कट्टरवादी विचारधारा विश्व शांति के लिए ख़तरा
रामलीला मैदान में विशाल सूफ़ी राष्ट्रीय सम्मेलन, आतंकवाद के विरुद्ध सूफ़ियों ने अपनी राय प्रकट की
कार्यालय संवाददाता
जयपुर। कट्टरवादी कट्टरवादी विचारधारा और इसे पालने वाले विश्व शांति के लिए ख़तरा हैं। यह बात तंज़ीम उलेमा ए इस्लाम और मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित आतंकवाद विरोधी सुन्नी कॉन्फ़्रेंस में सामने आई। कार्यक्रम जयपुर के रामलीला मैदान में आयोजित हुआ जिसमें जयपुर और राजस्थान ही नहीं बल्कि देश भर के कई शहरों से हज़ारों लोग जमा हुए और एक स्वर में आतंकवाद की आलोचना की। संगठन को भारत की सभी प्रमुख दरगाहों, ख़ानक़ाहों और मदरसों का समर्थन प्राप्त है और तंज़ीम उलेमा ए इस्लाम भारत के सुन्नी सूफ़ी मुसलमानों की प्रतिनिधि सभा है।
ऑल इंडिया तंज़ीम उलामा ए इस्लाम के बहुचर्चित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आए लोगों से रामलीला मैदान खचाखच भर गया। सूफ़ी मत के लोग यह समझने का प्रयास करना चाहते हैं कि यदि इस्लाम और सूफ़ीवाद आतंकवाद को समाप्त कर शांति की स्थापना पर ज़ोर देते हैं तो यह कौन लोग हैं जो इस्लाम का नाम लेकर आम लोगों की हत्या करते हैं और आतंकवाद फ़ैलाते हैं। लोगों को क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद साहब के कथनों यानी हदीस के हवाले देकर समझाया गया कि इस्लाम के नाम पर हो रहे आतंकवाद का संबंध दरअसल ‘कट्टरवादी विचारधारा’ से है जो कुछ कुत्सित लोगों और भ्रष्टाचारियों की हित पूर्ति के लिए खड़ी की गई है। इस विचारधारा को सऊदी अरब के तानाशाह परिवार ही नहीं बल्कि वहाँ के धार्मिक मंत्रालय की ज़िम्मेदारी संभाल रहे शेख़ परिवार का समर्थन प्राप्त है। सऊदी अरब की आतंकवाद को प्रश्रय देने वाली इस विचारधारा को क़तर, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, इज़राइल, अमेरिका और नाटो से भी मदद मिलती है क्योंकि इस विचारधारा की वजह से आतंकवाद पनपता है जो कुछ देशों के खनिज लूटने और ईंधन संसाधनों पर क़ब्जा करने में यह विचारधारा मदद करती है। आईएसआईएस, अलक़ायदा, तालिबान, जमातुद दावा, बोको हराम और इसी तरह के अन्य कट्टरवादी आतंकवादी गुट विश्व शांति के लिए तब तक ख़तरा हैं जब तक इन्हें समाप्त नहीं कर दिया जाता।
मुख्य वक्ता क़मरुज़्ज़माँ आज़मी का बयान
इंग्लैंड से पधारे वर्ल्ड इस्लामिक मिशन के महासचिव अल्लामा क़मरुज़्ज़माँ आज़मी ने कहाकि पूरी दुनिया में आज लोग शांति की खोज कर रहे हैं और भारत शांति का स्थल है। इस्लाम शांति की जमानत है और सूफ़ीवाद के प्रसार से हम यह समझ सकते हैं। हमें समझना चाहिए कि अजमेर में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. के साये में बैठ कर हम यह कार्यक्रम कर रहे हैं जहाँ से पूरी दुनिया को शांति और भाईचारे का संदेश मिलता है। यह बहुत आवश्यक है कि आज इस संदेश को पूरी तरह से आम किया जाए। आतंकवाद और अविश्वसनीयता के इस युग में सूफ़ीवाद हमें सच्चाई और अमन का रास्ता दिखाता है और मुझे विश्वास है कि यदि हम इस बात को समझते हैं तो दुनिया में कहीं कोई परेशानी नहीं होगी। आज़मी ने भारत की महानता और विशालता का बयान करते हुए कहाकि यह वह जगह है जहाँ से पूरी दुनिया को प्रेम और भाईचारे का संदेश मिलता है।
तंज़ीम के अध्यक्ष मौलाना मुफ़्ती अशफ़ाक़ हुसैन क़ादरी ने कहाकि देश में वक़्फ़ नियंत्रक संस्था ‘सीडब्ल्यूसी’ यानी केन्द्रीय वफ़्फ़ परिषद् और इसके अधीन चलने वाली संस्था राष्ट्रीय वक़्फ़ विकास परिषद् यानी ‘नवाडको’ और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में राज्य सरकारों ने अधिकांश कट्टरवादी लोगों को ज़िम्मेदारी दे रखी है जो ना सिर्फ़ वक़्फ़ सम्पत्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं वरन् सऊदी अरब के इशारे पर वक़्फ़ सम्पत्तियों और वक़्फ़ के अधीन मस्जिदों के इमामों के द्वारा देश में कट्टरवादी विचारधारा के प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। यह बहुत गंभीर मसला है और यह तब तक ठीक नहीं हो सकता जब तक कि हम केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद्, राष्ट्रीय वक़्फ़ विकास प्राधिकरण और राज्य के वक़्फ़ बोर्डों का पुनर्गठन कर वहाँ सुन्नी सूफ़ी समुदाय के लोगों और आवश्यकतानुसार शिया प्रतिनिधियों को नियुक्त नहीं करते। क़ादरी ने माना वक़्फ़ बोर्ड भारत में कट्टरवादी विचाराधारा को स्थापित करने वाली सबसे बड़ी सरकारी संस्था बन कर रह गई है। यदि सरकारी विभाग ही कट्टरवादी विचारधारा को प्रश्रय देने वाले अड्डे बनकर काम करेंगे तो हम आम लोगों को कट्टरवादी दुष्प्रचार और कट्टरता से रोकने में किस प्रकार कामयाब हो पाएंगे? क़ादरी ने कहाकि हमें वक़्फ़ के द्वारा संचालित मस्जिदों और ख़ानक़ाहों का किस प्रकार मानवता, सूफ़ीवाद और शांति के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, इसके लिए हमें मिस्र, रूस और चेचेन्या सरकार के फॉर्मूले को समझने की आवश्यकता है।
मौलाना शहाबुद्दीन, महासचिव, तंज़ीम उलामा ए इस्लाम का बयान
भारत में मुसलमानों की स्थिति में सुधार सिर्फ़ सूफ़ी लोगों को संस्थागत करने से ही सुधर सकती है। यह भी आवश्यक है कि देश में आतंकवाद और अन्य झूठे आरोपों में जेलों में ठूँसे गए मुस्लिम युवाओं को फ़ौरन बरी किया जाए क्योंकि झूठे मुक़दमों से उनके क़ानून और व्यवस्था में विश्वास को ठेस पहुँचती है। यह भी आवश्यक है कि चौबीसों घंटे मुसलमानों को दोषी ठहराए जाने का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इनके संगठन अपना रवैया छोड़ें।
तंज़ीम के प्रवक्ता शुजात अली क़ादरी ने बताया कि ऑल इंडिया तंज़ीम उलामा ए इस्लाम के क़रीब 10 लाख सदस्य हैं जो पारम्परिक सूचना संसाधनों से ही जानकारी जुटाते हैं। तंज़ीम के पास पिछले कई दिनों से इस बात के लिए लोग जानकारी जुटाना चाह रहे थे कि ख़तरनाक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस, अलक़ायदा और तालिबान कौन सी विचारधारा से परिचालित हैं कि यह सिर्फ़ ख़ूनख़राबा करते हैं। संगठन ने वैचारिक रूप से सम्मेलन कर इस बात की जागरुकता पर मानस बनाया कि लोगों को सही इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने वाली सूफ़ी विचारधारा से अवगत करवाना आवश्यक है। इसलिए आतंकवाद के लिए ज़िम्मेदार कट्टरवादी विचारधारा के बारे में भी लोगों को बताने की आवश्यकता पर बल दिया गया। बाद में यह राय बनी की आम सभा करके लोगों और सरकार को वहाबिज्म के प्रति जागरूक किया जाए।
सभा के बाद भारत सरकार के नाम विस्तृत ज्ञापन दिया गया जिसमें कहा गया कि तंज़ीम उलामा ए इस्लाम भारत के सुन्नी सूफ़ी विचारधारा यानी ‘सुन्नत वल जमात’ की प्रतिनिधि सभा है जिसमें देश भर के दरगाहों, ख़ानक़ाहों और सूफ़ी मस्जिदों के इमाम समाज के हितार्थ अपनी राय को प्रकट करते हैं। समाज के सम्मुख आ रही समस्याओं जैसे आतंकवाद, कट्टरता, सामुदायिक और साम्प्रदायिक हिंसा और इससे निपटने के मुद्दे पर समाज के अंदर काफ़ी गहमागहमी है। ज्ञापन में कहा गया कि वैश्विक आतंकवाद से बचाने के लिए हमें तीन मुद्दों पर सक्रीय रूप से कार्य करना होगा। वक़्फ़ बोर्ड से कट्टरवादी क़ब्ज़े हटाने होंगे, हज कमेटियों का पुनर्गठन करना होगा और भारत के स्कूल एवं मान्य विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से कट्टरवादी सामग्री हटाकर सूफ़ी वैचारिक इस्लामी शिक्षा की तरफ़ जाना होगा। संगठन ने इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि जब भी मुसलमानों के कल्याण की बात आती है, चाहे भारत सरकार हो या राज्य सरकारें, वह वहाबियों को आगे कर इतिश्री कर लेते हैं जबकि आवश्यकता इस बात की है कि चाहे अल्पसंख्यक कल्याण के लिए राजनीतिक नियुक्ति हो या प्रशासनिक, ज़रूरत इस बात की है कि सुन्नी सूफ़ी व्यक्ति को ही प्रश्रय दिया जाए। इस पहचान में तंज़ीम मदद कर सकती है।
प्रमुख लोगों के बयान
मन्नान रज़ा ख़ाँ, बरेली आलाहज़रत दरगाह के सज्जादानशीन- वैचारिक रूप से शांतिप्रिय सूफ़ी समुदाय की इच्छा है कि वैश्विक आतंकवाद के लिए ज़िम्मेदार विचारधारा को समझ कर समाज इसके विरुद्ध जनमत का निर्माण करे।
मौलाना शहाबुद्दीन, महासचिव, तंज़ीम उलामा ए इस्लाम- हम भारत में मदरसा बोर्ड क़ानून का समर्थन करते हैं और भारत के मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए यह आवश्यक है कि मदरसा बोर्ड क़ानून को पास किया जाए ताकि मदरसों में आधुनिक शिक्शा दी जा सके।
सईद नूरी, रज़ा एकेडमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष – विश्व में आतंकवाद के लिए कट्टरता ज़िम्मेदार है और कट्टरता के लिए कट्टरवादी विचारधारा ज़िम्मेदार है। भारत सरकार यदि देश को आतंकवाद से बचाना चाहती है तो उसे कट्टरवादी विचारधारा को असंवैधानिक मानते हुए इस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
वाहिद हुसैन चिश्ती, सज्जादानशीन अजमेर दरगाह- यदि देश के सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में इस्लामी अध्ययन में सूफ़ी संतों के जीवन और संदेश के बारे में नहीं बताया जाता है तो मुसलमान नौजवानों को कहाँ से प्रेरणा मिलेगी। सूफ़ी साहित्य को बढ़ाना होगा।
शाहिद मियाँ जिलानी अशरफ़, दरगाह मख़दूम अशरफ़, किछौछा, उत्तर प्रदेश- यह देखने की आवश्यकता है कि पैग़म्बर मुहम्मद साहब के जीवन से हमने क्या सीखा? आतंकवादियों के चरित्र से लगता है कि वह पैग़म्बर साहब और सूफ़ी संतों का सम्मान नहीं करते, इसीलिए हद से बढ़ गए।
सग़ीर अहमद रिज़वी, बरेली शरीफ़- देखना होगा कि अरब में जो लोग कट्टरता को बहुत हल्की बात समझते थे आज बर्बादी के कगार पर खड़े हैं। हमने इस्लाम सूफ़ी संतों से सीखा है लेकिन भटके हुए नौजवानों को जो विचारधारा नफ़रत सिखाती है, वह सही शिक्षा कैसे दे सकती है?
सैयद मुहम्मद क़ादरी, मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन- जिस तरह पेट्रोडॉलर से भारत में कट्टरवादी विचारधारा का प्रसार हो रहा है उस पर फ़ौरन रोक लगाई जानी आवश्यक है। भारत सरकार को चाहिए वक़्फ़ बोर्डों से वहाबियों को बाहर करे।
हाजी रफ़त, जयपुर- भारत को सूफ़ीवाद का संदेश बरेली शरीफ़ से मिलता है। भारत में कट्टरवादी विचाराधारा की पहली लड़ाई आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ाँ साहब ने बरेली से शुरू की थी। आज हमें आला हज़रत के संदेश को बहुप्रसारित करने की आवश्यकता है।
प्रोफ़ेसर हबीबुर्रहमान नियाज़ी, पूर्व चेयममेन उर्दू अकादमी- भारत का सुल्तान अजमेर के ख़्वाजा हैं। ग़ौर करने की बात है कि ग़रीब नवाज़ के दरबार में हर धर्म के लोग आते हैं। आज हमें ग़रीब नवाज़ से आस्था के साथ साथ उनके जीवन से भी प्रेरणा लेनी चाहिए।
मुफ़्ती अब्दुल सत्तार रज़वी, जयपुर मुफ़्ती- जब भी मुसलमानों पर संकट आता है तो यह मानना चाहिए कि हमने पैग़म्बर मुहम्मद साहब के आदेशों की अवहेलना की होगी। आतंकवाद के रास्ते पर भटके नौजवानों ने इस्लाम का तो नहीं, मुसलमानों को बहुत नुक़सान पहुँचाया है।
सैयद सलीम बापू क़ाज़ी, गुजरात- भारत में मुसलमानों के बीच आतंकवाद के लिए पेट्रो डॉलर की विचारधारा ही नहीं बल्कि अशिक्षा, ग़रीबी और उत्पीड़न भी जिम्मेदार है। हम मूल मुद्दों पर ध्यान दिए बिना आतंकवाद को नहीं समझ सकते।
सैयद जावेद अहमद नक़्शबंदी, दरबारे अहले सुन्नत, नई दिल्ली- मदरसों और ख़ानक़ाहों की हिफ़ाज़त किए बिना हम अपने बच्चों को कट्टरवादी फ़ित्ने से नहीं बचा सकते। देखा जाता है कि भटके हुए लोग हमारी मस्जिदों और ख़ानक़ाहों पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं। इन्हें स्वतंत्र करवाए जाने की आवश्यकता है।
शाह मुहम्मद, प्रमुख, दारुल उलूम राबिया बरसिया, नई दिल्ली- भारत में राजनीतिक रूप से मुसलमान कमज़ोर है। मुसलमानों के कम से कम 80 सांसद चुनाव जीतने चाहिए लेकिन राजनीतिक बिखराव ने हमें पस्ती में डाल दिया है।
विदेशों से सीखने की नसीहत
वक्ताओं ने वैश्विक आतंकवाद से लड़ने में कई देशों से सबक़ सीखने की बात कही गई। वक्ताओं ने कहाकि मिस्र में कट्टरवादी आतंकवाद से निपटने के लिए अलअज़हर विश्वविद्यालय के मुफ्ती तैयब साहब के फ़तवे से भारत काफ़ी कुछ सीख सकता है। मिस्र के राष्ट्रपति फ़त्ताह अलसीसी का नाम कई बार दोहराया गया कि उन्होंने किस प्रकार कट्टरता पर काबू पाया। इसके अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने कट्टरवादी विचारधारा को काफ़ी हद तक क़ाबू किया है जिसमें चेचेन्या के राष्ट्रपति रमज़ान क़ादिरोव ने शांति स्थापना में मदद की है। इसके अलावा सीरिया में बशार अलअसद, ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी, कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमअली रहमून, अल्बानिया के राष्ट्रपति बुजार निशानी ने अपने देश को कट्टरता से बचाने के लिए ऐतिहासिक कार्य किया है। भारत को इनसे सीखना चाहिए।
सभा में देश भर के उलामा जमा हुए जिसमें ख़ासतौर पर मौलाना ज़ाहिद रज़ा नूरी, मौलाना अहतराम आलम अज़ीज़ी, मौलाना वली मुहम्मद शेरी, क़ारी ग़ुलाम मुईनुद्दीन, मौलाना इरफ़ान बरकाती, हाजी मुज़फ़्फरुल्ला़ह भूरी, मुस्तफ़ा तंज़ेनाइट, मुर्शिद अहमद, मौलाना फ़य्याज़ रज़वी, सैयद मुहम्मद अली वाहिद यज़दानी, हाजी रियाज़, नवाब काग़ज़ी, यूसुफ़ अली टाक, मौलाना मुबारक अली, मुफ़्ती ग़ुलाम मुस्तफ़ा नजमी, मौलाना अब्दुल लतीफ़ अशरफ़ी समेत कई प्रमुख उलामा, समाज सेवक और चिन्तकों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
कार्यक्रम की सबसे सुन्दर बात रही कि जिधर देखों उधर भारतीय ध्वज तिरंगों से मैदान तो मैदान उसका आसमान भी अँट गया। सभी स्थानीय और बाहर से आए सूफ़ी विचारकों को तिरंगे ओढ़ाकर स्वागत किया गया। इसके अलावा मैदान में कई जगह बाक़ायदा पोल लगाकर बीसियों तिरंगे लगाए गए। इतना ही नहीं आम कार्यक्रम सुनने आई जनता के हाथो में हजारों तिरंगे लहरा रहे थे जिसे देखना वाक़ई दिलचस्प नज़ारा था।
आज की सभा ने जनता ने भारत समेत कई देशों के झंडे अपने हाथ में ले रखे थे। हमारे संवाददाता ने जब इस बाबत मालूम किया तो तंज़ीम उलेमा ए इस्लाम के प्रतिनिधियों ने बताया भारत समेत पूरी दुनिया में जहाँ सूफ़ीवाद को शांतिप्रिय इस्लाम के तौर पर स्थापित करने और कट्टरवादी विचारधारा के विरुद्ध हमारे समकक्श जो भी लड़ाई लड़ रहा है हमने उन देशों के झंडों को लहराकर अपना समर्थऩ जताया है। रामलीला मैदान में हज़ारों तिरंगों के बीच मिस्र, रूस, अल्बानिया, अल्जीरिया, अज़ैरबाइजान, फ़िलस्तीन बांग्लादेश, बोस्निया एवं हरज़ेगोविना, घाना, इंडोनेशिया, ईरान, इराक़, कोसोवो, किर्गीज़िस्तान, माली, मोरक्को, रूस, सेनेगल, सूरीनाम, सीरिया, ताजिकिस्तान, तंज़ानिया, ट्यूनिशिया, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और यमन के भी झंडे लहराए गए। तंज़ीम का मानना है कि हम उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं जिन्होंने कट्टरवादी आतंकवाद से अपने देश को बचाया हम भी भारत को बचाने के लिए वैसे ही प्रयास कर रहे हैं। और कम से कम सूफ़ीवाद के मार्ग पर चलकर जिस तरह इन देशों ने अपनी मातृभूमि की रक्शा की, हम भी यह पुनीत कार्य करेंगे।