*छत्तीसगढ़ में मायावती-अजित की किंगमेकर बनने की इच्छा क्या पूरी हो पाएगी ?*
रायपुर से तौसीफ़ क़ुरैशी
रायपुर।पाँच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के परिणाम क्या होगे किस पार्टी के कार्यालयों में दीपावली जैसा जश्न होगा और कहाँ हार के बाद मातम होगा यह तो उन राज्यों तक सीमित रह जाएगा लेकिन इन पाँचो राज्यों के परिणाम राष्ट्रीय राजनीति में भी अहम हो गए है साथ ही छत्तीसगढ़ में रीजनल पार्टी छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस के अध्यक्ष अजित जोगी का भविष्य भी तय होगा अगर उनकी पार्टी जीत गई तो बल्ले-बल्ले लेकिन दावों के ख़िलाफ़ आए परिणाम उनको फिर से नये सिरे से सोचना होगा कि आगे उन्हें क्या करना है छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस के अध्यक्ष अजित जोगी बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर अपने आपको भारी मान रहे जबकि 2003 के बाद से चुनाव दर चुनाव पर नज़रें सानी करने के बाद पता चलता है कि राज्य में बसपा को मिल रहे वोट में हर चुनाव में कमी आई और जनता में उसके प्रति आकर्षण कम हुआ है हम बात करते है जबसे राज्य अस्तित्व में आया 2003 में बसपा ने 90 सीटों में से 54 सीटों पर अपने प्रत्याशी लड़ाए और उसको मिले मत प्रतिशत 6.94 यानी लगभग सात प्रतिशत था व सीट जीती दो बाक़ी पर उसके प्रत्याशियों की बुरी तरह हार हुई 46 सीटों पर प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हो गई थी उसके बाद 2008 में हुए चुनाव में बसपा ने सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए लेकिन मिले वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होने के बजाए घट कर 6.12 पर आ गया और सीट जीती इस बार भी मात्र दो ही और 83 सीटों पर प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हो गई। उसके बाद 2013 में हुए चुनाव बसपा को मिले वोट प्रतिशत में उम्मीद से कही कम वोट मिले वह गिरकर इस बार 4.29 पर आ गया था और इस बार सीट जीतने का आँकड़ा भी दो से घटकर एक हो गया था ज़मानत ज़ब्त होने वाले प्रत्याशियों के आँकड़े में भी बढ़ोतरी हो गई जो बढ़कर 84 पर चला गया था 2003 से 2013 तक हुए चुनाव में बसपा को दो बार दो-दो व एक बार एक सीट पर कुल मिलाकर पाँच सीट पर संतोष करना पड़ा सांरगढ और मलखारोडा सीटों पर उसे 2003 में सफलता प्राप्त की वही 2008 में उसे पामगढ़ और अकलतरा की विधानसभा सीटों पर जीत मिली और 2013 में हुए चुनाव में उसका जनाधार घटकर जैजेपुर तक सीमित हो गया था 2018 के चुनावों में बसपा छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस के अध्यक्ष अजित जोगी के साथ गठबंधन कर 33 सीटों पर चुनाव लड़ रही है उनके हिस्से में आई 35 में से दो सीट कोटा और दंतेवाड़ा सीपीआई को दे दी गई इस लिए 33 रह गई इन्हीं 33 सीटों में 19 सीटें आरक्षित वर्ग की है जिनमें 11 ST व 8 SC वाली है वैसे राज्य में 39 सीटें आरक्षित है जिनमें 29 सीट एसटी के लिए है और दस सीट एससी के लिए आरक्षित है इन सीटों में से (सारंगढ , पामगढ़ , बिलाईगढ़ , अहिवारा , नवागढ़ , डोगरगढ़ , मस्तूरी और सरायपाली वाली आरक्षित सीटें बसपा को दी गई है ताकि वह एससी वर्ग के वोटबैंक में भावनात्मक तरीक़े से सेंध लगा सके जिसमें अभी तक वह नाकाम रही है 12 प्रतिशत वाले राज्य में बसपा एसटी/एससी वर्ग में अपनी वह पकड़ नही बना पाई है जिसके लिए वह यूपी में जानी जाती है तो कुल मिलाकर 33 में से 3 ही ऐसी सीट हैं जिन पर अजित जोगी बसपा से उम्मीद लगा सकते हैं।इसके बावजूद 30 अतिरिक्त सीट बसपा को देना, वो भी तब जब इन तीस में से 21 पर वह 5,000 वोट भी न पा सकी हो, पहली नजर में तो फायदे का सौदा जान नहीं पड़ता.लगता है कि बेहतर होता यदि अपनी आदिवासी नेता की छवि का लाभ उठाकर अजित जोगी अकेले ही मैदान में ताल ठोंकते,लेकिन, अजित जोगी का बसपा के साथ गठबंधन भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने और खुद को किंगमेकर बनाने का प्रयास ज्यादा जान पड़ता है,उनकी मंशा है कि यदि बसपा उक्त तीन सीटें निकालने में सफल हो जाये और इतनी ही सीट उनकी पार्टी निकाल सके तो बसपा के सहयोग से वह किंगमेकर बन सकते हैं,क्योंकि छत्तीसगढ़ में हार-जीत के नतीजों में बड़ा ही कम अंतर होता है,वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा के पास 49 सीटें हैं तो कांग्रेस के पास 39. जोगी की चाल है कि यदि 6-7 सीटें वे और बसपा मिलकर निकाल लें और कांग्रेस व भाजपा दोनों ही 40-42 सीटें पायें तो वे किंगमेकर बन जायेंगे, बहरहाल, प्रदेश में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है,दूसरे चरण का चुनाव बीस नवंबर को होना है,इस बीच मतदान के ऐन पहले डोगरगांव और सरायपाली के बसपा प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस में शामिल हो गये हैं जिससे दो सीटों का नुकसान माया और जोगी के गठबंधन को चुनावी नतीजे आने से पहले ही हो चुका है।