सपा सरकार ने वादा निभाया होता तो पहले ही छूट जाता इकबाल: रिहाई मंच
लखनऊ। रिहाई मंच ने आतंवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुहम्मद इकबाल की आठ साल के बाद आज हुई रिहाई को वादा खिलाफ सपा सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है। मंच ने कहा कि अगर सपा ने बेगुनाहों को छोड़ने के अपने वादे पर अमल किया होता तो इकबाल समेत दर्जनों युवा पहले ही रिहा हो गए होते।
रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने जानकारी दी कि थाना वजीरगंज लखनऊ अपराध संख्या 281/2007 में निरुद्ध शामली निवासी इकबाल पुत्र मुहम्मद असरा जिनके ऊपर आईपीसी 307, 121, 121ए, 122, 124ए, यूएपीए 16, 18, 20, 23 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया गया था को आज जेल स्पेशल कोर्ट लखनऊ ने बाइज्जत बरी कर दिया। उन्होंने बताया कि इकाबाल के ऊपर लखनऊ के अलावा दिल्ली में भी आतंकवाद का आरोप था जिसमें वह पहले ही बरी हो चुके हैं। आलम ने जानकारी दी कि इकबाल आज जिस मुकदमें में दोषमुक्त हुए हैं उसमें उन पर आरोप यह था कि वह जलालुद्दीन व नौशाद के साथ 23 जून 2007 में लखनऊ में आतंकी वारदात करने आए थे।
रिहाई मंच प्रवक्ता ने कहा कि इससे पहले अक्टूबर 2015 में इस मुकदमें में इकबाल के सहअभियुक्त पहले ही जब रिहा हो चुके हैं तो ऐसे में 23 जून 2007 में लखनऊ में आतंकी घटना का षडयंत्र व पुलिस ने जो मुठभेड़ दिखाई वह फर्जी साबित होती है। ऐसे में तत्कालीन डीजीपी बिक्रम सिंह व एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल समेत पूरी पुलिस की टीम जहां निर्दोषों के खिलाफ षडयंत्र में लिप्त थी तो वहीं आईबी द्वारा इन कथित आतंकियों के बारे में जो इनपुट जारी किया गया था व जिसकी निशानदेही पर पुलिस ने मुठभेड़ दिखाकर इनको पकड़ा उस पर आईबी प्रमुख को अपना पक्ष रखना चाहिए।
मंच के प्रवक्ता ने बताया कि 21 मई 2008 को दिल्ली से इकबाल की गिरफ्तारी में मोहन चन्द्र शर्मा व संजीव यादव जैसे दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारी थे। जिन्होंने उस वक्त कहा था कि आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा इकबाल ने राजधानी में जनकपुरी में विस्फोटक व अन्य पदार्थ छिपाए हैं और उसने पाकिस्तान में टेªनिंग ली थी। उन्होंने कहा कि बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ में अपने ही पुलिस के साथियों द्वारा मारे गए मोहन चन्द्र शर्मा तो नहीं हैं पर संजीव यादव से जरूर पूछताछ करनी चाहिए कि इकबाल के पास से उन्होंने जो 3 किलो आरडीएक्स बरामद दिखाया था वह उनके पास कहां से आया था, उन्हें किसी आतंकी संगठन ने आरडीएक्स दिया था खुफिया विभाग ने। उन्होंने कहा कि इकबाल से पास से जो विस्फोटक बरामदगी दिस्ली स्पेशल सेल ने दिखाई थी, उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने इकबाल को वह दिया था उसे दिल्ली की एक कोर्ट ने अपने फैसले में एक काल्पनिक शख्श बताया था। उसी काल्पनिक शख्स के नाम पर तारिक कासमी की भी गिरफ्तारी का पुलिस ने दावा किया था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर हुई बेगुनाहों की रिहाई के बाद यह साबित हो जाता है कि आईबी मुस्लिमों के खिलाफ एक संगठित आतंकी संस्था के बतौर काम कर रही है। इन रिहाइयों पर आईबी चीफ को स्पष्टीकरण देना चाहिए। शाहनवाज आलम ने कहा है कि अब समय आ गया है कि खुद सुप्रीम कोर्ट दिल्ली स्पेशल सेल के खिलाफ अपनी निगरानी में आतंकवाद के मामलों में उसके द्वारा की गई गिरफ्तारियों की जांच कराए क्योंकि दिल्ली स्पेशल के दावे अनगिनत मामलों अदउलतों द्वारा खारिज किए जा चुके हैं। उन्होंने दिल्ली स्पेशल को सरकार और आईबी संरक्षित आतंकी संगठन करार देते हुए कहा कि कश्मीरी लियाकत शाह को फंसाने के मामले में तो एनआईए ने दिल्ली स्पेशल सेल के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश तक की है। जिसमें उसने पाया था कि लियाकत शाह को फंसाने के लिए दिल्ली स्पेशल सेल ने अपने ही एक मुखबिर साबिर खान पठान से लियाकत के पास से विस्फोटक दिखाने की कहानी गढ़ी थी। यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि दिल्ली स्पेशल सेल का यह मुखबिर ‘फरार’ चल रहा है। उन्होंने कहा कि जब दिल्ली स्पेशल सेल से जुड़े तत्व ही आतंकी घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं और अदालत में उसे पेश करने के बजाए दिल्ली स्पेशल सेल उसे फरार बता रही है तब दिल्ली स्पेशल और उसके अधिकारियों द्वारा आतंकवाद के मामलों में की जा रही गिरफ्तारियों पर अदालतें कैसे भरोसा कर ले रही हैं।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के नेता राजीव यादव ने बताया कि इकाबाल की रिहाई सिर्फ यूपी पुलिस द्वारा संगठित रूप से मुसलमानों को आतंकवाद में फसाने का सुबूत नहीं है बल्कि यह संगठित आतंकी गिरोह दिल्ली स्पेशल सेल की मुसलमानों को फंसाने की पूरी रणनीति का पर्दाफाश करती है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली स्पेशल सेल पूरे देश में राज्यों के सम्प्रुभुता को धता बताते हुए बेगुनाहों को अपने टॅार्चर सेंटर में रखकर जब किसी राजनेता का कद बढ़ना होता है तब किसी मुस्लिम युवा को दिल्ली स्टेशन से गिरफ्तार दिखा देती है। उन्होंने कहा कि इकबाल के दोष मुक्त होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती व वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्योंकि जहां यह मायावती के कार्यकाल में पकड़ा गया था तो वहीं अखिलेश यादव की वादा खिलाफी के चलते सालों जेल में सड़ने के लिए मजबूर था। उन्होंने बताया कि इकबाल ने यह संदेह जाहिर किया है कि उसके शरीर में चिप लगाई गई है। जो एक अलग से जांच का विषय है।
आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों का मुकदमा लड़ने वाले रिहाई मंच अध्यक्ष व इसम मामले के अधिवक्ता मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर पकड़े जाने पर तो गृहमंत्री से लेकर डीजीपी तक बिना सबूतों के सार्वजनिक रूप से बेगुनाहों पर आतंकी का ठप्पा लगा देते हैं। ऐसे में अगर इन बेगुनाहों को वह देश का नागरिक मानते हैं तो इनकी रिहाई पर भी उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर विदेशों से कई बार खबरें आती हैं कि वहां के प्रमुख बेगुनाहों से माफी मांगते हैं पर हमारे देश में लगातार हो रही बुगुनाहों की रिहाई के बाद भी सरकारें माफी मांगना तो दूर अफसोस भी जाहिर नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने वादा किया था कि आतंक के आरोपों से बरी हुए लोगों को मुआवजा व पुर्नवास किया जाएगा पर खुद अखिलेश सरकार ने अब तक अपने शासन काल में दोषमुक्त हुए किसी भी व्यक्ति को न मुआवजा दिया न पुर्नवास किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को डर है कि अगर आतंक के आरोपों से बरी लोगों को मुआवजा व पुर्नवास करेंगे तो उनका हिन्दुत्वादी वोट बैंक उनके खिलाफ हो जाएगा। पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। बेगुनाहों की रिहाई के मामले में वादाखिलाफी करने वाले आखिलेश यादव अब अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे या फिर 2012 के चुनावी घोषणा पत्र की तरह फिर बेगुनाहों को रिहा करने का झूठा वादा करेंगे।