वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निर्मोही अखाड़े के मामले में साक्ष्य और गवाही पर्याप्त नहीं

नई दिल्ली: अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मामले में 22 वें दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पक्ष रखा. राजीव धवन ने मुख्य मामले की सुनवाई से पहले अपनी कानूनी टीम के क्लर्क को धमकी दिए जाने की जानकारी कोर्ट को दी और कहा कि ऐसे गैर-अनुकूल माहौल में बहस करना मुश्किल हो गया है. राजीव धवन ने कोर्ट को बताया कि यूपी में एक मंत्री ने कहा है कि अयोध्या हिंदुओं की है, मंदिर उनका है और सुप्रीम कोर्ट भी उनका है. उन्होंने कहा कि 'मैं अवमानना के बाद अवमानना दायर नहीं कर सकता.' उन्होंने पहले ही 88 साल के व्यक्ति के खिलाफ अवमानना दायर की है.

इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि कोर्ट के बाहर इस तरह के व्यवहार की निंदा करते हैं. देश में ऐसा नहीं होना चाहिए. हम इस तरह के बयानों की निंदा करते हैं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि दोनों पक्ष बिना किसी डर के अपनी दलीलें अदालत के समक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हैं.

इससे बाद राजीव धवन ने मुख्य मामले पर बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने कहा कि लिमिटेशन पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि निर्मोही अखाड़े की लिमिटेशन छह साल होनी चाहिए थी. छह साल की अवधि से बचने के लिए निर्मोही अखाड़ा शेवियेट, बिलांगिंग और कब्जे की दलील दे रहा है, जो कि सही नहीं है, क्योंकि निर्मोही सिर्फ सेवादार है, जमीन के मालिक नहीं हैं.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि निर्मोही अखाड़े द्वारा प्रस्तुत वाद के चलाए जाने की योग्यता के बारे में प्रश्न उठाया जा सकता है. धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा किस बात को चुनौती दे रहे थे, वह क्या चाहते थे, लेकिन इस मसले को उठाना मेरे लिए सही नहीं होगा. राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही के मामले में साक्ष्य और गवाही पर्याप्त नहीं हैं. धवन ने कहा कि आप अवैधता के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर सकते और उससे लाभ देने की कोशिश नहीं कर सकते, भले ही आप अवैधता पैदा न करें, फिर भी आप उस पर विश्वास नहीं कर सकते.

राजीव धवन ने कहा कि ट्रस्टी और सेवादार में अंतर होता है शेवियत मालिक नहीं होता है. जिस दिन से कोर्ट का ऑर्डर आया, यानी 5 जनवरी 1950 को, उस दिन से कंटिनिवस रांग खत्म हो जाता है. निर्मोही अखाड़े ने अगर समय से पहले, यानी छह साल पहले अखाड़े ने रिसीवर नियुक्त करने को चुनौती दी होती तो ठीक था, लेकिन निर्मोही अखाड़े ने छह साल की तय समय सीमा के बाद चुनौती दी, इसलिए निर्मोही अखाड़े का दावा नहीं बनता. इनकी याचिका खारिज की जानी चाहिए.

राजीव धवन ने कहा कि एक ट्रस्ट या ट्रस्टी के विपरीत शेबेट के अधिकार का दावा नहीं कर सकता. सन 1934 के बाद से मुस्लिमों ने वहां पर प्रवेश नहीं किया, लेकिन जब आप उन्हें प्रवेश नहीं करने देंगे तो वे इबादत कैसे करेंगे? निर्मोही अखाड़े का जो शेवियेट, यानी सेवादार का दावा है, उसको हम सपोर्ट करते हैं, लेकिन इनका टाइटल राइट नहीं बनता.अगर निर्मोही अखाड़े को सेवादार का अधिकार है, मान भी लिया जाए कि सेवादार का अधिकार पीढ़ियों तक चलता है, तो फिर प्रॉपर्टी का मालिक कौन है, क्या नेक्स्ट फ्रेड को माना जाएगा, फिर निर्मोही अखाड़े को सेवादार से हटाने का डर कैसा, कौन मालिक या ट्रस्टी है.

मामले में शुक्रवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से जफरयाब जिलानी बहस करेंगे उसके बाद फिर से राजीव धवन बहस करेंगे.