जघन्य अपराधों में नाबालिगों पर लागू होगा व्यस्कों वाला कानून
जुवेनाइल जस्टिस बिल को राज्यसभा में मिली मंज़ूरी
नई दिल्ली: देश की आत्मा को झकझोर देने वाले निर्भया गैंगरेप के तीन साल बाद संसद ने मंगलवार को जुवेनाइल जस्टिस से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसमें बलात्कार सहित संगीन अपराधों के मामले में कुछ शर्तों के साथ किशोर माने जाने की आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। इसमें जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पुनर्गठन सहित कई प्रावधान किए गए हैं।
देश में जुवेनाइल जस्टिस के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डालने वाले किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक को राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक पर लाए गए विपक्ष के सारे संशोधनों को सदन ने खारिज कर दिया। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है। विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किए जाने के विरोध में माकपा ने सदन से वॉकआउट किया।
इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किए गए हैं, जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है। इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं।
उन्होंने संगीन अपराध के लिए किशोर माने जाने की उम्र 18 से 16 वर्ष करने पर कुछ सदस्यों की आपत्ति पर कहा कि अमेरिका के कई राज्यों, चीन, फ्रांस सहित कई देशों में इन अपराधों के लिए किशोर की आयु नौ से लेकर 14 साल तक की है। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस के आकड़ों पर भरोसा किया जाए तो भारत में 16 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अपराध का चलन तेजी से बढ़ा है। मेनका ने किशोर न्याय बोर्ड में किशोर आरोपी की मानसिक स्थिति तय करने की लंबी प्रक्रिया के संदर्भ में कहा कि ऐसा प्रावधान इसीलिए रखा गया है, ताकि किसी निर्दोष को सजा न मिले।
सदन में इस विधेयक को पेश करने और इस पर चर्चा के दौरान 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के माता-पिता भी दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। इस विधेयक के प्रावधान पिछली तारीख से प्रभावी नहीं होंगे। इस वजह से निर्भया मामले के नाबालिग दोषी पर विधेयक के प्रावधान लागू नहीं होंगे। उल्लेखनीय है कि इस नाबालिग दोषी को अदालत द्वारा रिहा कर दिया गया है। मेनका ने सदस्यों के इस आरोप को भी गलत बताया कि गरीबी के कारण किशोर ऐसा अपराध करते हैं। उन्होंने कहा कि स्वीडन में एक भी व्यक्ति गरीब नहीं है, लेकिन उस देश में बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले होते हैं।
उन्होंने कहा कि देश में कुछ बाल सुधार गृहों की स्थिति खराब हो सकती है, लेकिन यह मौजूदा कानून को पारित नहीं करने का कारण नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि देश के हर पुलिस थाने में किशोर मामलों से संबंधित एक पुलिस अधिकारी पहले से ही तैनात है। उसके लिए अलग से तैनाती करने की आवश्यकता नहीं है।
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बाल सुधार गृहों के लिए पर्याप्त धन खर्च नहीं किए जाने के आरोपों को गलत बताते हुए मेनका ने कहा कि बाल सुधार गृहों में हर महीने प्रति बच्चा 750 रुपये खर्च किया जाता था, जिसे 2014 में बढ़ाकर 2,000 रुपये प्रति बच्चा कर दिया गया।
किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन के लिए इस विधेयक में किए गए प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक बाल सुधार गृहों की निगरानी और रख-रखाव का मुआयना करने का जिम्मा केवल राज्य सरकारों पर था, लेकिन इस विधेयक में बाल सुधार के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ एनजीओ को मुआयने के काम में जोड़ा गया है। साथ ही पहली बार वरिष्ठ महिला वकीलों द्वारा इन सुधार गृहों का सामाजिक ऑडिट भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एनजीओ द्वारा बाल सुधार गृहों के मुआयने का काम एक साल में शुरू हो जाएगा।
कानूनों से समाज में बलात्कार जैसे अपराध नहीं रुक पाने के कई सदस्यों के तर्क पर मेनका ने कहा कि निर्भया कांड के बाद बलात्कार के खिलाफ कड़ा कानून बनाने के कारण पिछले दो सालों में बलात्कार के मामलों को दर्ज कराने के लिए महिलाएं अब अधिक सामने आ रही हैं और ऐसे मामले ज्यादा प्रकाश में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी किशोर द्वारा बलात्कार किए जाने जैसे अपराध को कभी भी ‘बचकाना कृत्य’ नहीं कहा जा सकता।