भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार देश में और बढ़ी बेरोज़गारी की दर
नई दिल्ली: चुनावी मौसम में बेरोजगारी ने फिर अपना सिर उठाया है। इससे मोदी सरकार का सिरदर्द बढ़ सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (CMIE) के डेटा के अनुसार, पिछले मार्च महीने में बेरोजगारी का प्रतिशत 6.71 था, जो अप्रैल में बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गया। डेटा से यह भी खुलासा हुआ है कि यह बेरोजगारी दर अक्टूबर 2016 के बाद से सबसे ज्यादा है। मार्च में रिपोर्ट की गई बेरोजगारी की दर को नरेंद्र मोदी की के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए राहत के रूप में देखा गया था। हालांकि, नए आंकड़े ने फिर से सरकार की परेशानी बढ़ा दी है।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सीएमआईई के महेश व्यास के हवाले से बताया कि मार्च में कम बेरोजगारी दर एक झटका थी और यह फिर से पिछले महीनों की तरह हो गई। मार्च से पहले के तीन महीनों में बेरोजगारी की दर 7 प्रतिशत से अधिक थी। सीएमआईई डेटा के अनुसार, नवंबर 2018 में बेरोजगारी दर 6.65 प्रतिशत थी, जो दिसंबर 2018 में बढ़कर 7.02 प्रतिशत तक पहुंच गई। जनवरी 2019 में यह आंकड़ा 7.05 प्रतिशत था, जो फरवरी 2019 में बढ़कर 7.23 प्रतिशत तक पहुंच गया।
महेश व्यास ने सीएनबीसी टीवी 18 को बताया कि नोटबंदी से पहले बेरोजगारी की दर एक भयानक स्तर 8 प्रतिशत थी। उसके बाद बेरोजगारी के आंकड़े में 2 प्रतिशत की कमी आयी और अभी यह 7.6 प्रतिशत है। उन्होंने आगे कहा, ‘नोटबंदी के बाद मजदूरों की सहभागिता 44 प्रतिशत से गिरकर 42 प्रतिशत हो गई थी।’ पिछले साल दिसंबर महीने में जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच का जो बेरोजगारी डेटा लीक हुआ था, वह 6.1 प्रतिशत था, जो 1972-73 के बाद सबसे अधिक था।
बता दें कि देश में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव हो रहे हैं। पांच चरणों का चुनाव संपन्न हो चुका है। दो चरण अभी शेष हैं। इस बीच चुनाव अभियान के दौरान विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बना सरकार पर लगातार हमलावर है। राहुल गांधी अक्सर अपने रैलियों में यह कह रहे हैं कि न तो आम आदमी के खाते में 15 लाख रुपये आए और न हीं सलाना 2 करोड़ लोगों को नौकरियां मिली। और तो और नोटबंदी के बाद लाखों लोग बेरोजगार हो गए। उद्योग-धंधे चौपट हो गए। रही सही कसर जीएसटी ने निकाल दी।