गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य न बढ़ाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण: मारूफ ख़ान
लखनऊ: उ0प्र0 के गन्ना किसानों की बदहाली के बावजूद प्रदेश सरकार द्वारा गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य न बढ़ाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। खुद को किसानों का हमदर्द एवं हितैषी बताने वाली समाजवादी पार्टी के शासनकाल में लगातार दूसरे वर्ष गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कोई बढ़ोत्तरी न किया जाना प्रदेश सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को उजागर करती है।
उ0प्र0 कंाग्रेस कमेटी के महासचिव एवं मीडिया विभाग के वाइस चेयरमैन मारूफ खान ने आज जारी बयान में कहा कि एक ओर जहां समाजवादी पार्टी द्वारा वर्ष 2011 में गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 350 रूपये प्रति कुंतल किये जाने के लिए जहां विधानसभा में खूब हंगामा किया था और सड़कों पर आन्दोलन भी किया था वहीं दूसरी तरफ अगले ही वर्ष 2012 में सरकार बनने के बाद से समाजवादी पार्टी का दृष्टिकोण गन्ना किसानों के प्रति बदल गया और गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य आज एक बार फिर 280 रूपये प्रति कुंतल घोषित किया जाना, समाजवादी पार्टी के दोहरे मापदण्ड को उजागर करता है और किसानों के साथ धोखा है।
श्री खान ने कहा कि गन्ना किसानों केा गन्ने की उपज के लिए उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई तथा मिलों तक उपज को पहुंचाने के लिए ढुलाई आदि के मद में इस वर्ष लगभग दो गुना अधिक लागत लगानी पड़ी है जबकि गन्ना किसानों को अपनी उपज दो वर्ष पहले की दर पर बेंचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
श्री खान ने प्रदेश सरकार द्वारा आज कैबिनेट की बैठक में बुन्देलखण्ड को लेकर की गयी घेाषणाओं को सिर्फ एक छलावा करार दिया है। उन्होने कहा कि समाजवादी पार्टी के साढ़े तीन वर्ष से अधिक शासनकाल बीत जाने के बाद भी बुन्देलखण्ड की जनता भुखमरी की कगार पर है और वहां से पलायन करने के लिए विवश है। जबकि प्रदेश सरकार को बुन्देलखण्ड में खनन से अरबों रूपये राजस्व मिल रहा है, जिसको यह सरकार सैफई महोत्सव जैसे आयोजन एवं सरकार की नाकामियों को छुपाने के लिए बर्बाद कर रही है।