कश्मीरी छात्रों-व्यवसायियों के ख़िलाफ़ संगठित हिंसा से होगा देश के दुश्मनों को फायदा: नागरिक समाज
लखनऊ: लखनऊ में हुई नागरिक समाज की बैठक में विभिन्न संगठनों ने पुलवामा की घटना पर दुख प्रकट करते हुए दो मिनट का मौन रखा. संगठनों ने एक स्वर में कहा कि पुलवामा की घटना सुरक्षा और खुफिया एजेंसियो की नाकामी भी है. इस घटना के लिए चरमपंथियों को तो ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है लेकिन इसके लिए सभी कश्मीरियों को ज़िम्मेदार मान लेना और उन्हें हमले का निशाना बनाना भी उतना ही खतरनाक आतंकवादी कृत्य है.
बैठक में कश्मीरी-मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने और उनके ख़िलाफ़ संगठित हिंसा की घटनाओं पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा गया कि इससे केवल फासीवादी-सांप्रदायिक ताकतों और आतंकियों को ही फायदा मिलेगा. देश 1984 में हुए सिखों के नरसंहार और 2002 में हुए गुजरात दंगो को अभी भुला नहीं सका है. नागरिक समाज ने अमनपसंद देशवासियों से विनम्र अपील की कि दुख की इस घड़ी में उन्माद और अफवाह फैला रहे तत्वों पर नजर रखें और उनके मंसूबों पर पानी फेरने का काम करें. इसी के साथ अपने-अपने क्षेत्रों में खतरे में पड़े बेगुनाह कश्मीरियों की सुरक्षा और मदद के लिए भी हर संभव प्रयास करें. देश की एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए फ़िलहाल यह सबसे जरूरी कार्यभार है. सच्ची देशभक्ति इसी का नाम है.
नागरिक समाज ने कहा कि पुलवामा की घटना से पूरा देश दुख और सदमे में है, मारे गए जवानों के परिवारों के साथ खड़ा है. लेकिन यह भी कम दुखदायी नहीं कि सौहार्द और संवेदना के इस दृश्य में प्रतिशोध के स्वर बहुत ऊंचे हैं. शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे कश्मीरियों पर हो रहे हमले देश की विघटनकारी ताकतों को और मजबूत करेंगे. यह ठीक वैसा ही है जैसे रोज़गार के लिए महाराष्ट्र-गुजरात गए यूपी-बिहार के लोगों पर क्षेत्रीय आधार पर हमले किए जाते हैं. यह उन्मादी प्रवृत्ति देश की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है. कश्मीरियों पर हो रहा हमला अराजकता को बढ़ाने और असामाजिक तत्वों को निरंकुश बनाने का काम करेगा. 1984 में इसी तरह बदले की भावना में आकर सिख विरोधी बर्बर हिंसा हुई थी जिसने मानवता को शर्मसार किया.
नागरिक परिषद के संयोजक राम कृष्ण ने कहा कि नागरिक समाज की एकता को खंडित करके भारत की राष्ट्रीय एकता व अखंडता की कल्पना नहीं की जा सकती. विघटनकारी ताकतें अलग-अलग बहानों से भारत की सांप्रदायिक व जातीय विविधता को निशाना बनाकर धार्मिक, जातीय और क्षेत्रीय मुद्दे उभारकर देश की एकता व अखंडता को चोट पहुंचाती रही हैं. एक विवाद के शांत होते ही नया सामाजिक भेदभाव का विवाद खड़ा करती हैं. उन सभी ताकतों और उनके प्रचार चैनलों से नागरिक समाज की अपील है कि इस घड़ी में देश की एकता को खंडित करने वाले उकसावे और बयानबाजी से बचें. आज भारत में राष्ट्रीय राजनीतिक एकता की सबसे अधिक ज़रूरत है ताकि हमारा देश राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय ताकतों की राष्ट्र विरोधी साजिशों से सुरक्षित रहे. सामने खड़ी गंभीर चुनौतियों के मद्देनज़र प्रधानमंत्री मोदी को अपने पद से इस्तीफा देकर पक्ष-विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के हित में और दुश्मनों की साज़िशों का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय सरकार के गठन का प्रस्ताव लाना चाहिए. व्यापक राजनीतिक सामाजिक एकता बना कर और संकीर्ण राजनीतिक दलीय स्वार्थों को त्याग कर ही आज की कठिन चुनौती का सामना किया जा सकता है.
बलिया से सामाजिक न्याय आंदोलन के बलवंत यादव ने कहा कि पुलवामा की घटना अंतराष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा हो सकती है. क्योंकि दुनिया की सैन्य ताकतें मध्य-एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में फंसी हुई है. अमेरिका, रूस और चीन भारत में अपना दबदबा बढ़ाने और बाज़ार पर नियंत्रण करने के लिए बेचैन हैं. चीन की वन-बेल्ट-वन रोड योजना और अमेरिका की अफगानिस्तान में भारतीय फ़ौज तैनात करने की पुरानी योजना से भारत बचता रहा है. भारतीय उद्योग जगत का अंतराष्ट्रीय व्यापर घाटा और अंतराष्ट्रीय कर्जे लगातार बढ़ते चले गए हैं. ऐसे में भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को भंग करने के लिए दुनिया की सैनिक ताकतें भारत को युद्ध क्षेत्र बनाने के लिए और भारतीय उपमहाद्वीप में अपना सैनिक दखल बढ़ाने के लिए कट्टरपंथियों और अलगाववादियों का इस्तेमाल कर सकती हैं. क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा करने के लिए सैनिक साजिशें कर सकती हैं.
बैठक में मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिन कश्मीरियों पर हमले किए जा रहे हैं वे इस देश को अपना समझकर उसके अलग-अलग हिस्सों में शिक्षा, चिकित्सा और कारोबार के लिए रह रहे हैं. यह उनके मुख्य धारा से जुड़े रहने का साधन है. हम अपील करते हैं कि कश्मीर वासियों को देश की मुख्यधारा से जोड़े रखने के उद्देश्य से उन पर जारी हमले बंद हों.
बैठक में शकील कुरैशी ने कहा कि सैनिकों की अंतिम यात्रा में उन्नाव सांसद साक्षी महाराज राजनैतिक रैली की तर्ज पर हाथ हिला-हिला कर लोगों का अभिवादन कर रहे थे तो मुरादाबाद के मेयर विनोद अग्रवाल हंस रहे थे. इससे पता चलता है कि वे सैनिकों को सम्मान देने नहीं, अपनी और बीजेपी की राजनीति चमकाने के लिए गए थे. देश की इन विघटनकारी ताकतों के कृत्यों से सैनिकों की आत्मा दुखी होगी. उन्होंने मांग कि की सैनिकों के परिजनों को क्लास वन की सरकारी नौकरी दी जाए.
बैठक में रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, नागरिक परिषद के रामकृष्ण, इंसानी बिरादरी के सृजनयोगी आदियोग, इनायतुल्ला खान, उत्तर प्रदेश जमीयतुल कुरैशी के शकील कुरैशी, कारवां के विनोद यादव, शाहरुख़ अहमद, रवीश आलम, मुन्ना यादव, आनंद यादव, वीरेन्द्र कुमार गुप्ता, डा. दाऊद, शाहआलम और वसीम खान आदि शामिल रहे.