एमिटी में ‘‘भारतीय लोक कला परम्पराएंःभाषा, संवाद, अनुवाद एवं सिद्धांत पर अध्ययन’’ पर सम्मेलन का आयोजन

लखनऊ: लोक कलाएं भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व है। हमारी हजारों साल पुरानी सभ्यता के चिन्ह आज भी लोक कला के रूप में हमारे बीच जीवंत हैं। यह कलाएं हमारी सर्वाधिक मूल्यवान धरोहरें हैं जिनका संरक्षण आवश्यक है।

उक्त विचार पूर्व सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश सरकार श्री पीके तिवारी जी ने ‘‘भारतीय लोक कला परम्पराएं: भाषा, संवाद, अनुवाद एवं सिद्धांत पर अध्ययन’’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

इस दो दिपसीय सम्मेलन का आयोजन एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा किया जा रहा है जिसमें देशभर के प्रतिष्ठित लोक कला विशेषज्ञ, शिक्षाविद् एवं शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं।

श्री तिवारी ने अपने संबोधन में लोक कलाओं पर शोधकार्य को बढ़वा दिए जाने की हिमायत करते हुए कहा कि, हमारी लोक कलाएं अब तक तो श्रुति परम्परा के माध्यम से जीवित हैं परन्तु आने वाले समय में इस परम्परा के ही समाप्त हो जाने के आसार हैं। हम अपने बुजुर्गाें के मुख से कहानियों के माध्यम से, गुरू शिष्य परम्परा के माध्यम से लोक कलाओं से जुडे हैं। अब एकल परिवार में बच्चों को यह सुविधा नहीं है वह इंटरनेट पर और किताबों के माध्यम से ही इनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए इन कलाओं को लिपिबद्ध कर साहित्य के रूप में संग्रहीत किए जाने की आवश्यकता है।

उन्हांेने इन कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गंभीर शोधकार्य किये जाने की भी आवश्यकता बताई।

इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज की निदेशिका प्रोफेसर कुमकुम रे ने कहा कि, एमिटी विश्वविद्यालय हमेशा शिक्षा के साथ संस्कृति और परम्पराओं से अपने विद्यार्थियों को जोड़ने का प्रयास करता है ताकि छात्र अपनी भारतीय परम्पराओं के वाहक बने और उसे सर्वत्र प्रसारित करें।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रति कुलपति एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर, डा. सुनील धनेश्वर, एनआईएफटी कोलकाता की प्रो. अनामिका देवनाथ, बीएस पाटिल महाविद्यालय अमरावती की प्रो. एकनाथ और एनआईएफटी जोधपुर की आकांक्षा पारिख भी उपस्थित रहीं।

सम्मलेन में 80 से ज्यादा शोधपत्र पंजीकृत हुए है तथा पूरे देश से आए 150 से भी ज्यादा लोक कलाकार एवं शोधकर्ता शिरकत कर रहे हैं।