नई दिल्ली: आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए से करारी शिकस्त के बाद मुख्य विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने कांग्रेस चीफ पद से इस्तीफे की पेशकश की। शनिवार (25 मई, 2019) को राजधानी दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में उन्होंने अपनी यह इच्छा जताई। हालांकि, पार्टी नेताओं ने उनकी इस पेशकश को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि वही पार्टी को पुनःगठित करें। कांग्रेसी नेताओं ने कहा कि लोकतंत्र में उनकी यह हार नंबरों की है, न कि विचारधारा की।

इसी बीच, सूत्रों के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि राहुल ने बैठक के दौरान अपना मत रखा था कि वह अब आगे यह पद नहीं संभालना चाहते हैं। वह इस पद पर गांधी-नेहरू परिवार से इतर किसी व्यक्ति को देखना चाहते हैं। दरअसल, राहुल इस चुनाव में दो लोकसभा सीटों से लड़े थे। पहली यूपी की अमेठी सीट, जहां उन्हें बीजेपी की स्मृति ईरानी ने हरा दिया। दूसरी सीट दक्षिण भारत में केरल की वायनाड है। वहां उन्हें जीत हासिल हुई।

राहुल की पेशकश खारिज किए जाने के पीछे कई मत सामने आए। पूर्व वित्त मंत्री और पार्टी नेता पी.चिंदबरम को इस बात का डर है कि राहुल के अध्यक्ष पद छोड़ने से दक्षिण भारतीय वोटर्स और समर्थक आहत हो सकते हैं। वे दुखी होकर सुसाइड जैसा बड़ा कदम भी उठा सकते हैं। ऐसे में राहुल को पार्टी चीफ पद पर बने रहना चाहिए।

वहीं, राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका का बैठक में मत रहा कि बीजेपी यही चाहती है, इसलिए राहुल को उनके जाल में नहीं फंसना चाहिए। इन सब मतों के बाद भी बताया जा रहा राहुल अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहते हैं। बता दें कि बीजेपी लंबे समय से इसे मुद्दा बनाती रही है कि कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार की जागीर और निजी पार्टी है।

पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आगे बैठक में कहा, “पार्टी अध्यक्ष ने इस्तीफे की पेशकश की थी, पर सीडब्ल्यूसी सदस्यों ने उसे खारिज कर दिया। हमनें उन्हें पार्टी को फिर से संगठित करने का जिम्मा दिया है। जल्द ही इसके लिए एक योजना लाई जाएगी।” वहीं, गुलाम नबी आजाद बोले कि लोकतंत्र में हार-जीत चलती रहती है। हमने अपनी हार कबूली है, पर यह हार आकंड़ों की है, न कि विचारधारा की है।