आलोचनाओं को दबाना नीतिगत गलतियों का कारण बनती हैं: रघुराम राजन
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार को कहा कि शासन में बैठे लोगों को आलोचनाओं को सहना ही पड़ता है और आलोचनाओं को दबाना नीतिगत गलतियों का कारण बनती हैं। लिंक्डइन पर एक निबंध में राजन ने कहा कि सरकारें जो सार्वजनिक आलोचनाओं को दबाती हैं, वह स्वयं एक घोर असंतोष है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने अपने निंबध में लिखा है, “शासन में बैठे के लोगों को आलोचना को सहन करना पड़ता है। बेशक मीडिया में आलोचना सहित कुछ गलत सूचनाएं और व्यक्तिगत हमले हो जाते हैं। मैंने इन सब चीजों को अपने पूर्व के काम में देखा है। हालांकि, आलोचना को दबा देना नीतिगत गलतियों के लिए एक सुनिश्चित आग वाला नुस्खा है। यदि सभी आलोचकों को सरकारी अधिकारी की तरफ से फोन आए और उन्हें उन्हें चुप रहने को कहा जाए या फिर सत्ताधारी पार्टी के ट्रोल आर्मी उन्हें अपना निशाना बनाए, तो कई लोग आलोचना कम करते हैं। जब तक कि सरकार को कटु-सत्य से सामना नहीं होता, वह बेहद ही सुखद माहौल में रहती है।”
राजन ने कहा कि निरंतर आलोचना नीति को समय-समय पर सुधार की अनुमति देती है और सार्वजनिक आलोचना वास्तव में सरकारी नौकरशाहों को अपने राजनीतिक आकाओं को सच बोलने के लिए जगह देती है। उन्होंने कहा कि इतिहास को समझना अच्छा है, लेकिन इतिहास का उपयोग करके हमारी खुद की छाती ठोकना बहुत बड़ी असुरक्षा को दर्शाता है। वह लिखते हैं, “हमारे इतिहास को समझना, जाहिर है एक अच्छी बात है, लेकिन खुद की छाती ठोकने में इतिहास का इस्तेमाल बड़ी असुरक्षा को दर्शाता है।
यह हमारी वर्तमान क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं करता है। यह अतीत में हमारी गरीबी थी और विकसशील अकादिमियों और अनुसंधान प्रणालियों में अभी भी कई खामिया व्याप्त हैं, जो हमें सबसे आगे रखती हैं।”
वर्तमान में शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनस में पढ़ा रहे राजन अपने निबंध के परिचट नोट में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के साथ साथ न्यायविद नानी पालखीवाला को भी याद करते हैं, जिनकी जन्म शताब्दी करीब आ रही है। वह लिखते हैं, “वर्तमान समय में हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत को जो चीज महान बनाती है, वह इसकी विविधता, वाद-विवाद और सहिष्णुता है। जो इसको कमजोर बनाती है वह संकीर्ण मानसिकता, अश्लीलता और विभाजन है।
अपने निंबध में राज ने विदेशी विचारों और विदेशियों के संदर्भ में संदेह भी व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि हम इतने असुरक्षित नहीं हो सकते कि हमें विश्वास हो कि विदेशी प्रतिस्पर्धा हमारी संस्कृति, हमारे विचारों और हमारी फर्मों को ध्वस्त कर देंगी। असल में सुरक्षात्मक दीवारों को खड़ा करने से हम हमेशा पीछे रह गए हैं। वह लिखते हैं, “हमें किसी भी चीज के लिए विदेशी होने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह सबसे अच्छा है कि हम घरेलू या विदेशी सब कुछ की जांच करें और देखें कि क्या रखने लायक है। यह तभी है जब हमारे पास एक गतिशील समाज होगा, जो समय की जरूरतों के अनुकूल होगा।”