लोकतंत्र सेनानी समिति ने गांधी प्रतिमा पर आपातकाल की 40व़ी बरसी पर विरोध दर्ज कराया 

लखनऊ: 25 जून सन 1975 को अपनी सत्ता और कुर्सी सदा सर्वदा बनाए रखने की नियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर देश के बुद्धिजीवियों तथा अपने विरोधी राजनेताओ को मीसा- डी०आई०आर० जैसे काले कानूनों के अंतर्गत कारागारो में बंद कर दिया| आपातकाल की 40व़ी बरसी पर प्रदेश भर के लोकतंत्र रक्षक आज प्रतिवर्ष की भातिं जीपीओ पार्क हजरतगंज स्थित गाँधी प्रतिमा पर एकत्र हुए और दीप जलाकर एवं काले गुब्बारे हवा में छोड़कर अपना विरोध दर्ज कराया|

समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि 25 जून 1975 को आज़ाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेडियों में जकड़ गया था| आपातकाल के कालखंड को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी उन कालरात्रियों को याद करके तन बदन में सिहरन उठ जाती है| तानाशाही सरकार ने “न अपील, न वकील, न दलील” के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओ, विद्याथियो को जेल की काल कोठरियों में डाल दिया गया था, और अनेकों प्रकार की अमानवीय यातनाए देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया, उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था किन्तु 7 तालों के भीतर कुम्भकरणी नींद सोयी सरकार कों उखाड़ फेकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक “हटे नहीं, डिगे नहीं, डटे रहे”| 

इंटरनेशनल सोसिलिस्ट कौंसिल के सचिव दीपक मिश्रा ने आपातकाल का विरोध जताते हुए कहा कि स्वंत्रत भारत में आपातकाल जैसे हालात बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है| आपातकाल बुनियादी तौर पर फांसीवादी मानसिकता की देन  है| जबतक शस्त्र और शोषण रहेगा तबतक आपातकाल की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता| 

समिति के प्रदेश महामंत्री रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अपना सिंहासन को बचाने की नियत इंदिरा गाँधी ने देश में एमरजेंसी लगा दी और मनमाना शासन चलाने लगी, आपातकाल के दौरान कानून का राज़ ख़त्म हो गया और बर्तानिया सरकार से भी ज्यादा बर्बर यातनाए राजनैतिक बंदियों को दी गई| उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान किये गए जनान्दोलनों और संघर्षो का ही परिणाम है कि देश में लोकतांत्रिक सरकारे शासन कर रही है|

लोकतंत्र सेनानी राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि आपातकाल में लोकतंत्र रक्षकों को स्वमूत्र तक पिलाई गयी और उनका मनोबल गिराने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की अमानवीय यातनाये दी गई किन्तु लोकतंत्र रक्षको ने उस बर्बर तानाशाह के सामने सर झुकाने से मना कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितने ही लोकतंत्र सेनानियों की कारागार के अंदर ही मृत्यु हो गई|

लोकतंत्र सेनानी भारत दीक्षित ने आपातकाल के उन उन्नीस महीनों को याद करते हुए कहा कि जेल के अंदर प्रतीत नहीं होता था कि आपातकाल का न्रसंश राज कभी ख़त्म होगा और अब हम लोग कभी जेल की काल कोठरियों से बाहर निकल पायेगे| 

लोकतंत्र सेनानियों ने प्रधानमन्त्री से लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भातिं सभी सुविधाए एवं सम्मान देने, समस्त जनपद मुख्यालयों पर लोकतंत्र सेनानियों की स्मृति में एक विजय स्तम्भ की स्थापना करने, तानाशाह के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राण न्योछावर करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को शहीद का दर्जा देने, आपातकाल के कालखंड को पाठ्यक्रम में सम्मलित करने एवं लोकतंत्र सेनानियों के लिए पारिवारिक पेंशन( सम्मान राशि) योजना लागू करने की मांग की|