बेंगलुरु: बीएस येडियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. उन्होंने चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली है. राजभवन में आयोजित कार्यक्रम में राज्यपाल वजुभाई वाला ने येडियुरप्पा को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. अब उन्हें एक हफ्ते बाद कर्नाटक की विधान सौदा में अपना बहुमत साबित करना होगा.

येडियुरप्पा कर्नाटक में पॉलिटिक्स के जोड़-तोड़ के महारथी हैं. कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के गिरने से मुहर लग गई है. बुकंकरे सिद्धालिंगप्पा येडियुरप्पा कर्नाटक राजनीति के इतने मजबूत नाम हैं कि उनका विकल्प खोज पाना मुमकिन नहीं. एक हारी हुई बाजी को जीतकर वे ऐसा साबित भी कर चुके हैं. उन्होंने कह दिया है कि बीजेपी अब सरकार बनाने का दावा करेगी.

वैसे कर्नाटक में पिछले चुनावों से पहले जब बीजेपी को कर्नाटक में अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करनी थी तो उसके सामने मुख्यमंत्री पद के तीन विकल्प थे. अनंत हेगड़े, प्रताप सिम्हा और बीएस येडियुरप्पा. लेकिन बीजेपी ने अपना दांव पहले दोनों नेताओं की हिंदुत्ववादी छवि को दरकिनार करते हुए येडियुरप्पा पर लगाया. यह गलत भी साबित नहीं हुआ और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि वह बहुमत से थोड़ी दूर रहे और कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई.

वे भी येडियुरप्पा ही थे जिन्होंने दक्षिण भारत में पहली बार कमल खिलाकर किसी राज्य में बीजेपी का खाता खोला था. बाद में हालांकि वे भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे, पार्टी से दरकिनार कर दिए गए, जिसके बाद उन्हें अपनी एक पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बनानी पड़ी. लेकिन 2014 में उनकी बीजेपी में फिर से वापसी हुई और वे कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष के रास्ते से होते हुए पार्टी के सीएम कैंडिडेट भी बने.

येडियुरप्पा को सिर्फ लिंगायत का नेता नहीं कहा जा सकता है. कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे येडियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था. उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत साल 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी. इमरजेंसी के दौरान वे बेल्लारी और शिमोगा की जेल में भी रहे. यहां से उन्हें किसान नेता के तौर पर पहचान मिली. साल 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया.

कर्नाटक की राजनीति में उन्हें नज़रंदाज़ करना इसलिए नामुमकिन हो जाता है क्योंकि 1988 में ही उन्हें पहली बार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था. येडियुरप्पा 1983 में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए और फिर छह बार यहां से जीत हासिल की. 1994 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद येडियुरप्पा को असेम्बली में विपक्ष का नेता बना दिया गया. 1999 में जब वो चुनाव हार गए तो बीजेपी ने उन्हें MLC बना दिया. जिन दो महत्वपूर्ण जातियों के हाथों में राजनीति का भविष्य रहा है वो हैं लिंगायत और वोक्कालिगा. कर्नाटक में मुख्यमंत्री अमूमन इसी समुदाय से ही रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी को समझ आ गया कि बिना येडियुरप्पा के कर्नाटक में कमल खिलना बेहद मुश्किलों भरा साबित होगा.