वपूर्ण है। स्कूल से संसद तक उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि कौमी एकता में उर्दू भाषा सहायक है।
बर्लिन से पधारे आरिफ नक़वी ने कहा कि उर्दू कभी खत्म नहीं होगी। उर्दू का रूप बदल सकता है। उर्दू केवल एक भाषा नहीं बल्कि संगीत है जो सबको अपने में ढाल लेती है। यही उसकी मजबूती और लोकप्रियता है। उन्होंने कहा कि विदेशों में उर्दू की तरक्की हिन्दुस्तान पर निर्भर है।
पूर्व मंत्री एवं अंतर्राष्ट्रीय उर्दू कांफ्रेस के अध्यक्ष डाॅ0 अम्मार रिज़वी ने स्वागत उद्बोधन दिया तथा उर्दू के विकास के लिए अपनी बात रखी।
राज्यपाल ने कार्यक्रम में ‘प्रोफेसर मलिक जादा मंजूर अहमद सम्मान‘ अतहर नवी को तथा ‘अल्लामा इकबाल सम्मान‘ मरणोपरान्त डाॅ0 युनूस नगरामी को दिया गया, जिसे उनके पुत्र ने स्वीकार किया। राज्यपाल ने इस अवसर पर एक स्मारिका व पाँच उर्दू पुस्तकों का लोकार्पण किया एवं देश-विदेश से पधारे उर्दू विद्वानों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया।