भाषा का काम एक-दूसरे से जोड़ना है: नाईक
राज्यपाल ने मौलाना अबुल कलाम आजाद पर दो द्विवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया
लखनऊः मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। उन्होंने सदैव देश में एकता बनाये रखने पर बल दिया। उनके विचारों को आज के संदर्भ में साम्प्रदायिक सौहाद्र के रूप में देखने की जरूरत है। भारत देश सबका है, इस प्रकार की भावना को लेकर काम करें तो ऐसे कार्यक्रमों का लाभ समाज को मिलेगा। हमें यह देखने की जरूरत है कि देश में एकता बढ़ाने की दृष्टि से हम क्या कर सकते हैं। इस संदर्भ में युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कैसे करें, विचार का विषय है।
उक्त विचार उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, राम नाईक ने आज होटल क्लार्क अवध में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किये। संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, भारत सरकार द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र में राज्यपाल ने उर्दू भाषा में लिखी एक पुस्तक ‘मौलाना अबुल कलाम आजाद एक मुतालेया‘ का लोकार्पण भी किया। पुस्तक की रचना प्रो0 अब्दुस सत्तार दलवी द्वारा की गयी है। संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष डाॅ0 नवाज देवबंदी, प्रो0 शारिफ रूदौलवी, प्रो0 रिजवान कैसर, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलपति डाॅ0 खान मसूद, श्री अतहर नबी सहित बड़ी संख्या में उर्दू के मूर्धन्य विद्वान एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
राज्यपाल ने कहा कि आज का कार्यक्रम ऐतिहासिक महत्व का है। संयोग की बात है कि आज पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 इंन्दिरा गांधी का जन्मदिन है और देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया है। कार्यक्रम में राज्यपाल द्वारा राष्ट्रीय अखण्डता की शपथ भी दिलाई गयी। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के माध्यम से मौलाना अबुल कलाम आजाद के व्यक्तित्व की जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचेगी। मौलाना आजाद ने आई0आई0टी0 के साथ-साथ शिक्षा में व्यापक सुधार के लिए अनेक आयोगों का गठन किया। मौलाना आजाद के विचारों से हमें देश को आगे बढ़ाने के लिए एक मार्गदर्शक सोच मिलेगी। उन्हांेने कहा कि श्रद्धांजलि के रूप में हमें आज की शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ बेरोजगारी समाप्त करने एवं सामाजिक एकता को बढ़ाने के लिए विचार करना चाहिए।
श्री नाईक ने कहा कि हिन्दी भाषा के बाद उर्दू देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली दूसरी भाषा है। समय आ गया है कि सभी भाषाओं का संगम हो। भाषा का काम एक-दूसरे से जोड़ने के लिए होना चाहिए। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि कार्यक्रम में लोकार्पित उर्दू पुस्तक का हिन्दी व अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी भाषान्तरण हो जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग मौलाना अबुल कलाम आजाद के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जान सकें।
प्रो0 रिजवान कैसर ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद पर आधारित साहित्य को एक जगह इकट्ठा करने का काम हो। उनके जीवन को आजादी के पूर्व और आजादी के पश्चात्, दो हिस्सों में बांटकर हम उनके व्यक्तित्व को समझ सकते हैं। वें राष्ट्रवादी मुस्लिम के रूप में जाने जाते हैं, जिनका देश को आजाद कराना ध्येय था। वे देश के बंटवारे से सहमत नहीं थे। मौलाना आजाद ने हिन्दू-मुस्लिम यकजहती के माध्यम से देश की आजादी के लिए काम किया। देश के बंटवारे के बाद उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विचार करते हुए शिक्षा नीति की नयी संरचना के साथ शिक्षा फैलाने का काम किया। उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद ने शिक्षा, संस्कृति और टेक्नोलाॅजी में अपना महत्वूपर्ण योगदान दिया।
उपाध्यक्ष राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद पदम्श्री मुज्जफर हुसैन ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद का देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान था। वे देश की आजादी के लिए जीये। उन्होंने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद साहित्य के पितामह थे। श्री हुसैन ने इस अवसर पर परिषद के क्रिया कलाप के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी दी।
कार्यक्रम का संचालन परिषद के निदेशक डाॅ0 इब्तिजा करीम ने किया। इस अवसर पर मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण की एक वीडियों क्लिप भी दिखाई गयी।