लोकसभा संग्राम 19–मुग़लों के बारूद पर टिका नागपुरियां आईडियोलोजी का मनगढ़ंत हिन्दुत्व
लखनऊ से तौसीफ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। नागपुरियां आईडियोलोजी को मानने वाले लोगों के दौरे हुकूमत का सिलसिला हिन्दुस्तान में जब से शुरू हुआ तब से लेकर अब तक कहा जा सकता है कि कोई भी काम ऐसा नही है जिसमें उन्होंने अपनी कुंद सोच का प्रदर्शन न किया हो जबकि सत्ता प्राप्त करने से पूर्व सबका साथ सबका विकास का नारा देकर सत्ता प्राप्त की थी और कर उसके उलट रहे है यह है उनका चाल चरित्र और चेहरा| वैसे तो यह सब जानते है थे कि यह सोच देश की एकता के लिए ख़तरा है परन्तु जिस तरह के हालात 2014 से पूर्व बना दिए गए थे कि चारों ओर भ्रष्ट्राचार फैला हुआ है उससे देश को बचाने के लिए किसी ऐसे सियासी नेता की तलाश होने लगी जिसकी छवि बेदाग़ हो उसमें नरेंद्र मोदी का फ़ोटो सही बैठता था ऐसा जनता को लगा, जबकि वह सही नही था यही साबित भी हो रहा है जो भ्रष्टाचार के मामले निकल कर आ रहे है नोटबंदी को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है यह कहा जा रहा है कि अगर सही तरीक़े से जाँच हो जाए तब पता चले कि नोटबंदी कर क्या किया गया है| कृषि बीमा में भी राहुल गांधी ने घोटाले का आरोप लगाया है उनका कहना है कि यह तो नोटबंदी से भी बड़ा घोटाला है स्वयंभू बेदाग़ बताने वाले मोदी आरोप लगने पर जाँच से क्यों भाग रहे है अगर आप सही है तो जाँच से भागना तो नही चाहिए और अगर आप भाग रहे है तो फिर शक की सुईं घूमेगी उसे आप रोक नही सकते इससे उनकी स्वयंभू बेदाग़ छवि की हवा निकल गईं। सबका साथ सबका विकास का नारा भूल कर जनता को जनपदों व रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने में उलझा रहे कि मुग़लों ने इस जनपद का नाम ग़लत रखा था इस लिए इसका नाम बदल दिया है उसका नाम बदल दिया है उसका नाम बदलेंगे अरे क्या है यह सब असल में यह 2019 के लोकसभा चुनावी संग्राम का हिस्सा है अरे भाई नाम बदलने से क्या होगा इनके विकास की सोचों कि किस तरह इनका विकास हो पर नही इनके पास विकास का कोई फ़ार्मूला नही है नफ़रतों के सियासी झूलो में पले बढ़े नागपुरियां आईडियोलोजी के विजन विहीन लोग जनता का बेवक़ूफ़ बनाने में लगे है,सही मायने में अगर देखा जाए तो मुग़लों के बारूद पर टिका है नागपुरियां आईडियोलोजी का मनगढ़ंत हिन्दुत्व। अगर हम नामों की बात करे तो जब मुग़लों ने हमारे मुल्क में प्रवेश किया तो हमारा मुल्क छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था मुग़लों ने इस मुल्क को छोटी-छोटी रियासतों से युद्ध कर इस मुल्क को एक संपन्न मुल्क बनाया और सोने की चिड़िया कहा जाने लगा था और रही नामों की बात जब छोटी-छोटी रियासतों से युद्ध लड़ कर संयुक्त मुल्क बन गया तो उन्होंने इसका नाम हिन्दुस्तान रखा न कि कोई इस्लामिक नाम| अगर उनकी भी सोच कुंद होती वो भी कोई इस्लामिक नाम रख सकते थे और कोई कुछ बोल भी नही सकता था क्योंकि राजशाही और लोकतंत्र में बहुत फ़र्क़ होता है पर उन्होंने ऐसा नही किया और करना भी नही चाहिए था अगर वह ऐसा करते तो उन्हें इतिहास आज तक याद न रखता। मुग़लों के दौर में अगर रामपुर बना तो अयोध्या भी बनाया बल्कि इतिहासकार बताते है कि उन्होंने ही अयोध्या को बसाया है और नागपुरियां आईडियोलोजी कहती है कि मुग़लों की सोच देश के लिए बेहतर नही थी अगर यह सोच भी बेहतर नही थी तो फिर कौन सी सोच है जो इसके लिए बेहतर है आज देश में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जिसे इतिहास किसी भी सूरत में स्वीकर नही करता है इतिहास कुछ और बताता है और नागपुरियां आईडियेलोजी कुछ और आम आदमी हैरान और परेशान है कि किसको माने काफ़ी मंथन करने के बाद इतिहास को ही स्वीकार करने में मुल्क की बेहतरी लगती है ऐसी कोई बात इतिहास नही बताता जो नागपुरियां आईडियोलोजी मनगढ़ंत कहानियाँ गढ़ कर पेश करती है अगर मुग़ल इमानदार न होते तो हम आज हिन्दुस्तान में न होते जिस तरह जब अंग्रेज़ों ने हमारे मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया और उनका शासन हो गया तो ग्वालियर का शाही घराना मैसूर का वाडियार घराना और जयपुर का राजशाही घराना व जोधपुर का राजशाही घराने ने उनसे दोस्ती कर अपनी राजशाहीयत को बचाया था पर अगर कोई मुल्क की बेहतरी के लिए तब भी लड़ रहा था तो वह मुग़लों की नस्लें
ही थी टीपूँ सुल्तान थे या बहादुर शाह ज़फ़र कोई चिथड़े-चिथडे हो गया तो किसी को मिट्टी भी नसीब नही हुई और उनके वंशज आज भी भीख माँगने को विवश है अगर वह अंग्रेज़ों से समझौता कर अपनी राजशाही बचा लेते तो उनके बच्चे भी आज सांसद विधायक मंत्री होते न कि भीख माँग कर गुज़र बसर करने को मजबूर होते आज हिन्दुस्तान में कुंद सोच की दौरे हुकूमत में भारत माता की जय और वंदेमातरम कहने से ही इंसान को देशभक्ति का प्रमाण पत्र देते है चाहे उसका इतिहास ग़द्दारी से भरा पड़ा हो यह कोई नही पूछता।बहादुर शाह ज़फ़र ने जब 1857 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हुए ग़दर का नेतृत्व किया और उनको पूरे देश के राजा रजवाड़ों तथा बादशाहों ने अपना नेता माना भीषण युद्ध के बाद अंग्रेज़ों की छल कपट वाली नीति से (जो नागपुरियां आईडियोलोजी की भी है) बहादुर शाह ज़फ़र पराजित हो गए और हिरासत में ले लिए गए अंग्रेज़ों की क़ैद में जब उन्हें भूख लगी तो अंग्रेज़ों ने उनके सामने खाने की थाली में परोसकर उनके बेटों की गर्दनों को पेश किया तब उन्होंने अंग्रेज़ों को जवाब दिया कि हिन्दुस्तान के बेटे देश के लिए सिर क़ुर्बान कर अपने बाप के सामने इसी अंदाज में आते है उसी बहादुर शाह ज़फ़र को अपने हिन्दुस्तान की ज़मीन में दफ़्न होने की उनकी चाह भी पूरी न हो सकी और क़ैद में ही रंगून (अब बर्मा) की मिट्टी में दफ़्न हो गए अंग्रेज़ों ने उनकी क़ब्र की निशानी भी न छोड़ी और मिट्टी बराबर कर फ़सले उगा दी बाद में खुदाई होने पर उनका कंकाल निकला और शिनाख्त के बाद उनकी क़ब्र को फिर बनाई गई। 7 नवंबर 1862 को उनकी मौत हुई थी।
लगता नही है दिल मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में।
बुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिखी थी फसले बहार में।
कह दो उन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिले दाग़दार में।
एक शाख़ गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमान
काँटे बिछा दिए है दिले लाला ज़ार में।
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तेजार में।
दिन ज़िन्दगी के ख़त्म हुए, शाम हो गई ,
फैला के पाँव सोएँगे कुंज-ए-मज़ार में।
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूए -यार में।
अब सवाल उठता है कि देश की ख़ातिर क़ुर्बानी देने वालों को झूटलाया जा रहा है और अंग्रेज़ों की दलाली करने वालों को सराह जा रहा है शहरों स्टेशनों का नाम बदलों कोई दिक़्क़त नही इससे कुछ नही होता पर देश की एकता अखंडता को भी ध्यान में रखना होगा देश विकास के रास्ते पर चले हमारी सरहदें चारों ओर से दुश्मनों से महफ़ूज़ रहे आपस में प्यार मोहब्बत बनी रहे ऐसे मार्ग बनाने होगे सिर्फ़ नाम बदलने की मशीन बनने से काम नही चलेगा कि इस तरह के काम कर ध्यान भटकाने की नीति से काम नही चलेगा, नाम चाहे कुछ भी हो सवाल यह कि क्या वहाँ के लोगों के पास रोज़गार, सड़क , स्वास्थ्य परिवहन व अच्छी शिक्षा के साधन है, या नही इस पर ग़ौर करना चाहिए यह होगी ठोस नीति जिससे सबका साथ सबका विकास का सपना साकार होगा।