चहुंमुखी विकास के लिए ऊर्जा पहली जरूरत
‘मिनी ग्रिड नीति उत्तर प्रदेश 2016’ लागू
लखनऊ: राज्य सरकार ने स्थानीय रूप से उपलब्ध अक्षय ऊर्जा स्रोतों से विद्युत ऊर्जा पैदा कर विकेन्द्रीकृत रूप से उस क्षेत्र को विद्युतीकृत कर ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए ‘मिनी ग्रिड नीति उत्तर प्रदेश 2016’ प्रख्यापित की है।
यह जानकारी आज यहां देते हुए राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि चहुंमुखी विकास के लिए ऊर्जा पहली जरूरत है। पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का तेजी से ह्रास हो रहा है। इनके उपयोग से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। प्रदेश में ऊर्जा की बढ़ती मांग और ऊर्जा सुरक्षा के मद्देनजर अपारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। इसके दृष्टिगत ‘मिनी ग्रिड नीति उत्तर प्रदेश 2016’ घोषित की गई है।
प्रवक्ता ने बताया कि इस नीति का उद्देश्य राज्य में स्वच्छ और हरित ऊर्जा के विकेन्द्रीकृत उत्पादन को अक्षय ऊर्जा जैसे बायोमास एवं बायोगैस ऊर्जा के दोहन के माध्यम से बढ़ावा देना, अक्षय ऊर्जा के विकेन्द्रीकृत उत्पादन के क्षेत्र में निजी निवेश की भागीदारी को बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण सृजन करना, प्रदेश के लगभग 2 करोड़ अविद्युतीकरण घरों में से अधिकतम को न्यूनतम मूलभूत सुविधा जैसे रात्रि प्रकाश, पंखा, मोबाइल चार्जिंग, मनोरंजन आदि हेतु सुनिश्चित विद्युत ऊर्जा प्रदान किया जाना, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता वर्तमान में कम होने के कारण लम्बी दूरी की विद्युत वितरण लाइनों को विकसित करने पर होने वाले व्यय तथा विद्युत लाइनों में होने वाली विद्युत ह्रास को कम करना, जन साधारण में पर्यावरण जागरूकता का विस्तार करना, स्थानीय रूप से कौशल वृद्धि एवं रोजगार के अवसरों को सृजित करना, स्थानीय विनिर्माण सुविधाओं को प्रोत्साहित करना तथा पिछड़े क्षेत्रों का सामाजिक व आर्थिक विकास करना, राज्य में नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग और प्रभावी प्रबन्धन के लिए क्षमता का विकास करना, बड़ी संख्या मंे परम्परागत ग्रिड से वंचित घरेलू, कृषि एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को स्वच्छ व सतत् (ससटेनेबुल) विद्युत ऊर्जा उपलब्ध कराना तथा जीवाष्म ईंधन की खपत में कमी लाना है।
प्रवक्ता ने बताया कि इस नीति के माध्यम से अविद्युतीकृत बसावटों/मजरों एवं उनसे जुड़ी परन्तु परम्परागत ग्रिड से वंचित अथवा अपेक्षाकृत कम आपूर्ति के अविकसित एवं पिछड़े ग्रामीण/नगरीय क्षेत्रों में मिनी ग्रिड परियोजनाओं की स्थापना की जा सकेगी। यह नीति जारी होने की तिथि से 10 वर्ष तक प्रभावी होगी और आवश्यकतानुसार इसमें संशोधन किया जाएगा। नीति के संचालन अवधि में स्वीकृत योजनाएं ही नीति में प्राविधानित लाभ की पात्र होंगी। उन्होंने बताया कि प्रदेश के अधिक से अधिक अविद्युतीकृत तथा अधिकतम मांग के घण्टों मंें बिजली की अनुपलब्धता वाली बसावटों तथा घरों को विद्युतीकृत किए जाने के दृष्टिगत अधिकतम 500 किलोवाट क्षमता की परियोजनाएं स्थापित की जा सकेंगी।
प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश में मिनी ग्रिड परियोजनाओं की स्थापना दो प्रकार से, राज्य सरकार के अनुदान के साथ तथा विकासकर्ताओं द्वारा स्वयं की चिन्हित परियोजनाएं बिना अनुदान के स्थापित की जा सकेंगी। राज्य सरकार के अनुदान से स्थापित होने वाली परियोजना पर अधिकतम 30 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाएगा। ऐसी परियोजनाओं का निर्माण, स्वामित्व, संचालन एवं रख-रखाव (बिल्ट आॅन आॅपरेटर एण्ड मेन्टेण्ड) ‘बूम‘ के आधार पर कराया जाएगा तथा विकासकर्ता द्वारा 10 साल तक रख-रखाव एवं संचालन अनिवार्य रूप से किया जाएगा।
प्रवक्ता ने बताया कि स्वीकृत परियोजनाओं में भूमि की व्यवस्था विकासकर्ताओं द्वारा की जाएगी। परियोजना क्षेत्र के सभी इच्छुक उपभोक्ताओं को घरेलू उपयोग के लिए मांग के अनुसार प्रातः 3 घण्टे और रात्रि में 5 घण्टे कुल कम से कम 8 घण्टे प्रतिदिन विद्युत ऊर्जा प्रदान किया जाना अनिवार्य होगा। क्षेत्र के अन्य समस्त इच्छुक उत्पादक एवं वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को हर दिन 6 घण्टे आवश्यकतानुसार बिजली दी जाएगी। शेष ऊर्जा विकासकर्ता द्वारा अन्य उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराई जा सकती है। उपभोक्ताओं से प्रतिदिन 8 घण्टे विद्युत आपूर्ति के लिए 50 वाॅट प्रतिमाह के लोड पर 60 रुपए प्रतिमाह तथा 100 वाॅट के लोड पर 120 रुपए प्रतिमाह लिया जाएगा। 100 वाॅट से अधिक के लोड पर विकासकर्ता एवं उपयोगकर्ता के बीच आपसी सहमति से विद्युत टैरिफ निर्धारित किया जाएगा।
बिना अनुदान के विकासकर्ता द्वारा स्वयं की चिन्ह्ति परियोजनाएं विकासकर्ता द्वारा स्वयं की भूमि एवं वित्तीय व्यवस्था का प्रबन्ध कर लगाई जाएगी। उत्पादित ऊर्जा का वितरण इच्छुक परिवारों को घरेलू उपयोग, कृषि कार्य, लघु वाणिज्यिक कार्य जैसे आटा चक्की, दुकान, स्कूल, अस्पताल, टेलीफोन टावर, पेट्रोल पम्प आदि की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जाएगा। विकासकर्ता द्वारा ऊर्जा वितरण प्रतिबन्धित नहीं होगा तथा विद्युत टैरिफ उपयोगकर्ताओं से आपसी सहमति के आधार पर प्राप्त किए जाने की छूट होगी। बिना अनुदान की परियोजनाओं को भी अन्य अवस्थापना सहायता सम्बन्धी, औद्योगिक नीति के प्राविधानित सुविधाओं तथा परम्परागत ग्रिड के पहुंचने की दशा में निकास की प्रक्रिया का लाभ प्राप्त होगा।
प्रवक्ता ने बताया कि स्थापित परियोजनाओं से आच्छादित ग्रामों/मजरों में परम्परागत ग्रिड के पहुंचने पर स्थापित संयंत्र को संेज उपसम पदतिंेजतनबजनतम मानते हुए दो प्रकार से निकास की प्रक्रिया होगी। डिस्काॅम द्वारा उत्तर प्रदेश नियामक आयोग से निर्धारित टैरिफ/आपसी सहमति से निर्धारित टैरिफ पर संयंत्र से उत्पादित ऊर्जा ग्रिड में प्राप्त की जा सकंेगी तथा डिस्काॅम द्वारा उस क्षेत्र विशेष में विकासकर्ता को फ्रेन्चाइजी के रूप मंे मान्यता प्रदान करने के लिए वरीयता दी जाएगी। विकासकर्ता द्वारा स्थापित परियोजना की लागत/लाभ हानि का आकलन करते हुए डिस्काॅु एवं विकासकर्ता की आपसी सहमति पर तय मूल्य पर परियोजना डिस्काॅम को हस्तानान्तरित की जाएगी।
प्रवक्ता के अनुसार सौर ऊर्जा से संचालित स्वीकृत परियोजनाएं 6 माह, बायोमास/बायोगैस से संचालित परियोजनाएं 9 माह, पवन ऊर्जा एवं लघु जल विद्युत से संचालित परियोजनाएं 1 वर्ष में पूर्ण की जानी होंगी, वास्तविक/अकृत्रिम कारणों से विभिन्न स्तरों से अधिकतम 6 माह की समय वृद्धि प्रदान की जाएगी। सोलर थर्मल परियोजनाओं में कोई भी जीवाष्म ईंधन अर्थात् कोयला, गैस, लिग्लाइट, मिट्टी का तेल, लकड़ी आदि की अनुमति नहीं होगी। बायोमास परियोजनाओं पर भारत सरकार के मानकों के अनुरूप अनुमन्य जीवाष्म ईंधनों का प्रयोग किया जा सकेगा। सोलर फोटोवोल्टाईक प्लाण्टों में सूर्य की रोशनी न उपलब्ध होने की दशा में बैटरी बैंक की चार्जिंग आदि के लिए जनसेट का उपयोग किया जा सकेगा परन्तु पर्यावरण मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा।
प्रवक्ता ने बताया कि विकासकर्ताओं/कोआपरेटिव संस्थाओं/सामुदायिक संस्थाओं के पास पर्याप्त तकनीकी कुशल मैन पावर का होना आवश्यक है, जो भारत सरकार एवं राज्य सरकार के मानकों एवं विशिष्टियों के अनुसार परियोजनाओं का निर्माण संचालन, रख-रखाव तथा प्रशिक्षण सुनिश्चित कर सकें। समस्त मिनी ग्रड परियोजनाओं के लिए एकल विण्डो क्लीयरेन्स के रूप में यूपीनेडा नोडल एजेन्सी का कार्य करेगी, जिसमें वांछित शासनादेशों, आवश्यक स्वीकृतियां/अनुमतियां, अनापत्ति, अनुमोदन, सहमति आदि का कार्य समयबद्ध रूप से कराया जाना शामिल होगा। स्वीकृत परियोजनाओं के लिए उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक नीति 2012 में सौर ऊर्जा अथवा अक्षय ऊर्जा से संचालित उद्योगों के लिए भू-उपयोग, पर्यावरण एवं स्टाम्प ड्यूटी आदि से सम्बन्धित दी गई छूट प्रदत्त होगी। स्वीकृत परियोजनाएं बिजली शुल्क से मुक्त होंगी। उत्तर प्रदेश शासन का अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग, यूपीनेडा द्वारा परियोजनाओं का अनुश्रवण सुनिश्चित किया जाएगा। नीति से सम्बन्धित विभिन्न प्रकरणों के पर्यवेक्षण, अनुश्रवण एवं समाधान हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा।