मुलायम सिंह यादव: वह नेता जिसने सांप्रदायिक राजनीति को तगड़ी चुनौती दी
मुश्ताक़ अली अंसारी
(जन्मदिन विशेष)
भारतीय राजनीति में समाजवादी आंदोलन के पुरोधा धरतीपुत्र कहे जाने वाले और नेता जी के नाम से लोकप्रिय माननीय मुलायम सिंह यादव वो नेता है जिसने कांग्रेस के दौर की सिंगल पार्टी राजनीति को चुनौती दी और साठ के दशक से लेकर और आज तक समाजवादी आंदोलन को धार देने का काम किया माननीय मुलायम सिंह यादव ने उस दौर में भारत के अंदर समाजवादी पार्टी का पुनर्गठन किया जब सोवियत यूनियन के खत्म हो जाने के बाद दुनियाभर की तमाम समाजवादी पार्टियों ने अपने नाम और झंडे तक बदल लिए थे आर्थिक उदारीकरण की हवा के दौर में मुलायम सिंह ने भारत के अंदर समाजवादी आंदोलन को पुनर्गठित किया और 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया समाजवादी पार्टी और समाजवादी विचारधारा के लिए समर्पित रहने वाला योद्धा लोकप्रिय सोशलिस्ट आंदोलन से उभर कर राजनीति में आया था जो समाजवादी आंदोलन कभो सोशलिस्ट पार्टी कभी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी कभी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में कभी बंटती कभी संगठित होती रहती थी। लेकिन इस समाजवादी नेता ने समाजवादी झंडे को कभी गिरने नहीं दिया और यह सबसे बड़ी बात है की भारत के अंदर समाजवादी पार्टी की स्थापना तब की जब पूरा देश की राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था सांप्रदायिकता के झंझावातों से जूझ रही थी। इतना ही नहीं राम मंदिर आंदोलन जो आर एस एस की सामाजिक न्याय के खिलाफ समाजवादी आंदोलन के खिलाफ सोची समझी साजिश थी और उसने पूरे भारतीय समाज का सांप्रदायिक रण करके रख दिया था सांप्रदायिकता के उभार के बाद षड्यंत्र पूर्वक बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने का मौका नहीं दिया था और कांशीराम के साथ मिलकर समाजवादी सामाजिक न्याय का परचम लहराया था
उस साम्प्रदायिक दौर में मुलायम सिंह ने भारत के अंदर पूरे उत्तर प्रदेश के अंदर सांप्रदायिक सद्भावना सम्मेलन और रैलियों का आयोजन करके भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों को चुनौती दी थी और पूरे उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता के जड़ों से बाहर निकालकर समाजवाद की राह पर चलाया था आज के दौर में 26 साल पुराना दौर फिर से दोहराया जा रहा है फिर से बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद को मुद्दा बनाया जा रहा है 25 नवंबर 2018 को अयोध्या में फिर से धर्म सभा सम्मेलन रैली करने का आरएसएस विश्व हिंदू परिषद ने प्रोग्राम तय किया है ऐसे दौर में मुलायम सिंह यादव की नीतियों पर चलकर और सद्भावना सम्मेलन रैलियों का आगाज करते हुए जनता को आर एस एस के सांप्रदायिक फासीवादी से सावधान करना होगा। जनता को जगाने सांप्रदायिकता से लड़ने के लिए तैयार करना होगा सिर्फ समीकरण बैठाने से काम नहीं चलने वाला। 1990 के दशक में सांप्रदायिक राजनीति को नेताजी ने जी ने ध्वस्त करने का काम किया था आज सांप्रदायिकता पहले से कहीं ज्यादा समाज मे बैठी हुई है समाज के अंदर आर एस एस के प्रचारको ने इतना विष वमन कर दिया है कि जब तक नेता जी मुलायम सिंह यादव की नीतियों पर चलकर समाजवादी पार्टी सांप्रदायिक सद्भाव के लिए प्रयास नहीं करती तब तक समाजवादी सामाजिक न्याय की मंजिल को पाया नहीं जा सकता।
लेखकसोशल मीडिया एक्टिविस्ट और स्वतंत्र पत्रकार हैं