आमिर के समर्थन में आये आज़म, लिखा पत्र
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आज़म खान ने बॉलीवुड स्टार और नेक इंसान आमिर को पत्र लिखकर इस बात का इज़हार किया हैं कि उन्होंने जो कहा है दिल से कहा है और सच कहा है, उन्हें किसी से डरने की ज़रुरत नहीं। आज़म ने आमिर खान के देश के मौजूदा हालात पर दिए गए बयान के ब्यान के बाद मचे हो हल्ले पर कहा कि उन्हें अपना दिल छोटा करने की ज़रुरत नहीं हैं। ज़रुरत इस बात की है वह अपनी सलाहियत को अपने फन के साथ-साथ उन लोगों को तालीम देने की तरफ़ भी लगाएं जिन्हें अनपढ़, जाहिल और मजबूर बनाकर रखना हुक्काम-ए-वक़्त की मसलहत भी है, मंशा भी और मंसूबा भी।
आज़म खान का आमिर खान को लिखा पत्र इस तरह है:-
आज टी.वी. चैनलों और अख़बारात के ज़रिये से आपके अहसासात के बारे में मालूम हुआ और जि़न्दगी भर ऐसे ही हालात से लड़ने वाले शख़्स को अपने जज़्बात ने इस बात के लिये मजबूर किया कि मैं आपको अपनी इस तहरीर के ज़रिये यह बतला सकूँ कि जब आपकी अहलिया और आप जैसे लोग इस सच को महसूस कर सके हैं, तो फिर उन कमज़ोर, लाचार, नादार और बेसहारा लोगों के बारे में यक़ीनन सोचने की हमारी जि़म्मेदारी है जिनके लिए आये दिन बहुत ना-ज़ेबा अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया जाता है।
इन्तेहा तो उस वक़्त होती है जब दस्तूरी कुर्सियों पर बैठे हुए लोग वह कहते हैं जिससे दिल टूटते हैं। किसी भी घर के टूटने की शुरूआत दिल के टूटने से ही होती है, क़ुदरत के इस बुनियादी निज़ाम को नज़र अन्दाज करने और उससे बग़ावत करने का अन्जाम यह है कि खुद दुनिया बरबादी के दहाने पर आकर खड़ी हो गयी है।
आप एक बासलाहियत फ़नकार हैं और जो कुछ भी मादर-ए-वतन में आपको मिला है वह आपकी ग़ैर-फ़रामोश सलाहियतों का नतीजा है। हिन्दुस्तान में आपकी पहचान सिर्फ़ आपके फ़न से नहीं है बल्कि 125 करोड़ के हिन्दुस्तान में इन सलाहियतों का दूसरा कोई नहीं है, इस बुनियाद पर है।आपके अहसासात का जवाब देने के लिए जिन लोगों ने आपनी कमान में तरकश कसे हैं उन्होंने मुझे भी उससे जोड़ने की कोशिश की है। लिहाज़ा मैंने आपको इस ख़त के ज़रिये यह बताने की कोशिश की है कि तक़सीम-ए-मुल्क के वक़्त दो नज़रिये पेश-ए-नज़र थे, एक मज़हब के नाम पर हिन्दुस्तान से तक़सीमशुदा टुकड़ा जिसे पाकिस्तान कहा गया और दूसरा वह अज़ीम हिन्दुस्तान जिसको ग़ुलाम न होने देने और आज़ादी की लड़ाई के लिए मुल्क के लोगों ने कु़र्बानियाँ दी। इन जियालों में सुल्तान टीपू, बहादरुशाह ज़फ़र, अली बिरादरान (मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली), बी अम्मा, हसरत मोहानी, मौलाना शिबली, अशफ़ाक़-उल्ला ख़ाँ और मौलाना अबुलकलाम आज़ाद जैसे बेशुमार नाम हैं, जिन्होंने बाबा-ए-क़ौम ’’बापू’’ आज़ाद हिन्दुस्तान के वज़ीर-ए-आज़म पण्डित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल जैसे लोगों की यक़ीनदहानी पर हिन्दुस्तान में ही रूकने का फ़ैसला किया। उन्होंने एक अल्लाह, एक क़़ुरआन और एक नबी के नाम पर बनने वाले पाकिस्तान, जिसका बज़ाहिर मुस्तक़बिल अन्धेरों से घिरा हुआ था, जैसे कि आज के हालात से साबित है, उसे यकदम ख़ारिज करते हुये मादर-ए-वतन हिन्दुस्तान में रहने को तरजीह दी। हालाँकि उस वक़्त का हिन्दुस्तान बँटवारे के नाम पर बुरी तरह से लहुलहान था, ख़ौफ़ था, दहशत थी, क़त्ल-ओ-ग़ारतगरी, और आगज़नी थी, यह सब कुछ होते हुये भी अकाबरीन की जानिब से एक यक़ीनदहानी भी थी। पाकिस्तान बनाने और उसमें जाने वालों में से रूक गये हिन्दुस्तानी मुसलमानों को मज़हब का ग़द््दार कहा गया, कल उनसे यह सुनने को मिला और आज जिनके साथ रहने के लिए रूके थे उनसे यह सब कुछ सुनने को मिल रहा है, जिसकी गुन्जाइश किसी ग़ैर-मुहज़्ज़ब समाज में भी नहीं हो सकती। मगर इन हालात में बहुत ज़्यादा दिलबरदाश्ता होने की ज़रूरत नहीं है। लाखों की भीड़ जिसे ज़मीन पर बोझ महसूस किया जाता है, चीखती है और दहाड़ती भी है, तो उसकी आवाज़ ज़ालिम हुक्मराँ तक नहीं पहुंचती, लेकिन जब आप जैसे लोग लबकुशाई करते हैं तो उसकी गूँज बहुत दूर तक सुनाई देती है। ऐसे कई मौक़े खुद हमारी जि़न्दगी में भी आये लेकिन हमने खुद को सम्भालने की कोशिश की उसमें कामयाब भी रहे। यह अलग बात है कि एक तरफ हमारे चाहने वालों की तादाद ला-महदूद है, लेकिन हमसे नफ़रत और हिक़ारत का रिश्ता रखने वालों की गिनती भी कम नहीं है। इन हालात में भी आप अपने तौर पर पैग़ाम देते रहे और मैं तालीम के मैदान में सियासत के साथ-साथ काफ़ी आगे तक निकल गया, क्योंकि बस यही एक रास्ता है जो आदमी को इन्सान बना सकता है और इन्सान को महसूस करने की सलाहियत दे सकता है।
मैं आपको इस जानिब भी दावत देना चाहता हूँ कि अपनी सलाहियत को अपने फन के साथ-साथ उन लोगों को तालीम देने की तरफ़ भी लगाईये जिन्हें अनपढ़, जाहिल और मजबूर बनाकर रखना हुक्काम-ए-वक़्त की मसलहत भी है, मंशा भी और मंसूबा भी। लोगों के ऐतराज़ात आपके इरादों को कमज़ोर न करें, यह मेरी अल्लाह से दुआ है। साथ ही आपकी अहलिया आपको और कोई ऐसा फै़सला लेने के लिए आमादा न करें जिसके मतलब लोग ग़लत निकालें, क्योंकि लोग ऐसा ही चाहते हैं। आप जैसे लोगों की बहुत बड़ी जि़म्मेदारी यह है कि उन करोड़ों सेक्युलर लोगों का क्या होगा जो ताक़त में न होते हुये भी आपके साथ हैं।
मंजि़ल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते ।
दो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते।।
एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना।
एक वो हैं कि अपनों को भी अपना नहीं कहते।।
माना कि मियाँ हम तो बुरों से भी बुरे हैं।
कुछ लोग तो अच्छों को भी अच्छा नहीं कहते।।
मोहतरम नवाज़ देवबन्दी के इन अशआर से यक़ीनन आपको तक़वियत हासिल हुयी होगी। इसी के साथ मुल्क के मायानाज़ कवि और शायर प्रोफ़ेसर उदय सिंह साहब का एक शेर मज़ीद बाइस-ए-तक़वियत साबित होगा-
न तेरा है, न मेरा है,
यह हिन्दुस्तान सबका है।
नहीं समझी गयी यह बात,
तो नुक़सान सबका है।
बहुत सी नेक ख़्वाहिशात के साथ।
(मोहम्मद आज़म ख़ाँ)
आमिर ख़ान,
अभिनेता,
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