लखनऊ: लोकसभा चुनाव के नतीजों से समाजवादी पार्टी को निराशा हाथ लगी है. बसपा से गठबंधन के बाद सपा को उत्‍तर प्रदेश में ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. सपा के लिए यह कठिन समय है. लगभग पौने दो साल से साइड लाइन चल रहे पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के नेतृत्‍व पर सवाल उठाए हैं.

सपा की करारी हार पर पिछले तीन दिनों से लगातार मंथन चल रहा है. मुलायम और अखिलेश के बीच लगातार बैठक चल रही है. जबकि मुलायम को भी यह महसूस हो चुका है कि सपा की सियासी जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है. कहीं न कहीं इस हार का ठीकरा अखिलेश यादव के सिर फोड़ा जा रहा है.

2014 लोकसभा चुनाव के वक्‍त अखिलेश यादव उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री थे, बावजूद इसके सपा के खाते में केवल पांच सीटें ही आई थीं. 2017 में जब अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष बने, उस वक्‍त विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में 403 में से केवल 47 सीटें आईं. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करने के बावजूद सपा केवल पांच सीटों पर ही कब्‍जा कर सकी. जबकि मुलायम सिंह यादव ने अपने करियर के सबसे कम अंतर (95 हजार वोट) के साथ मैनपुरी से चुनाव जीता.

लोकसभा चुनाव में निराशा हाथ लगने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी के संरक्षक और अपने पिता की ओर रुख किया. अब सपा का सियासी किला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है. मुलायम ने अखिलेश को सलाह दी कि गैर-यादव नेताओं को पार्टी से फिर जोड़ना शुरू करें साथ ही इस धारणा को खत्‍म करने की कोशिश करें कि सपा यादवों की पार्टी है.

अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ विचार-विमर्श के लिए रेवती रमन सिंह, भगवती सिंह, ओम प्रकाश सिंह, मनोज पांडे, अरविंद सिंह गोप, नारद राय और राधेश्‍याम सिंह जैसे वरिष्‍ठ नेताओं को बुलाया जा रहा है.

मुलायम सिंह चाहते हैं कि पार्टी के वरिष्‍ठ नेता भी निर्णायक फैसला लेने में शामिल हो. साथ ही उन्‍होंने अखिलेश से कहा है कि पिछले दो सालों में जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी, उनकी वापसी सुनिश्चित की जाए. सूत्रों के अनुसार, उन्‍होंने अपने बेटे से शिवपाल यादव की वापसी का रास्‍ता तैयार करने के लिए कहा है.