नई दिल्ली: आम चुनाव से ऐन पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। 14 साल पुराने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 मार्च, 2019) को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से अपडेट मांग लिया। कोर्ट ने पूछा कि उसकी स्टेटस रिपोर्ट कहा है? कोर्ट ने सीबीआई से पूछा, “हम जानना चाहते हैं कि आखिर उस मामले में क्या हुआ? 2007 में उसकी स्टेटस रिपोर्ट भी है, उसका क्या हुआ? हम यह जानना चाहते हैं कि आखिरकार क्या वह मामला दर्ज हुआ था?”

कोर्ट की ताजा टिप्पणी ऐसे समय पर आई है, जब आम चुनाव बेहद नजदीक हैं। माना जा रहा है कि इससे मतदाताओं के बीच मुलायम और अखिलेश की छवि पर खासा प्रभाव पड़ सकता है। बहरहाल, कोर्ट ने ये बातें मामले को लेकर दी गई एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहीं। उसमें दरख्वास्त की गई थी कि सीबीआई संपत्ति से जुड़े इस मामले की जांच रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत में या फिर मजिस्ट्रेट कोर्ट में जमा कराए।

दरअसल, राजनीतिक कार्यकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने 2005 में यह याचिका दी थी, जिसमें उन्होंने कोर्ट से सीबीआई को मुलायम, अखिलेश, पत्नी डिंपल और प्रतीक यादव (मुलायम के दूसरे बेटे) के खिलाफ जांच करने को लेकर निर्देश देने के लिए मांग उठाई थी। याचिका में कहा गया था कि इन सब पर प्रिवेन्शन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि सत्ता का गलत इस्तेमाल कर इन लोगों ने आय से अधिक संपत्तियां खड़ी कर लीं। बाद में एक मार्च, 2007 को कोर्ट ने इस बाबत मुलायम, उनके बेटों और डिंपल के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।

हालांकि, दिसंबर 2012 में डिंपल को जांच से राहत मिली थी। कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई डिंपल को छोड़ मुलायम और अखिलेश के खिलाफ जांच को आगे बढ़ाए। उसके बाद से अब तक यादवों के खिलाफ इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकी।

सूत्रों के हवाले से बताया गया कि इसी वजह से न केवल केस कमजोर हुआ, बल्कि हमारी जांच एजेंसियों की साख और विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगे। याचिका के मुताबिक, आयकर रिटर्न और अन्य दस्तावेजों में यादव परिवार के सदस्यों की गलत तरीके से खड़ी की गई संपत्तियों की रकम लगभग 2.63 करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई।