लोकसभा संग्राम 37–सपा-बसपा की महत्वकांक्षा के चलते क्या कांग्रेस ने यूपी में बनाया बी प्लान ?
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। आगामी लोक सभा चुनाव 2019 को जीतने के लिए सियासी लोगों ने सतरंज की चालों पर काम करना शुरू कर दिया है देशभर में इसको लेकर घमासान हो रहा है इस सियासी संग्राम में यूपी केन्द्र बिंदू बना हुआ है यहाँ सियासी परिदृश्य अभी साफ नही हुआ है इसमें सबसे बड़ी बाधा सपा-बसपा की महत्वकांक्षा बनी हुई है कांग्रेस का आलाकमान किसी भी सूरत में 2014 जैसे हालात नही बनने देना चाहता है कि विपक्ष का वोट बँट जाए और इसका फ़ायदा मोदी की भाजपा को मिले लेकिन सपा-बसपा यह बात समझने को फिलहाल तैयार नही दिख रही है कांग्रेस की पहली प्राथमिकता यही रहेगी कि पूरा विपक्ष चुनाव की घोषणा से पूर्व एक अमरेले के नीचे एकजुट हो जाए काफ़ी हद तक कांग्रेस अपने इस मक़सद में कामयाब भी हो रही है लेकिन यूपी में सपा-बसपा आख़री वक़्त में गच्चा दे सकती है।मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ व राजस्थान के हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सपा-बसपा से समझौता नही हो सका था और कांग्रेस को मजबूरन अकेले चुनाव में जाना पड़ा था और कांग्रेस को सफलता भी मिली आमतौर पर देखा गया है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों में बड़ा फ़र्क़ होता है इसमें वोटरों की पहली पसंद राष्ट्रीय पार्टियाँ होती है क्योंकि वह मानते है कि केन्द्र में सरकार इन्हीं पार्टियों की बनेगी उसी को ध्यान में रखकर ज़्यादातर वोटिंग करते है और इस बार के चुनाव में तो अलग ही परिदृश्य बन रहा है देश का एक बहुत बड़ा तबक़ा मोदी की भाजपा को सत्ता से बेदख़ल करने को तैयार बैठा है।सपा-बसपा के तेवरों को देखकर लगता है कि चाहे पूरे देश का विपक्ष एकजुट हो जाए परन्तु ये दोनों पार्टियाँ अपनी महत्वकांक्षा के चलते शायद ही गठबंधन का हिस्सा हो इसकी वजह है देश के ज़्यादातर राज्यों में सीटों की माँग करना माना जा रहा है जो सम्भव नही लगता है।उसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने बी प्लान बनाया है कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि चौधरी अजीत सिंह की रालोद, अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी व शरद यादव की लोकतान्त्रिक जनता दल को साथ लेकर चुनाव में जाया जाए।देश की ज़्यादातर सीटें ऐसी है जहाँ कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर चुकी है या जहाँ वह अकेले लड़ने की हालत में है वहाँ उसने फ़ील्डिंग लगा दी है इनकी संख्या लगभग 320 के क़रीब है।कांग्रेस ने इन दलों से गठबंधन की बात फ़ाइनल कर ली है बिहार में (40 सीट लोकसभा की है)लालू की राजद से, झारखंड में राजद व जेएसएम से (14 सीट लोकसभा) जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ़्रेंस से (6 सीट लोकसभा), आन्ध्र प्रदेश में टीडीपी से (25 सीट लोकसभा),तमिलनाडु में डीएमके से (39 सीट लोकसभा), कर्नाटक में जेडीएस से (28 सीट लोकसभा), महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी से (48 सीट लोकसभा) पश्चिम बंगाल में वामपंथियों से या ममता से(42 सीट लोकसभा) बात चल रही है किसी से भी हो सकता है जहाँ कांग्रेस गठबंधन की बात फ़ाइनल कर चुकी है वहाँ 242 सीटें है।जहाँ कांग्रेस की सरकारें है वहाँ लोकसभा की 78 सीटें है राजस्थान की 25 सीट मध्य प्रदेश की 29 सीट छत्तीसगढ़ की 11 सीट पंजाब की 13 सीट है यहाँ बिना गठबंधन के भी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।कांग्रेस की स्ट्रेटेजी ने मोदी की भाजपा की बाँटो राज करो की रणनीति को कमज़ोर किया है बल्कि खतम भी कहा जा सकता है।ऐसा लग रहा है कि 2019 का चुनाव 2014 के ट्रैक से अलग जा रहा है सभी राज्यों में मोदी की भाजपा के ख़िलाफ़ माहौल बन रहा है लोगों का आरोप है हमने विकास हो और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सरकार चुनी थी न कि हिन्दू मुसलमान सिख इसाई के लिए इनके पास इसके अलावा कुछ है ही नही इस लिए देश जितना लोकसभा चुनाव के क़रीब जा रहा है उतना ही कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनता जा रहा है एनडीए के साथी भाग रहे है और यूपीए का कुनबा बढ़ता जा रहा है।यूपी में सपा-बसपा के साथ महागठबंधन हो या न हो कांग्रेस दोनों विकल्पों पर काम कर रही है सुना है नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति भी होने जा रही है जितिन प्रसाद को प्रदेश की कमान सौंप कर युवा जोश के नारे के साथ लोकसभा चुनाव में जाने की तैयारी की जा रही है जनवरी के आख़िर तक यूपी के साथ देश की सियासी तस्वीर बदलने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है।