अयोध्या केस की सुनवाई 26 फरवरी को
नई दिल्ली : अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट 26 फरवरी को होगी। क्योंकि न्यायमूर्ति एसए बोबडे छुट्टी से वापस आ चुके हैं। बोबडे इस मामले में सुनवाई करने वाले पांच जजों की बैंच में शामिल हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। बैंच के अन्य सदस्यों में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। इस मामले की सुनवाई पहले 27 जनवरी को होनी थी परंतु संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे की अनुपलब्धता की वजह से यह स्थगित हो गई थी। बैंच अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई करेगी।
उधर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के विवादित स्थल सहित 67.703 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करने संबंधी 1993 के केंद्रीय कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिका पर इस संबंध में पहले से ही लंबित मामले के साथ विचार किया जाएगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस मुद्दे को लेकर नई याचिका को मुख्य याचिका के साथ ही संलग्न करने का आदेश दिया। पीठ ने कहा कि इस याचिका को उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए जो इस मसले पर पहले से विचार कर रही है।
यह याचिका लखनऊ के दो वकीलों सहित 7 व्यक्तियों ने दायर की है। याचिका में स्वयं को राम लला के भक्त होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि राज्य की भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कानून बनाने में संसद सक्षम नहीं है। याचिका में कहा गया है कि वैसे भी सिर्फ राज्य सरकार को ही अपने प्रदेश के भीतर धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन से संबंधित मामलों के लिये प्रावधान करने का अधिकार है। वकील शिशिर चतुर्वेदी और संजय मिश्रा तथा अन्य ने याचिका में कहा था कि अयोध्या के कतिपय क्षेत्रों का अधिग्रहण कानून, 1993 संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों और उनके संरक्षण का अतिक्रमण है।
इस याचिका से एक सप्ताह पहले 29 जनवरी को केंद्र ने एक याचिका दायर करके सुप्रीम कोर्ट से उसके 2003 के फैसले में सुधार करने और अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास की गैर विवादित 67 एकड़ भूमि उनके असली मालिकों को लौटाने की अनुमति देने का अनुरोध किया था।
बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने याचिका में कहा था कि अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को कार सेवकों द्वारा विवादित ढांचा गिराए जाने से पहले यह 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के अंदर 0.313 भूखंड पर स्थित था। सरकार ने 2-77 एकड़ के भूखंड सहित 67.703 एकड़ भूमि का एक कानून के माध्यम से अधिग्रहण कर लिया था। इसमें 42 एकड़ गैर विवादित वह भूमि भी शामिल थी जिसका स्वामित्व राम जन्म भूमि न्यास के पास है।
उधर ज्योतिषपीठ और द्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने पुलवामा की घटना के बाद देशहित में अयोध्या श्री राम जन्मभूमि रामाग्रह यात्रा और इष्टिका न्यास का कार्यक्रम रविवार को स्थगित कर दिया। इस यात्रा के संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की ओर से एक बयान जारी करते हुए बताया कि स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के बावजूद शंकराचार्य अपनी रामाग्रह यात्रा करने पर अडिग थे।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में की गई घोषणा के मुताबिक जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को 17 फरवरी को प्रयागराज से रामाग्रह यात्रा प्रारंभ करनी थी। स्वास्थ्य खराब होने के चलते उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था और शनिवार को वह काशी के केदार घाट स्थित श्री विद्यामठ चले आए थे और रामाग्रह यात्रा के लिए रविवार को प्रयागराज आने वाले थे।