ओबीसी आरक्षण कोटा से अति पिछड़ी जातियों का कोटा अलग हो: दारापुरी
लखनऊ: ओबीसी आरक्षण कोटा से अति पिछड़ी जातियों का कोटा अलग किया जाये. यह बात आज एस.आर .दारापुरी, राष्ट्रीय प्रव्क्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने प्रेस विज्ञप्ति में कही है. उन्होंने आगे कहा है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी के लिए में वर्तमान में 27% आरक्षण कोटा उपलब्ध है परन्तु उस में अति पिछड़ी जातियां जिन की जनसँख्या पिछड़ी जातियों में 33% है को कोई लाभ नहीं मिल रहा है क्योंकि उस का बड़ा हिस्सा ओबीसी में अगड़ी जातियां जैसे यादव, कुर्मी और जाटों द्वारा हथिया लिया जा रहा है. अतः अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ तभी मिल सकता है जब उन का कोटा अलग कर दिया जाये. आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने इस मांग को लगातार उठाया है और उसे अपने सामाजिक न्याय के एजंडे में शामिल किया है.
यह ज्ञातव्य है कि मंडल आयोग ने भी अति पिछड़ी जातियों को अलग कोटा देने की बात कही थी. बिहार में यह व्यवस्था कर्पूरी ठाकुर फार्मूले के अंतर्गत काफी समय से लागू है. उत्तर प्रदेश में भी इसी उद्देश्य से 1976 में डॉ. छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में “सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग” बनाया गया था जिस ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों के कोटे को पिछड़े वर्ग की अगड़ी जातियों, हिन्दू अति पिछड़ी जातियों और मुस्लिम अति पिछड़ी जातियों में उन की आबादी के अनुपात में बाँटने की संस्तुति की थी परन्तु उसे आज तक लागू नहीं किया गया है. इस के विपरीत सपा और बसपा उन को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने का झूठा आश्वासन देकर उन का वोट बटोरने की कोशिश करती रही है जो कि संभव नहीं है क्योंकि ये जातियां अछूतों की श्रेणी में नहीं आती हैं. अनुसूचित जाति की सूची में किसी जाति को डालने या निकालने का अधिकार केवल राष्ट्रपति महोदय को है, प्रदेश सरकार को नहीं. फिर भी लगभग सभी राजनितिक पार्टियाँ इन जातियों को गुमराह करने में लगी रहती हैं जैसा कि वर्तमान में सपा भी कर रही है. अतः आइपीएफ मांग करती है कि वर्तमान सरकार अति पिछड़ी जातियों के लिए ओबीसी कोटे मे से अलग कोटा निर्धारित करे ताकि उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल सके. इस के लिए पिछड़ी जातियों को भी गुमराह होने की बजाये एक जुट हो कर अलग कोटे की मांग उठानी चाहिए.