नई दिल्ली: सुस्ती से जूझ रही अर्थव्यवस्था को तीसरी तिमाही में भी कोई राहत नहीं मिली है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 4% रही है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्त मंत्रालय ने कई उपाय किए हैं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं आ रही है।
विकास दर एक दशक के न्यूनतम स्तर पर है। मांग में छाई सुस्ती कायम है। रीटेल महंगाई दर सात साल के चरम पर है। बेरोजगारी दर चार दशक के उच्चतम स्तर पर है। शेयर मार्केट में गिरावट जारी है। निवेशक निवेश करने से कतरा रह हैं। चारों तरफ से अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक खबरें ही हैं।

मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट गिरकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई थी। पिछली 26 तिमाहियों यानी साढ़े 6 साल में यह भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे धीमी विकास दर है। एक साल पहले यह 7 प्रतिशत थी, जबकि पिछली तिमाही में यह 5 प्रतिशत थी।

तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) को लेकर जापान की वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी नोमुरा का मानना था कि विकास की रफ्तार और धीमी होगी और यह घटकर 4.3 फीसदी पर पहुंच सकती है। नोमुरा का मानना है कि वर्ष 2020 की पहली तिमाही (वित्त वर्ष 2019-20 की आखिरी तिमाही) में जीडीपी ग्रोथ रेट में मामूली सुधार होगा और यह 4.7 प्रतिशत रह सकता है।

सुस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक साल में रिजर्व बैंक ने रीपो रेट में 1.35 फीसदी की कटौती की। इसके बावजूद लोन की डिमांड में उतनी तेजी नहीं आई, लेकिन महंगाई दर 4 फीसदी के लक्ष्य से करीब दोगुनी पहुंच चुकी है। इंडस्ट्रिलय प्रॉडक्शन में भी गिरावट है। इस स्थिति को लेकर सरकार का कहना है कि जीएसटी जैसे फैसलों का असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा।