NDTV से बोले पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार- ‘अर्थव्यवस्था की यह सुस्ती मामूली नहीं’
नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने NDTV के डॉ. प्रणय रॉय से देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि ''अर्थव्यवस्था की सुस्ती मामूली' नहीं है. अरविंद सुब्रमणियन ने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि 2011 और 2016 के बीच भारत की जीडीपी ग्रोथ 2.5 फीसदी ज्यादा आंकी गई थी और उन्होंने यह भी चेताया था कि जीडीपी के आंकड़े को अर्थव्यवस्था के हूबहू विकास के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि अब वैश्विक तौर पर भी यह माना जाने लगा है कि जीडीपी के आंकड़े को काफी सतर्कता के साथ देखे जाने की जरूरत है.
IIM अहमदाबाद और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट अरविंद सुब्रमणियन ने एक घंटे के इंटरव्यू में आयात और निर्यात दर (जो कि क्रमश: 6 और -1 फीसदी गिर चुकी है) के संबध में भी आंकड़े (नॉन ऑयल) रखे. साथ ही साथ उन्होंने पूंजीगत वस्तु उद्योग वृद्धि (10 प्रतिशत की गिरावट) के बारे में बताया. उनके मुताबिक उपभोक्ता वस्तुओं की उत्पादन वृद्धि दर (दो साल पहले के 5 प्रतिशत से अब 1 प्रतिशत) बेहतर संकेतक हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, इसके अलावा निर्यात के आंकड़े, उपभोक्ता वस्तुओं के आंकड़े, कर राजस्व के आंकड़े भी हैं. हम इन सभी संकेतकों को लेते हैं और फिर 2000 से 2002 तक मंदी के काल को देखते हैं और पाते हैं कि भले ही उस समय सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि लगभग 4.5 प्रतिशत थी, लेकिन उस दौरान ये सभी संकेतक सकारात्मक थे. उन्होंने आगे कहा कि आज के समय में भी ये सभी संकेतक या तो नकारात्मक स्थिति में हैं या ये सकारात्मक होने के काफी करीब हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की जीडीपी दर लगातार सात तिमाहियों से नीचे गिरती जा रही है, जो 2019/20 की दूसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है. यह 2018/19 की पहली तिमाही में 8 प्रतिशत पर थी.
हाल ही में अरविंद सुब्रमणियन ने कहा था कि फिलहाल अर्थव्यवस्था जिस हालात में है उससे यह साफ है कि यह ICU में जा रही है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के भारत कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन के साथ लिखे गए नए शोध पत्र में कहा था कि भारत इस समय बैंक, बुनियादी ढांचा, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और रियल एस्टेट- इन चार क्षेत्रों की कंपनियां के लेखा-जोखा के संकट का सामना कर रहा है. इसके अलावा भारत ब्याज दर और वृद्धि के प्रतिकूल चक्र में फंसी है. उन्होंने आगे लिखा कि निश्चित रूप से यह साधारण सुस्ती नहीं है. भारत में गहन सुस्ती है और अर्थव्यवस्था ऐसा लगता है कि आईसीयू में जा रही है.