संगीत का एक और साज़ आज टूट गया
आँखों की मस्ती बिखेरने वाले खय्याम साहब नहीं रहे
नई दिल्ली: बॉलीवुड के मशहूर संगीतकार खय्याम का सोमवार को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई के जुहू स्थित सुजॉय अस्पताल में आखिरी सांस ली. जानकारी के अनुसार सोमवार रात करीब साढ़े नौ बजे उनका निधन हुआ. उनके प्रवक्ता प्रीतम शर्मा ने बताया कि वो सांस की बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती कराए गए थे. पिछले एक हफ़्ते से आईसीयू में वेंटिलेटर पर थे. वह 92 साल के थे. उनके निधन की खबर से बॉलीवुड में शोक की लहर है.
उन्होंने 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है', 'मैं पल दो पल का शायर हूं' जैसे गानों की धुनें बनाईं. उन्होंने 'कभी-कभी, उमराव जान, बाजार, नूरी, फुटपाथ, गुल बहार, त्रिशूल, फिर सुबह होगी, शोला और शबनम, शगुन, आखिरी खत, खानदान, थोड़ी सी बेवफाई, चंबल की कसम, रजिया सुल्तान जैसी सुपरहिट फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया था.
इतना ही नहीं जब कभी खय्याम की बात की जाती है तो उनके गैर-फिल्मी गानों की खूब चर्चा होती है. असल में उन्होंने 'बृज में लौट चलो', 'पांव पड़ूं तोरे श्याम', 'गजब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया' जैसे गैर-फिल्मी गाने भी बनाए.
खय्याम ने द्वितीय विश्वयुद्ध में एक सिपाही के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं. पंजाब के नवांशहर में जन्मे मोहम्मद जहूर खय्याम ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1947 में की थी. खय्याम ने 1948 में फिल्म हीर रांझा में शर्माजी के तौर पर फिल्मों में संगीत देने की शुरुआत की. उस फिल्म में संगीतकार की जोड़ी शर्माजी-वर्माजी थी. उनकी शुरुआती फिल्म का एक गाना, 'अकेले में वो घबराते तो होंगे' बहुत लोकप्रिय हुआ. उन्हें असल पहचान मिली फिल्म फिर सुबह होगी से. इसके गाने साहिर लुधियानवी ने लिखे थे. फिर उनकी फिल्म शोला और शबनम आई, जिसमें गाना था, ' जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें' जो बहुत पसंद किया गया. फिल्म शगुन में उन्होंने अपनी पत्नी जगजीत कौर से गवाया, 'तुम अपने रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो.' यह गाना भी हिट रहा.
2007 में खय्याम को संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड दिया गया. 2011 में उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया. कभी कभी (1977) और उमराव जान (1982) के लिए खय्याम ने बेस्ट म्यूजिक का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था.