डिजटल इंडिया के नाम पर जनता को गुमराह कर रहे हैं मोदी: आचार्य प्रमोद कृष्ण
लखनऊ: देश में कोई कृषि नीति न होने के कारण किसान आत्महत्या कर रहा है। किसानों के पास सिंचाई के संसाधन नहीं हैं। सरकारें केवल कागजों में बांध बना रही है। उक्त उद्गार किसान मंच द्वारा कटी बगिया लतीफ नगर बाजार सरोजनी नगर में आयोजित किसान महापंचायत में प्रमुख समाजसेवी आचार्य प्रमोद कृष्ण ने मुख्य अतिथि के रूप में अपार जनसमूह के समक्ष व्यक्त किये। श्री कृष्ण ने कहा कि देश मे कोई भी नेता किसानो के प्रति हितेशी नही चाहे वो मोदी हो या कोई अन्य, मोदी देश की जनता के सामने डिजटल इंडिया का नाम लेकर भोली भाली जनता को गुमराह कर रहे है। देश में किसान आयोग का आजादी के 68 वर्शों बाद भी न बन पाना किसानों का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
वहीं पूर्व सांसद संतोष भारतीय ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने सम्बोधन में कहा कि गरीब किसान आज देश मे व्याकुल है क्योकि सरकार द्रारा किसानो कि समस्याओ का आज तक निराकरण नही हुआ। मध्यप्रदेश में लगभग 900 किसानो ने आत्महत्या की, वही 5000 रूपये से 125000 रूपये तक ऋण लेने वाले गरीब किसानो पर सरकार ने कडा शिकंजा कस दिया पर केन्द्र में आसीन मोदी सरकार उद्योगपतियों की सहूलियतों को लेकर चिंतित है। गरीब, मजलूम किसानों की किसी को फिक्र नहीं है। किसानों को अपनी मेहनत का पैसा नहीं मिल रहा है। वहीं देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के आवाहन पर बेंती गांव को गोद लिया था तो किसानों में यह उम्मीद जगी थी कि अब इस बेंती गांव का भाग्य खुल जायेगा। लेकिन हकीकत इसके विपरीत ही रही। देश के गृहमंत्री के गांव में नहरें सूखी पड़ी हैं। पेयजल का भयंकर संकट है। किसानों को फसल मुआवजा भी अभी तक नहीं मिल पाया है। जिससे किसानों में काफी आक्रोश है।
किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने किसान मंहापंचायत में किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने हमेशा उद्योगपतियों की वकालत की है। गरीब किसान, मजदूरों को केंद्र सरकार आड़े हाथों ले रही है। मोदी सरकार के दो वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद अभी तक कोई भी किसानों के लिये कोई ठोस योजना जमीन पर नहीं आ सकी है। जबकि चुनाव के पहले भाजपा ने गरीबों और किसानों से ये वादा किया था कि उनके सारे दुख-दर्द मिटा दिये जायेंगे। लेकिन जब गरीबों ने सवाल पूछा तो भाजपा का जवाब था कि हमने कोई वादा नहीं किया था वो तो चुनावी जुमला था। कुल मिलाकर अब किसानों को अपने हक की लड़ाई के लिये एकजुट होना होगा। और किसान हितों की बात करने वाले लोगों को ही सत्ता में लाना होगा।