यौन उत्पीड़न के आरोपों पर CJI बोले, न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में
नई दिल्ली: चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने ऊपर एक महिला द्वारा लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों से इनकार किया है। ऑनलाइन मीडिया में एक महिला द्वारा कथित तौर पर उत्पीड़न के संबंध में लगाये गये आरोपों से जुड़ी खबरों के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष सुनवाई में जस्टिस गोगोई ने तमाम आरोपों को खारिज किया। जस्टिस गोगोई ने कहा, 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है और न्यायपालिक को अस्थिर करने की कोशिश हो रही है।'
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने इस पर फिलहाल कोई आदेश पारित नहीं किया है और मीडिया को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए संयम दिखाने को कहा है। चीफ जस्टिस ने कहा, 'कोई मुझे पैसे के मामले में नहीं पकड़ सकता, लोगों को कुछ और खोजना था और उन्होंने ये खोज लिया है। मेरे 20 साल तक एक जज के तौर पर काम करने के बाद मेरे पास 6.80 लाख बैंक बैलेंस हैं। यह अविश्वसनीय है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता 'बहुत बहुत खतरे' में है।'
वहीं, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा, 'इस तरह के अनैतिक आरोपों से न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास डगमगाएगा। न्यायिक प्रणाली में लोगों के विश्वास को देखते हुए हम सभी न्यायपालिका की स्वंतत्रता को लेकर चिंतित हैं।'
सुनवाई पूरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई ज्यूडिशियल ऑर्डर पास नहीं किया जा रहा है, पर मीडिया न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए खुद ही जिम्मेदारी तय करे।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अचानक 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता' को लेकर स्पेशल बेंच गठित कर दी। इस बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सहित जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना का भी नाम शामिल किया गया। कोर्ट के एडिशनल रजिस्ट्रार की ओर से इस संबंध में जारी की गई नोटिस के मुताबिक सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के चीफ जस्टिस गोगोई पर लगे उत्पीड़न के एक आरोप के उल्लेख के बाद यह आदेश आया।