जाम-समस्या के लिए ‘द्रोण’ का सहारा लें
आजादी के बाद सड़कों व रेलों की ओर सबसे पहले ध्यान दिया जाना चाहिए था, किन्तु देश को जो अदूरदर्शी नेतृत्व मिला, उसने देश की अत्यंत जरूरी आवश्यकताओं की उपेक्षा की। सड़कों व रेलों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। आजादी के बाद नहीं के बराबर नई रेल-पटरियां बिछाई गई, जबकि होना यह चाहिए था कि उसी समय सभी रेल-लाइनों को दुहरा कर दिया जाने के लिए कदम उठाया जाता। सवारी गाडि़यों व मालगाडि़यों के लिए अलग रेल-लाइनें कर दी जानी चाहिए थीं। चीन भारत के बाद आजाद हुआ, किन्तु वहां यह काम बहुत पहले कर दिया गया। चीन को योग्य एवं दूरदर्शी नेतृत्व मिला, इसलिए वहां कायाकल्प होता गया और वह देश महाशक्ति बन गया। इसके विपरीत हमारे देश को अयोग्य, अदूरदर्शी, भ्रष्ट एवं स्वार्थ में डूबा वंशवादी नेतृत्व मिला, जिसका परिणाम देश भुगत रहा है और अब भी विकासशील देश बना हुआ है।
यदि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने देश में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना व अन्य सड़क-योजनाओं को युद्ध-स्तर पर लागू कर देश को चौड़ी सड़कें न दी होतीं तो कल्पना की जा सकती है कि हम अभी किस पिछड़े युग में रह रहे होते! चैड़ी सड़कें हमारे देश के लिए सपना थीं। अटल-सरकार के जाने पर जब कांग्रेस पुनः सत्तारूढ़ हुई तो मनमोहन सिंह/सोनिया गांधी की सरकार ने ईश्र्यावश अटल-सरकार की सड़क-योजनाओं पर काम रोक दिया। उसका जो परिणाम हुआ, उसे देखने के लिए केवल लखनऊ-कानपुर मार्ग का उदाहरण पर्याप्त है। उक्त सड़क का उन्नाव से कानपुर तक का हिस्सा दस वर्षों से बनने को तरस रहा था तथा जनता को नित्य घंटों जाम में फंसे रहना पड़ता था। दुर्घटनाओं में प्रतिववर्ष हजारों लोग हताहत हो रहे थे। मोदी-सरकार के आने के बाद उस हिस्से पर काम शुरू हो पाया है। अटल-सरकार के पहले लखनऊ-कानपुर राजमार्ग एक पतली सड़क के रूप में था तथा उस पर हर साल दुर्घटनाओं हजारों व्यक्ति मौत के मुंह में समा जाया करते थे। अभी भी उस सड़क को और दुगना किए जाने की आवश्यकता है। एक अन्य उपाय यह हो सकता है कि पूरे लखनऊ-कानपुर मार्ग पर फ्लाईओवर बनाकर उस सम्पूर्ण सड़क को दुमंजिला कर दिया जाय।
पिछली कुछ अवधि में मुझे दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के कई नगरों में जाने का अवसर मिला। सभी जगह एक बात में समानता दिखाई दी कि सर्वत्र जाम की समस्या थी। कानपुर में मैं एक सप्ताह रुका और वहां नित्य जाम में मेरे तीन-चार घंटे बरबाद हुए। वहां लोगों के लिए यह कष्ट आदत में शुमार हो चुका है। कानपुर-जैसी दुर्दशा उत्तर प्रदेश के सभी नगरों में है तथा वहां लोग नित्य घंटों जाम झेलने के लिए मजबूर हैं। जाम में फंसे लोगों को यह पता नहीं होता कि जाम क्यों लगा है और उससे कब मुक्ति मिलेगी? राजधानी लखनऊ का भी यही हाल है। लखनऊ में हजरतगंज से केसरबाग क्षेत्र की ओर आने-जाने में जाम झेलना आम बात है। इलाहाबाद में सिविललाइन से कल्याणी देवी क्षेत्र की ओर आने-जाने में हर समय जाम लगा रहता है। अन्य सभी छोटे-बड़े शहरों का भी ऐसा ही हाल है।
प्रदेश में शहरों का तो बुरा हाल है ही, एक शहर से दूसरे शहर को जोड़ने वाली जो सड़कें हैं, उनकी भी बहुत बुरी दशा है। अधिकांश सड़कें गड्ढों से भरी हुई जर्जर दशा में हैं। उन सड़कों पर यात्रियों को पहली यातना सड़कों की बहुत खराब हालत के कारण झेलनी पड़ती है तो दूसरी दुर्दशा ट्रकों के कारण होती है। इन ट्रकों के कारण सड़कों पर प्रायः मीलों लम्बा जाम लगा रहता है। ट्रकवालों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि वे तो लम्बे समय के लिए यात्रा पर निकलते ही हैं। लेकिन अन्य यात्रियों को गंतव्य पर पहुंचने की जल्दी रहती है, इसलिए उनकी बड़ी मुसीबत हो जाती है। अधिकांश सड़कों पर जाम झेलना पड़ता है तथा यह पता नहीं होता कि रास्ता कब साफ होगा।
जनता सड़कों पर भीषण यातनाएं झेल रही है, लोगों की जानें जा रही हैं। लेकिन सरकारों ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। जबकि सड़कों की इस समस्या के निवारण के लिए तत्काल युद्ध-स्तर पर कार्रवाई होनी चाहिए। बड़े राजमार्गाें पर जाम की निगरानी के लिए ‘द्रोण’ का सहारा लिया जाना चाहिए, ताकि जाम या तो लगने ही न पाए तथा लगे भी तो उसका तत्काल निवारण हो। सड़कों को गड्ढों एवं ट्रकों से मुक्ति दिलाई जानी चाहिए। माल-परिवहन के लिए ट्रकों के बजाय रेलों का इस्तेमाल बढ़ाया जाना चाहिए। इससे माल-परिवहन सस्ता होगा तथा ट्रकों के भार से सड़कों पर जो गड्ढ़े हो जाते हैं, उनसे बचाव होगा। इसके अलावा शहरों व बाहर की अधिकांश सड़कों को फ्लाईओवरों से पाटकर दुमंजिला बना दिया जाना चाहिए। किसी भी सड़क का निर्माण करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उस पर फ्लाईओवर बनाया जाएगा। फ्लाईओवरों के निर्माण से ही जाम की समस्या का कारगर इलाज हो सकेगा।