मेरी-तेरी नहीं हमारी भाषा को समझना होगा: नाईक
राज्यपाल ने पुस्तक ‘प्रो0 फजले इमाम – अदबी सफर के साठ साल‘ का लोकार्पण किया
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक कहा है कि प्रदेश में उर्दू और हिन्दी भाषा के संवर्धन के लिए बने संस्थान एक दूसरे की अच्छी पुस्तकों का अनुवाद करके प्रकाशित करें तो हिन्दी और उर्दू और नजदीक आयेंगी। दोनों भाषाओं में अनुवाद होने पर पाठकों की भी रूचि बढे़गी, जिसके फलस्वरूप दोनों भाषाओं को लाभ भी होगा। त्रिभाषीय शिक्षा पद्धति अपनाये जाने की मांग पर उन्होंने कहा कि कुलाधिपति की हैसियत से उनके पास ऐसा कोई प्रस्ताव आयेगा तो वे कुलपतियों से चर्चा करके योग्य निर्णय लेंगे। उन्होंने कहा कि जीवन बनाने में उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए सभी भाषाओं का समान सम्मान होना चाहिए।
राज्यपाल आज राय उमानाथबली प्रेक्षागृह में उर्दू रायटर फोरम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में डाॅ0 शबीह सुगरा की पुस्तक ‘प्रो0 फजले इमाम – अदबी सफर के साठ साल‘ के लोकार्पण समारोह में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। इस अवसर पर प्रो0 फजले इमाम, प्रो0 शारिब रूदौलवी, डाॅ0 आफताब रज़ा, अनीस अंसारी सहित बड़ी संख्या में उर्दू विद्वान उपस्थित थे। राज्यपाल ने कहा कि प्रो0 फजले इमाम साहब का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों सराहनीय हैं, उनको किताब में उतारना वास्तव में मुश्किल काम है। यह काम डाॅ0 शबीह ने किया इसलिए वे अभिनंदन करने के योग्य हैं।
श्री नाईक ने लोकार्पण के उपरान्त अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा उर्दू है। उर्दू भाषा एवं उर्दू पत्रकारिता ने भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। देश की आजादी और विकास में भाषा का महत्व होता है। यह महत्व समझने के लिए हमें मेरी-तेरी भाषा नहीं बल्कि हमारी भाषा को समझना होगा। हिन्दी, मराठी, गुजराती, उर्दू आदि सभी भारतीय भाषाएं हैं। इसमें बड़ी छोटी भाषा का हिसाब नहीं किया जा सकता। अलग-अलग समय पर भाषाएं आयी हैं लेकिन उनका भाव एक-दूसरे का जोड़ना है। उन्होंने कहा कि भाषा जोड़ने का काम करती है।
राज्यपाल ने कहा कि ‘सच बोलना है तो मैं उर्दू नहीं जानता, यदि कोई मुझे उर्दू सिखाये तो मैं भी पाँच-दस लाईने उर्दू में बोलूं।‘ अपने देश की भाषा जब अस्मिता से जुड़ जाती है उसका सबको सम्मान करना चाहिए। प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा उर्दू का ज्यादा से ज्यादा विकास हो, ऐसा मेरा प्रयास है। उन्होंने कहा कि साहित्य सृजन करने वालों के प्रति समाज कृतज्ञता प्रकट करें।
प्रो0 शारिब रूदौलवी ने प्रो0 फजले इमाम की प्रशंसा करते हुए कहा कि अगली पीढ़ी उनके सृजन से शोध और तहजीब का सलीका सीख सकती है। प्रो0 फजले इमाम ने साहित्य के कारवाँ और उसूलों को बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि साहित्य के साथ-साथ उन सामाजिक विषयों को भी देखें जिस पर प्रो0 फजले इमाम ने काम किया है तो किताब के साथ इंसाफ होगा।
प्रो0 फजले इमाम ने कहा कि किसी जबान ने धर्म को जन्म नहीं दिया है न ही किसी धर्म ने जबान को बनाया है। धर्म को भाषा में और भाषा को धर्म में नहीं बांटा जा सकता। अदब का रिश्ता समाज से है जिसकी आत्मा को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साहित्य को जिन्दा रखने के लिए समाज से जुड़ना होगा।
कार्यक्रम में अनीस अंसारी, आफताब रज़ा, डाॅ0 शबीह सुगरा, दुर्रे हसन सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 अब्बास रज़ा ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन वकार रिज़वी द्वारा दिया गया।