मानसून से निपटने के लिए राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की बैठक
लखनऊ: राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण लखनऊ के सभागार मे उपाध्यक्ष ले0ज0 आर0पी0 साही के अध्यक्षता मे मानसून पूर्व सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों की बैठक आयोजित हुई, इस बैठक मे मुख्य रूप से मौसम, पशुपालन, रिमोट सेंसिंग , कृषि विभाग यूनिसेफ सहित 22 संस्थाओं ने भाग लिया। चर्चा के मुख्य बिंदुओं मे उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण तथा इन्टर-एजेंसी ग्रुप उ0प्र0 के मध्य आपदा खतरा न्यूनीकरण तथा प्रतिउत्तर को लेकर समन्वय के सन्दर्भ मे चर्चा की गयी।
इस चर्चा मे समुदाय आधारित आपदा प्रबन्धन के छोटे छोटे सफल प्रयासों के संकलन, संसाधनो का बेहतर उपयोग करते हुए बडे स्तर पर सम्भावित घटनाओं हेतु समन्वित प्रयास पर चर्चा हुई। ओडिसा के फैनी साइक्लोन का उदाहरण रखते हुए सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से जो ऐतीहासिक कार्य किया गया है और जन धन की न्यूनतम हानि से प्रेरणा लेकर भविष्य मे उत्तर प्रदेश मे भी गैर सरकारी संस्थाओं के साथ समन्वय की कल्पना की गयी।
इस समन्वय मे राज्य, जिला, तहसील और ग्राम पंचायत स्तरों पर संयुक्त प्रयासों, अच्छे अनुभवों को सांझा करना तथा विजन विल्डिंग को ध्यान मे रखकर नियोजन की प्रक्रिया पर भी बल दिया गया जिससे माननीय प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के नेतृत्व मे समन्वित प्रयास हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं की सांझा रणनिति तैयार हो, जिसमे आंकडो का आदान प्रदान, कौशल विकास, क्षमता बर्द्वन, आवश्यक संसाधनों की पूर्ण जानकारी एवं उपयोग सम्भव हो।
कृषि के सन्दर्भ मे चर्चा करते हुए किसान जल विद्यालय की उपयोगिता पर चर्चा हुई, आगामी दिनो मे उत्तर प्रदेश मे ‘‘बाढ़ का पानी एक वरदान है या श्राप’’ विषयक कार्यशाला आयोजित करने पर भी चर्चा हुई ताकि वर्ष जल का सही ढ़ंग से संचयन सम्भव हो सके। बाढ़ के सन्दर्भ मे राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने पिछले दिनो एक कार्योजना जारी किया जिसके बारे मे उपाध्यक्ष ने विस्तार से बताया और सभी विभागों एवं संगठनों से सहयोग की अपेक्षा की।
प्रत्येक जिलों मे उपलब्ध आपदा प्रबन्धन योजना को अधिक उपयोगी बनाने के लिए समीक्षा बैठको के आयोजन पर भी चर्चा की गयी। विशेषज्ञों ने बताया कि बुन्देलखण्ड के 7 जिले तथा मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों मे 80 प्रतिशत कुएं और 60 प्रतिशत हैण्डपम्प अनउपयोगी हो गये है जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने सुखा क्षेत्र मे सहयोग के लिए समस्त हितभागियों को पत्र लिखा है जिसका लाभ प्रत्येक नागरीक को पहूंचे हेतु हम सभी को प्रयास करने की आवश्यकता है।
बहराईच और कुशीनगर का उदाहरण देते हुए बताया गया कि बाढ़ के बाद विस्थापित होने से लगभग 27000 परिवारों की पहचान खो गयी जिन्हे किसी भी प्रकार के सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने की सम्भावना कम प्रतित हो रही है।
कृषि विशेषज्ञों ने कम वर्षा के कारण होने वाले नुकसान को ध्यान मे रखते हुए किसानो के लिए वैकल्पिक फसल, योजना हेतु नियोजन की बात कही तथा स्थान आधारित उपयोगी साहित्य/एडवाइजरी का सुझाव दिया।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों मे अनियोजित भूजल दोहन के कारण फ्लोराइड, आर्सेनिक, आयरन सहित मेटल और मिनरल की पेयजल मे बढ़ती हुई मात्रा, समुदाय मे चिन्ता का कारण बनती जा रही है। यह भी सम्भव है कि जे0ई0 और ए0ई0एस0 जैसी विमारियां जो गोरखपुर और मुजंफरपुर मे कोहराम मचा रही है के नियंत्रण मे आने वाली बाधाएं भी हमारी कम समझ और अनियोजित शोध का परिणाम है।
पूर्व सूचना प्रणाली जो किसी भी आपदा के प्रतिउत्तर एवं न्यूनीकरण हेतु महत्वपूर्ण है पर विशेष चर्चा हुई और मौषम विभाग तथा केन्द्रीय जल आयोग के अधिकारियों से अपेक्षा की गयी कि इस पर समय रहते उपयोगी सूचना उपलब्ध कराने का पुरा प्रयास किया जाय। गैर सरकारी संस्थाओं के समुदाय आधारित पूर्व सूचना प्रणाली तथा आपदा खतरा न्यूनीकरण पर चर्चा करते हुए यह निर्णय लिया गया कि आने वाले समय मे इस पर समुदाय को आपदा रेजिलिएन्ट बनाने हेतु विशेष प्रयास किया जायेगा।
अन्त मे उपाध्यक्ष राज्य आपदा प्रबन्ध प्राधिकरण द्वारा समस्त सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों को धन्यवाद करते हुए आने वाले समय मे नियमित बैठकों के आयोजन एवं अनुभवों के आदान प्रदान के अपेक्षा के साथ बैठक का समापन किया।