केंद्र के इशारे पर चलता तो कश्मीर में बनती सज्जाद लोन की सरकार:राज्यपाल सत्यपाल मलिक
नई दिल्ली:जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक बीते दिनों विधानसभा भंग करने के अपने फैसले के कारण आलोचकों के निशाने पर हैं। राज्यपाल पर आरोप है कि उन्होंने केन्द्र सरकार के दबाव में विधानसभा भंग करने का फैसला किया। अब एक बार फिर सत्यपाल मलिक ने अपने फैसले का बचाव किया है। शनिवार को मध्य प्रदेश में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में आयोजित हुए एक सम्मेलन के दौरान सत्यपाल मलिक ने कहा कि “यदि मैं दिल्ली (केन्द्र) की तरफ देखता तो मुझे मजबूरी में सज्जाद लोन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना पड़ता। तब मुझे बेईमान समझा जाता। लेकिन मैंने सब खत्म कर दिया। जो लोग मुझे गाली देना चाहते हैं वो दे सकते हैं, लेकिन मैं इस बात से सहमत हूं कि मैंने सही फैसला किया।”
बता दें कि बीते 21 नवंबर को पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। बताया जा रहा है कि महबूबा मुफ्ती ने इस संबंध में फैक्स और फोन के जरिए भी राज्यपाल को इसकी जानकारी देने की कोशिश की थी। लेकिन बताया गया कि फैक्स मशीन खराब थी और फैक्स ऑपरेटर ईद के मौके पर छुट्टी पर था। जिसके बाद महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी। इसी बीच पीपल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी भाजपा के समर्थन और कुछ अन्य विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया था। इसी बीच राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी। विधानसभा भंग करने के लिए राज्यपाल ने ये तर्क दिया कि अलग-अलग विचारधाराओं वाली राजनैतिक पार्टियों के एक साथ आने से स्थाई सरकार बनाना असंभव है। इसके साथ ही राज्यपाल ने तर्क दिया कि उन्हें रिपोर्ट मिल रही थी कि राजनैतिक पार्टियां खरीद फरोख्त करने वाली थी।
मध्य प्रदेश के कार्यक्रम में पत्रकार रवीश कुमार भी मौजूद थे। इस दौरान उन्होंने फैक्स मशीन के खराब होने के मुद्दे पर कटाक्ष करते हुए छात्रों से कहा कि “छात्रों को ऐसी फैक्स मशीन बनानी चाहिए, जो शाम के 7 बजे के बाद भी काम करे।” रवीश कुमार के इस कटाक्ष पर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि ‘किसी गवर्नर की यह ड्यूटी नहीं कि छुट्टी के दिन वह खुद फैक्स मशीन से मुफ्ती की चिट्ठी आने का इंतजार करे। अगर मुफ्ती सरकार बनाने के लिए संजीदा थीं तो श्रीनगर और जम्मू के बीच कई फ्लाइट भी चलती हैं। किसी को भी भेजा जा सकता था।’