नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने ऑफसेट कॉन्‍ट्रैक्‍ट में दसॉल्‍ट एविएशन और MBDA को अभूतपूर्व छूट दी गई थी। 23 सितंबर, 2016 को पूरी हुई 7.87 बिलियन पौंड स्‍टर्लिंग की राफेल डील के तहत यह छूट दी गई। द हिन्‍दू में छपी वरिष्‍ठ पत्रकार एन राम की रिपोर्ट के अनुसार, 24 अगस्‍त, 2016 को लिए गए फैसले में फ्रांस की दो निजी कंपनियों को रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया (DPP) 2013 के मानक अनुबंध दस्‍तावेजों (SCD) के प्रावधानों के पालन से छूट मिली।

यह छूट दो महत्‍वपूर्ण मुद्दों के जुड़ी थी- मध्‍यस्‍थता के लिए ऑफसेट कॉन्‍ट्रैक्‍ट्स के प्रावधानों (आर्टिकल 9) तथा औद्योगिक सप्‍लायर्स के खातों तक पहुंच (आर्टिकल 12)। अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार, तत्‍कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्‍यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने इस छूट का प्रस्‍ताव CCS को ”अंतिम समीक्षा और अनुमोदन” के लिए भेजा था। रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया से बेहद अलग प्रक्रिया अपनाए जाने से पर्रिकर थोड़े असहज थे।

रिपोर्ट में दावा किया गया है केंद्र सरकार ने DPP-2013 के दो और अनिवार्य प्रावधानों को हटा दिया। इन प्रावधानों के जरिए सौदे में “अनुचित प्रभाव के इस्‍तेमाल” और “एजेंट्स/एजंसी कमीशन” पर प्रतिबंध लगाया गया था। दोनों का जिक्र SCD के आर्टिकल 22 और 23 में है। इसके अलावा किसी अपराध के मामले में निजी औद्योगिक सप्‍लायर्स के खिलाफ पेनाल्‍टी लगाने की शर्त भी चुपचाप हटा दी गई।

सप्‍लाई से जुड़े ये महत्‍वपूर्ण प्रावधान अंतर-सरकारी समझौते के अनुबंध में शामिल थे, इन्‍हें हटाए जाने की प्रक्रिया CCS तक गई। जबकि ऑफसेट कॉन्‍ट्रैक्‍ट से ये प्रावधान हटाने की जो मांग फ्रेंच सप्‍लायर्स ने की थी, उसे ”अंतिम समीक्षा और अनुमोदन” के लिए CCS के पास नहीं भेजा गया।