कहाँ गया मेरा पुश्तैनी दुर्लभ रिवाल्वर?
RTI एक्टीविस्ट के पूर्वजों का रिवाल्वर ढूंढ पाने में पुलिस और प्रशासन नाकाम
परवार को असलहे के ग़लत इस्तेमाल की आशंका, लाइसेंस रद्द करने की मांग
लखनऊ। मौजूदा दौर में पुलिस- प्रशासन बेलगाम है बेखौफ है, उसे न शासन की परवाह है न शासनादेश की। मामला कुछ यूँ है कि आरटीआई एक्टिविस्ट सिद्धार्थ नारायण ने अपने निवास पर पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि आरटीआई के माध्यम से उन्होंने अपनी पुश्तैनी सम्पत्ति को वापस पाया लेकिन उनके पैतृक शस्त्र को पुलिस ढूंढ नहीं पा रही है। सिद्धार्थ लगभग नौ महीने से लगातार पत्राचार के माध्यम से लाइसेंसी असलहे को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। पूर्व सूचना आयुक्त हाफिज उस्मान ने सिद्धार्थ को विधिक राय देते हुए दावा दायर करने की सलाह दी वहीं पूर्व सूचना आयुक्त अरविंद सिंह बिष्ट ने परिवार द्वारा एनओसी ना दिए जाने पर ध्यान आकर्षित करवाया।
बार बार पत्राचार करने पर मेरठ पुलिस ने लिखित जवाब दिया कि घर जाने पर केवल नौकर ही मिला जिससे शस्त्र सत्यापन नहीं हो सका। बकौल सिद्धार्थ वह नौकर होम्योपैथिक चिकित्सक राजेंद्र सिंह का है जिसको सिद्धांत नारायण ने नौकरी पर नहीं रखा है और यही लोग पुलिस को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा, इस बीच उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में शस्त्र सत्यापन के लिए शिविर भी लगे लेकिन उनके शस्त्र का कोई पता नहीं चला। सिद्धार्थ ने बताया कि इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय की अधिवक्ता हर्ष चाचरा के माध्यम से जिला प्रशासन को कानूनी नोटिस भेजा गया है जिसमें 10 लाख रुपए का विधिक दावा किया गया है और डॉ नारायण ने भी जिलाधिकारी मेरठ को पत्र लिखकर शस्त्र पर दावा दायर कर दिया है।
उधर पुश्तैनी रिवाल्वर का पता चलने पर सिद्धार्थ नारायण की माँ डॉक्टर मार्गेट नारायण भी चितिंत हुई क्योंकि गायब शस्त्र से कोई अनहोनी घटना घटित हो सकती है और इस समय रिवाल्वर की कीमत भी बहुत अधिक है। उन्होंने पत्रकारों से बताया कि सन 1870 में वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे पहला शस्त्र लाइसेंस था जिसे उनके पति की मृत्यु के बाद जगदीश नारायण त्यागी ने कूटनीति कर बनारस से अपने नाम बनवाया और भी मेरठ में पंजीकृत भी करवा दिया। डॉक्टर नारायण ने कहा कि इस शस्त्र को बेचने या स्थानांतरित करने के लिए उनके अथवा उनके पति किसी ने भी कोई एनओसी नहीं दी। रिवाल्वर के अन्यथा उप्युक्त हो जाने के भय से उन्होंने मेरठ पुलिस को इसकी जानकारी दी और लाइसेंस रद्द करने के लिए लिखा। पुलिस ने बताया कि किसी अविरल त्यागी ने मेरठ के वर्मा गन हाउस में शस्त्र का जमा होना बताया है। डॉ नारायण ने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जगदीश की मृत्यु हो गई तब उन्होंने मेरठ जा कर पड़ताल की तो पता चला कि वर्मा गन हाउस वर्षों से बंद पड़ा है।