ख़ानक़ाहें वक्त की अहम ज़रूरत हैं: सबाहत हसन शाह
शानो शौकत के साथ दादा मियां के 112वें उर्स का आग़ाज़
तौक़ीर सिद्दीक़ी
कहते हैं कि अगर आपको सामाजिक सौहार्द देखना हो तो किसी पीर, सूफी, औलिया की दरगाह पर चले जाइये जहाँ आपको आजके ज़हरीले माहौल के बावजूद शांति दिखेगी, सुकून नज़र आएगा| हर धर्म और जाति के लोग भाईचारगी की मिसाल बने नज़र आएंगे क्योंकि इन स्थानों पर धर्म, सम्प्रदाय और समुदायों की नहीं इंसानियत की बात होती है, मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है| ऐसा ही एक स्थान लखनऊ के माल एवेन्यू इलाक़े में भी है जिसे हम सब दादा मिया की दरगाह के नाम से जानते हैं जहाँ देश विदेश से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपने मन की मुराद को हज़रत ख्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह रहमतुल्लाह अलैह यानी दादा मियां के दरबार में पेश करते हैं और फ़ैज़याब होते हैं|
दादा मियाँ का 112वां सालाना उर्स निहायत ही शानो ओ शौक़त के साथ शुरू हो गया है। दादा मियाँ ने अपनी बहुत छोटी सी जिन्दगी में इतना काम कर दिखाया जिसकी मिसाल आज के ज़माने में मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। इसकी जीती जागती मिसाल देश विदेश में फैले हुए लाखों मुरीद और अक़ीदतमन्द है।
दादा मियाँ का हर साल होने वाला यह उर्स इस बार भी पांच दिनों का होगा जो 20 नवम्बर से 24 नवम्बर तक आस्ताना दादा मियाँ माॅल ऐवेन्यू में होगा, जिसमें जिक्र, मीलाद शरीफ, तरही मुशायरा, चादर पोशी, हल्क ए जिक्र, महफिले स़मा, रंगे महफिल, गुस्ल व संदल शरीफ के कार्यक्रम आयोजित होंगे| प्रोग्रामों में शरीक होने के लिए मुल्क भर से लाखों लोग तशरीफ लायेंगें,और अपनी मुरादें हासिल करेंगें|
उर्स के दौरान एक आल इण्डिया सेमिनार भी आयोजित होगा, जिसका शीर्षक "जिन्दगी के शब ओ रोज़ और शाहे रज़ा का तरजे़ अमल़ होगा", जिसके जरिये दादा मियां की तालीमात, उनके संदेशों को लोंगों के सामने लाया जाएगा। सेमिनार में हज़रत मौलाना सय्यद कमरूल इस्लाम,रिसर्च स्काॅलर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, डा0 वाहिद नजी़र, असिस्टेंट प्रोफेसर जामिया मिलीया इस्लामिया,नई दिल्ली, के अलावा लखनऊ व आस पास के जिले के उलमाए किराम तशरीफ ला रहें हैं। सेमिनार के ज़रीये दादा मियाँ की तरह जिन्दगी गुज़ारने की अकीदतमंदों को शिक्षा दी जाएगी|
इंस्टेंटखबर से बात करते हुए दरगाह के सज्जादानशीन सबाहत हसन शाह ने कहा कि दौरे हाज़िर में अगर फिरका परस्ती और ना इत्तेफाक़ी को दूर करना और इन्सानियत को जिन्दा रखना है तो हमें ख़ानक़ाही सभ्यता को अपनाना पडे़गा,जिससे हमारी आने वाली नस्लों को दुश्वारियो का सामना न करना पडे़,और सच पूछिये तो ख़ानक़ाहें ही वक्त की अहम ज़रूरत हैं।
सिलसिला:
आप 25 रबीउल अव्वल शरीफ 1284 हि0 मुताबिक़ 1867 ई0 दिन सोमवार कस्बा भैंसोंड़ी शरीफ मिलक रामपुर, यू0पी0 में एक आलिमी व नूरानी घराने में पैदा हुये। तालीम पूरी करने के बाद 1886ई0 में फौज में मुलाज़िम हो गये, उसी दौरान बंगाल में 1895 ई0 में हज़रत सय्यदना मौलाना अब्दुल हई चाटगामी र0अ0 के मुरीद हो गये। फिर खिलाफत व इजाज़त के बाद 1904 ई0 में लखनऊ में तशरीफ लाये और मोहल्ला सदर बाजा़र में क़्याम किया। और बेपनाह लोंगों को अपने दामने करम से लिपटा कर रहनुमा व पेशवा बना दिया। आपके मुरीदीन व खुल्फा मुल्क के हर हिस्से में फैले हुये हैं। आपकी बड़ी निराली शान थी, आपका दरबार हर एक के लिए खुला रहता है, आपकी बारगाह सबके लिए यक्सा है, आपका विसाल शरीफ 24 रबीउल अव्वल 1329 हि0 मुताबिक 1911 ई0 बरोज़ इतवार लखनऊ में हुआ। और इस्लामिया कब्रिस्तान माॅल ऐवेन्यू में अपनी पसन्द की हुई जगह पर आराम फरमा हुये।
आपका सिलसिला सिलसिला-ए-जहाँगीरीया है। जो सिलसिला-ए-क़ादिरीया,चिश्तिया,सोहरवर्दीया, फिरदौसिया, नक्शबन्दीया, अबुलउलाईया, के मज़मूआ का नाम है।
आपके पहले सज्जादा नशीन आपके हक़ीकी छोटे भाई मुरीदो खलीफा हज़रत ख्वाजा अल्हाज मोहम्मद इनायत हसन शाह 1911ई0 से 1941 ई0 हुये। उनके बाद हज़रत ख्वाजा मोहम्मद राहत हसन शाह 1941 ई0 से 1975 ई0 हुये, उनके बाद आपके साहबज़ादे हज़रत ख्वाजा अल्हाज मोहम्मद फसाहत हसन शाह 1975 ई0से 2001ई0 हुये उनके बाद हज़रत किब्ला ख्वाजा मोहम्मद सबाहत हसन शाह 2001 से अब तक सज्जादा नशीन हैं।