व्यवसाय प्राप्ति के साधन बन के रह गए हैं शिक्षा के केन्द्र: वीरेन्द्र याज्ञनिक
लखनऊ: जय नारायण महाविद्यालय में आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा ’’वर्तमान परिवेश में भारतीय संस्कृति एवं संस्कार’’ विषय पर एक परिचर्चा आज एक परिचर्चा आयोजित की गयी जिसमें मुख्य वक्ता आदरणीय संस्कृति मर्मज्ञ करूणा शंकर ओझा एवं प्रबन्धन विशेषज्ञ वीरेन्द्र याज्ञनिक ने अपने विचार प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किये। इस अवसर पर वीरेन्द्र याज्ञनिक ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज शिक्षा के केन्द्र मात्र व्यवसाय प्राप्ति के साधन मात्र रह गये हैं। हमारी संस्कृति हमें जीवन जीने की शिक्षा देती है। हमारी संस्कृति में ज्ञान विनम्र बनाता है, व्यक्तित्व एवं समाज का निर्माण करता है। यह हमें अर्पण, तर्पण से आगे बढ़कर समर्पण की शिक्षा देती है। सच्ची शिक्षा हमें विमुक्त करती है। जो शिक्षा देश को तोड़ने और ऋण लेकर आनन्द मनाने की शिक्षा दे वह भारतीय संस्कृति की पोषक नहीं हो सकती। उन्होंनें छात्र/छात्राओं को प्रकृति, विकृति से आगे बढ़कर संस्कृति को आत्मसात् करने के लिए आवाह्न किया क्योंकि संस्कृति में सर्व कल्याण निहित है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी एवं सन्त करूणा शंकर ओझा ने महाविद्यालय प्राचार्य एवं कार्यक्रम के आयोजकों को साधुवाद देते हुए भारतीय संस्कृति में सेवा की उपादेयता को रेखांकित किया। उन्होंनें कहा कि छात्रों को विष्वविद्यालय में ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रवेष लेना चाहिए और ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त समाज में सेवा के लिए अपने आपको समर्पित करना चाहिए। यही भारतीय संस्कृति एवं संस्कार का मूल मंत्र है।कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन हिन्दी विभाग की आचार्या डा0 सरल अवस्थी द्वारा किया गया।