खाद्य सुरक्षा पर उदासीन है यूपी सरकार: बी.एल. भारती
15 मार्च को होगा लखनऊ में खेत मजदूरों का विशाल धरना
लखनऊ: खेत मजदूरों के हित में एक सर्वसमावेशी कानून बनाने, ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने, मनरेगा के तहत साल भर काम और मजदूरी की दर 300 रू0 घोषित करने, खाद्य सुरक्षा कानून तुरन्त लागू कर 90 फीसदी जनता को दो रूपया की दर से 40 किलो खाद्यान्न देने, खेत मजदूरों, दलितों, गरीब किसानों को कम से कम दो एकड़ कृषि योग्य भूमि आवंटित करने, वनाधिकार कानून लागू करने, दलितों की भूमि बिक्री पर पुनः प्रतिबंध लगाने, ग्रामीण मजदूरों को पक्का मकान, पीने का पानी, मुफ्त बिजली, पेंशन, दुर्घटना में मृत्यु पर एक लाख व घायल होने पर 50 हजार रू0 मुआवजा देने, दलितों पर अपराध करने वालों पर कठोर कार्यवाही करने व दलित हितों की सभी बंद योजनायें चालू करने आदि मांगों पर उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन की ओर से 15 मार्च को लखनऊ में विशाल धरना दिया जायेगा। धरना की तैयारी में सभी जिलों प्रचार जत्थे चलाये जायेंगे। एक लाख से अधिक पर्चे वितरित किये जायेगे। दीवाल लेखन किया जायेगा। ग्राम स्तरीय सैकड़ों सभायें की जायेंगी। खेत मजदूर यूनियन के सदस्य बनाकर संगठन का विस्तार किया जायेगा।
राज्य कौंसिल बैठक को सम्बोधित करते हुए राज्य महासचिव बी.एल. भारती ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार खाद्य सुरक्षा लागू करने में उदासीन है। मनरेगा लागू करने में भी सरकार की ढिलाई है। प्रदेश में रोजगार व मजदूरी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। प्रदेश की दो तिहाई से अधिक जनता गरीबी में पल रही है। राज्य सरकार मजदूरों किसानों को संकट से उबारने में नाकाम रही है। बुंदेलखण्ड सहित कई ग्रामीण क्षेत्रों में भुखमरी के हालात हैं। घास फूस खाकर किसी प्रकार लोग जी रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली ध्वस्त है। प्राथमिक शिक्षा चैपट हो रही है। लाखों एकड जमीन भूमाफियाओं के कब्जे में है जिसे निकाल कर खेत मजदूरों दलितों में बांटा जा सकता है। बनाधिकार कानून का फायदा बन निवासियों को नहीं मिल रहा है। सरकार ने भूमि सुधार कानून में बदलाव किया है। दलितों की जमीन बिक्री से प्रतिबंध हटाया है और भूमि पटटा देने में भी दलित भूमिहीनों की प्राथमिकता में बदलाव किया है। प्रदेश में कानून व्यवस्था ठीक नहीं है। चोरी डकैती अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध आम बात हो गई है। दलितों पर होने वाले अपराधों में बष्द्वि हुई है। थाना तहसील ब्लाक बिजली समाजकल्याण सहित तमाम विभागों में निचले स्तर पर भ्रष्टाचार बढा है। 2017 के विधान सभा चुनाव को देखते हुए आर एस एस भाजपा विहिप की तिगडी मंदिर मुददा सहित तमाम साम्प्रदायिक मुददे उठाकर प्रदेश का अमन चैन खराब करने पर तुली हुयी है। साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ कदम उठाने हेतु राज्य सरकार में इच्छाशक्ति की कमी साफ दिखाई देती है। पहंचान की राजनीति को आगे बढाने हेतु जातिवादी पार्टियां व जातिवादी संगठनों की सक्रियता बढ रही है। साथियों हमें जन अभियान चलाकर जनता में जागरूकता लानी होगी और मांगों पर संघर्ष तेज करना होगा।
उन्होंने केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की नीतियां मेहनतकश जनता और संविधान पर हमला कर रहीं हैं। एक ओर नवउदारवादी आर्थिक नीतियां जोर शोर से लागू की जा रहीं हैं तो दूसरी ओर आर एस एस विहिप भाजपा की तिगडी द्वारा साम्प्रदायिक धुर्वीकरण तेजी से बढाया जा रहा है। मेहनतकश जनता का शोषण तेजी से हो रहा है। गरीब और अमीर के बीच की दूरी बढ रही है। एक फीसदी लागों के हाथ में देश की कुल संम्पदा का 53 फीसदी है। डालर अरबपतियों की सम्पत्ति में तेजी से बृद्वि हो रही है। कृषि संकट के चलते गरीबों की संख्या लगातार बढ रही है। लगातार बढती मंहगाई बेरोजगारी तथा बदहाली से आम जनता की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। दुनियां में सबसे अधिक भुखमरी से ग्रसित लोग और कुपोषित बच्चे भारत में ही हैं। जीवन उपयोगी बस्तुओं की बढती कीमतें जनता पर और अधिक संकट बढा रहीं हैं। खाद्य सुरक्षा लागू करने को बार-बार समय सीमा बढाकर जनता के साथ मजाक किया जा रहा है। गहराते कृषिसंकट से खेत मजदूरों व किसानों को पेट पालना मुश्किल हो रहा है। अलाभकारी खेती के चलते कृषि क्षेत्र में रोजगार का संकट बढ गया है। मोदी सरकार किसानों की आत्महत्यायें रोकने में विफल है। ग्रामीण गरीब रोजगार की तलाश में अपना घर छोडकर शहरों की ओर जाने को मजबूर हैं। सरकार ने मनरेगा में बजट आबंटन घटाया है मनरेगा में औसत रोजगार में कमी आई है। केन्द्र की जन धन योजना से जनता निराश है। भूमि गरीबों के बजाय पूंजीपतियों को दी जा रही है। दलितों व बंचितों को सामाजिक न्याय मिलना मुश्किल हो रहा है। मोदी सरकार में दलितों पर अपराधों में 19 फीसदी की बृद्वि हुई है।छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से दलितों के प्रति भाजपा व आरएसएस का नजरिया उजागर हुआ है। बडे पैमाने पर आरक्षित पद खाली पडे हुए हैं। निजीकरण के चलते आरक्षित नौकरियों की संख्या लगातार घट रही है। उच्च शिक्षा में दलितों के प्रवेश में गिरावट दर्ज की गई है। मजदूरों से संगठन बनाने का अधिकार छीना जा रहा है। काम के घंटे बढाये जा रहे हैं। धरना प्रदर्शन करने के मौलिक अधिकार से बंचित किया जा रहा है। कुल मिलाकर पूंजीवाद का सीधा हमला मेहनतकश जनता पर है। नवउदारवादी राजनीति देश की जनतांत्रिक व्यवस्था को खोखला कर रही है। चुनाव में धन वल वाहुबल का प्रयोग साफ देखा जा सकता है।