बुकलेट जारी कर सीपीएम ने सीएए-एनआरसी पर बताये मोदी सरकार के 10 झूठ
नई दिल्ली: वामपंथी दल सीपीएम ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर मोदी सरकार की एक बार फिर आलोचना की है। पार्टी ने एक बुकलेट जारी की है जिसमें 10 बिंदु उठाए गए हैं। पार्टी का कहना है कि यह मोदी सरकार के 10 झूठ हैं। सीपीएम ने इन सभी बिंदुओं पर अपनी बात भी रखी है।
झूठ नंबर 1
सीपीएम के अनुसार सरकार का पहला झूठ यह कहना है कि सीएए भेदभाव वाला नहीं, प्रताड़ित लोगों की मदद करना भारत की संस्कृति रही है और नए कानून से कोई भी भारतीय नागरिक प्रभावित नहीं होगा। पार्टी के अनुसार सीएए भारत के संविधान पर हमला है। संविधान नागरिकता देते समय धर्म, जाति, वर्ग या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। लेकिन नए कानून में पहली बार धर्म को नागरिकता का आधार बनाया गया है। मान लीजिए, दो व्यक्ति भारत में एक जैसे कागजात के साथ रह रहे हैं, लेकिन उनके पास पूर्वजों का कोई प्रमाण नहीं है। अगर वह व्यक्ति गैर मुस्लिम है तो उसे वैध मान लिया जाएगा, लेकिन अगर वह मुसलमान है तो उसे अवैध माना जाएगा। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि कानून की नजर में सभी समान हैं।
झूठ नंबर 2
सीपीएम के अनुसार सरकार का यह कहना उसका दूसरा झूठ है कि हिंदू शरणार्थियों का समर्थन करने वाले विपक्षी दल अब वोट बैंक की राजनीति के लिए संशोधित कानून का विरोध कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस सिलसिले में 2012 की सीपीएम की बैठक में पारित एक प्रस्ताव का जिक्र भी किया। सीपीएम के अनुसार सच तो यह है कि अंग्रेजों ने जब भारत का विभाजन किया तब सीमा पार से आने वालों के पुनर्वास में लेफ्ट पार्टियों ने मदद की थी। बंगाल के शरणार्थियों के कठिन वक्त के समय आरएसएस नदारद था।
झूठ नंबर 3
तीसरा झूठ यह कहना है कि सीएए का एनआरसी के साथ कोई लेना देना नहीं है, विपक्ष इनको गलत तरीके से जोड़ रहा है। सीपीएम के अनुसार सच तो यह है कि दोनों आपस में संबंधित हैं। भाजपा की योजना पहले सीएए लागू करने की है जिससे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी। उसके बाद एनआरसी के जरिए तथाकथित घुसपैठियों की पहचान की जाएगी। अमित शाह भी कह चुके हैं कि पहले नागरिकता कानून आएगा, सभी शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, उसके बाद एनआरसी लाया जाएगा।
झूठ नंबर 4
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित रैली में कहा कि 2014 में जब उनकी सरकार आई, तब से कहीं भी एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई है। सीपीएम के अनुसार यह सरकार का चौथा झूठ है। पार्टी के अनुसार 20 जून 2019 को संसद के साझा सत्र में राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में एनआरसी को प्राथमिकता के आधार पर लागू करने की बात कही थी। इसके बाद 21 नवंबर को अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा। संसद में पूछे गए सवालों के जवाब में विभिन्न मंत्रालयों ने 9 बार एनआरसी लागू करने की बात कही।
झूठ नंबर 5
सीपीएम के अनुसार पांचवा झूठ मोदी और उनके मंत्रियों प्रवक्ताओं का यह कहना है कि विपक्ष अफवाहें फैला रहा है और एनआरसी की प्रक्रिया को अभी तक कानूनी रूप नहीं दिया गया है। सच यह है कि एनआरसी का कानून 2003 में वाजपेयी सरकार में बना, और उसी समय पहली बार भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने का फैसला किया गया। इसके लिए नागरिकता कानून 1955 में संशोधन भी किया गया।
झूठ नंबर 6
पार्टी के अनुसार छठा झूठ यह कहना है कि एनआरसी की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है और इसकी कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई है। इस बारे में सच्चाई यह है कि एनआरसी लागू करने के नियम 2003 में ही वाजपेयी सरकार के दौरान तय हो गए थे। 23 जुलाई 2014 को तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने संसद में कहा था कि सरकार ने एनपीआर के आधार पर एनआरसी बनाने का फैसला किया है। एनपीआर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, इसके लिए 31 जुलाई 2019 को अधिसूचना जारी की गई थी।
झूठ नंबर 7
सीपीएम के अनुसार सातवां झूठ गृह मंत्री अमित शाह का यह कहना है कि एनपीआर का एनआरसी से कोई लेना देना नहीं है। सच तो यह है कि गृह मंत्री के मंत्रालय ने ही 2018-19 की सालाना रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने एनपीआर को स्वीकृति दे दी है। एनपीआर, एनआरसी लागू करने की दिशा में पहला कदम है। सीपीएम ने पूछा है कि झूठ कौन बोल रहा है गृह मंत्रालय या गृहमंत्री।
झूठ नंबर 8
आठवां झूठ सरकार का यह कहना है कि किसी भी भारतीय को डरने की जरूरत नहीं है। सीपीएम के अनुसार गरीबों और बेसहारा लोगों को डरने की जरूरत है। उसने पूछा है कि एनपीआर में जो 6 नए सवाल जोड़े गए हैं उनमें माता-पिता की जन्म की तारीख और जन्म स्थान को क्यों शामिल किया गया है। कितने परिवार हैं जिनके पास इसका सुबूत है। असम में यह देखने को मिला कि गरीबों को ही सबसे अधिक समस्या झेलनी पड़ी चाहे वे जिस धर्म या जाति के हों।
झूठ नंबर 9
प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश में कहीं भी डिटेंशन सेंटर नहीं बनाए जा रहे हैं। सीपीएम के अनुसार यह सरकार का नौवां झूठ है। गृह राज्य मंत्री ने राज्यसभा में 11 दिसंबर 2019 को बताया था कि सभी राज्य अवैध शरणार्थियों के लिए डिटेंशन सेंटर बना रहे हैं।
झूठ नंबर 10
सरकार का यह कहना भी झूठ है कि प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग नहीं किया गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश या भाजपा शासित किसी अन्य राज्य में पुलिस ने उन पर फायरिंग नहीं की। सीपीएम के अनुसार सच यह है कि हिंसा सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में फैली। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर भी बल प्रयोग किया गया। पार्टी का दावा है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस फायरिंग में 21 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है और हर दिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।