देश में बढ़ी है असहिषुणता: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नई दिल्ली: शासन और संस्थानों के कामकाज को लेकर मोहभंग की स्थिति की ओर ध्यान दिलाते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संस्थान राष्ट्रीय चरित्र का आईना हैं तथा भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्हें लोगों का विश्वास दोबारा जीतना चाहिए। मुखर्जी यहां 'शांति, सौहार्द्र एवं प्रसन्नता की ओर : संक्रमण से बदलाव विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''जिस धरती ने दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम और सहिष्णुता, स्वीकार्यता और क्षमा के सभ्यतागत मूल्यों की अवधारणा दी, वह अब बढ़ती असहिष्णुता, रोष की अभिव्यक्ति और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर खबरों में है। उन्होंने संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया जैसा कि संविधान में प्रदत्त है। उन्होंने कहा कि देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है।
उन्होंने कहा, “जब राष्ट्र बहुलवाद और सहिष्णुता का स्वागत करता है और विभिन्न समुदायों में सद्भाव को प्रोत्साहन देता है, हम नफरत के जहर को साफ करते हैं और अपने दैनिक जीवन में ईर्ष्या व आक्रमकता को दूर करते हैं तो वहां शांति और भाईचारे की भावना आती है।” उन्होंने कहा, “उन देशों में अधिक खुशहाली होती है जो अपने निवासियों के लिए मूलभूत सुविधाएं व संसाधन सुनिश्चित करते हैं, अधिक सुरक्षा देते हैं, स्वायत्ता प्रदान करते हैं और लोगों की सूचनाओं तक पहुंच होती है। जहां व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी होती है और लोकतंत्र सुरक्षित होता है वहां लोग अधिक खुश रहते हैं।” मुखर्जी ने कहा, “आर्थिक दशाओं की परवाह किए बगैर लोक शांति के वातावरण में खुश रहते हैं।” आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “अगर इन आंकड़े की उपेक्षा की जाएगी तो प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में भी हमारी खुशियां कम हो जाएंगी। हमें विकास के प्रतिमान पर शीघ्र ध्यान देने की जरूरत है।”
गुरुनानक देव की 549वीं जयंती पर उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि आज उनके शांति और एकता के संदेश को याद करना आवश्यक है। उन्होंने चाणक्य की सूक्ति को याद करते हुए कहा कि ‘प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी निहित होती है।’ उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में कहा गया है कि हमारे बीच एकता हो, स्वर में संसक्ति और सोच में समता हो। मुखर्जी ने सवाल किया कि क्या संविधान की प्रस्तावना का अनुपालन हो रहा है जो सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी और चिंतन, दर्जा और अवसर की समानता की गारंटी देती है। उन्होंने कहा कि आम आदमी की प्रसन्नता की रैंकिंग में भारत 113वें स्थान पर है जबकि भूखों की सूचकांक में भारत का दर्जा 119वां है। इसी प्रकार की स्थिति कुपोषण, खुदकुशी, असमानता और आर्थिक स्वतंत्रता की रेटिंग में है।