महागठबंधन हो या न हो कांग्रेस प्रदेश की ये पच्चीस सीटें जीतेगी?
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
जैसे-जैसे देश आम चुनाव 2019 की तरफ़ जा रहा है वैसे-वैसे ही राजनीतिक दलों व नेताओं में चुनावी बुखार का टेमप्रेचर बढ़ रहा जहाँ सियासी जानकार अपना आकलन करने में व्यस्त है वही सियासी लोग बहुत से गांधीवादी, समाजवादी लोहियावादी, जेपीवादी व हिंदुत्व वादियों में नरम-गरम मौक़ापरस्ती के नए समीकरण बनाने में लगे है वही मोदी की भाजपा इस पर मथता पच्ची करने में अपना टाइम व दिमाग़ लगा रही है कि किसी तरह विपक्ष का गेम न बने और हम एक बार फिर सत्ता का सुख भोग सके तो विपक्ष अपने इस मिशन में है कि साम्प्रदायिक ताकते किसी तरह देश की गद्दी से बेदख़ल हो इस पर काम और मेहनत कर रहा|
ख़ैर इस सियासी शह और मात के खेल में कौन किसको मात देता है और कौन नही यह तो बाद में पता चलेगा वही एक बात पर गहन चिन्तन मंथन हो रहा और वो है देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जहाँ से अस्सी लोकसभा सीटें आती है मोदी की भाजपा को दिल्ली के सिंहघासन पर पहुँचाने वाला यही राज्य है जहाँ से मोदी की भाजपा 80 में से 73 सीटें जीतने में कामयाब रही थी मोदी के रणनीतिकार यह गेम दोहराने की रणनीति बना रहे है अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि किस की रणनीति फ़ेल होती है और किस की पास| असल में 2019 के आम चुनाव का केन्द्र 2014 में भी उत्तर प्रदेश रहा था और इस बार भी उत्तर प्रदेश के ही रहने की उम्मीद है।उत्तर प्रदेश में विपक्ष महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा और मोदी की भाजपा महागठबंधन न हो इस कोशिश में लगी है अभी तो यही कहा जा सकता है कि महागठबंधन की रणनीति मायावती के द्वारा छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश व राजस्थान में अकेले चलो कि नीति से बनता नही दिख रहा है अब सवाल उठता है कि अगर मोदी की भाजपा महागठबंधन न होने वाली नीति में सरकारी तोते सीबीआई को ढाल बनाकर कामयाब हो जाती है और सब दल अलग-अलग चुनाव में जाते है तो फिर प्रदेश की चुनावी तस्वीर क्या होगी? क्या मोदी की भाजपा को लाभ होगा या विपक्ष को इस पर सियासी जानकार कहते है कि इस सूरत में सबसे अधिक अगर किसी को लाभ होगा तो वह कांग्रेस होगी क्योंकि मोदी की भाजपा से खिन्न वोटर सीधे तौर पर कांग्रेस के पास जाता दिख रहा और मुसलमान लामबद्ध तरीक़े से कांग्रेस के साथ जाएगा, इससे प्रदेश में लडाई मोदी की भाजपा व कांग्रेस की बीच हो जाएगी क्योंकि आज़ादी से पूर्व व बाद में भी दो विचारधारा की लडाई रही है, एक विचाधारा वो है जो आजादी लडाई में भी बाधक रही आजादी के मतवालों के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों की हिमायत में शपथ पत्र देती थी दूसरी विचारधारा अंग्रेज़ों से लोहा लेती थी | आज भी वही विचारधारा मुल्क की एकता और अखण्डता की लडाई लड़ रही है जिसका लाभ कांग्रेस को होगा|
बिना महागठबंधन के भी कांग्रेस उत्तर प्रदेश की कम से कम पच्चीस सीटें जीतती दिख रही है और सबसे अधिक अगर किसी को नुक़सान होता दिख रहा है तो वह सपा कंपनी व बसपा को लग रहा है सपा कंपनी मात्र एक सीट जीतने में कामयाब हो सकती है वह भी मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी और शिवपाल भी एक सीट जीतने की स्थिति में है व बसपा पाँच सीटों पर ज़ोर आज़माइश करती दिख रही है मुज़फ्फरनगर, अलीगढ़, मेरठ ग़ाज़ीपुर व अम्बेडकर नगर सीट है लेकिन इसमें एक ख़ास बात यह भी रहेगी कि बसपा ज़्यादातर सीटों पर नंबर दो रहने की स्थिति में रहेगी|
तो यही कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी से चौंकाने वाले नतीजे आएंगे।सपा-बसपा गठबंधन हुआ तो भी मोदी की भाजपा धूल चाटेगी और नही हुआ तो भी मोदी की भाजपा को नुकसान और कांग्रेस को फायदा होगा| कांग्रेस किसी से गठबंधन नही करती है तो भाजपा से नाराज़ ब्राह्मण और दूसरे अपर कॉस्ट के वोटर सीधे कांग्रेस में जा सकते है।इन परिस्थितियों में मुस्लिम वोट का झुकाव भी कांग्रेस के पक्ष में होगा।सभी 80 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी लड़ेंगे तो भाजपा के नाराज़ वोटर का भारी समर्थन मिलेगा।ऐसे में एक सीट पर कम से कम 25000 वोट भी अगर भाजपा से कटे तो कांग्रेस की लॉटरी लग सकती है।
अब हम बात करते है उत्तर प्रदेश की उन सीटों जहाँ कांग्रेस मोदी की भाजपा से सीधे चुनावी मुक़ाबला कर साम्प्रदायिक शक्तियों को हरा कर जीत सकती है उन में सबसे पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष व यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी की सीट रायबरेली जो कांग्रेस की परम्परागत सीट है दूसरी सीट गांधी परिवार की ही परम्परागत है अमेठी जिस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यह दो सीटें तो 2014 में चले मोदी के मैजिक से भी नही हार पायी थी जहाँ तक सीटों का सवाल है उनमें प्रतापगढ़ से प्रमोद तिवारी, मछलीशहर से छोटे लाल सोनकर, बाराबंकी से पी एल पुनिया, बाँदा से विवेक कुमार सिंह जो चार बार कांग्रेस से ही विधायक रहे है, झाँसी से पूर्व सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे प्रदीप जैन ,उन्नाव से पूर्व सांसद अन्नू टण्डन , कानपुर नगर से पूर्व सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे श्री प्रकाश जायसवाल , कानपुर देहात से राजाराम पाल ,धौरहरा सीट से पूर्व सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे कुं जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद ,पडरौना कुशीनगर सीट से पूर्व सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे कुँवर आर पी एन सिंह ,मुरादाबाद सीट से शायरी में अपनी अलग पहचान बना चुके इमरान प्रतापगढ़ी , फ़तेहपुर सीकरी से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर, इनका नाम लखनऊ से भी लिया जा रहा है, सहारनपुर सीट से अभी कोई नाम तय नही है क्योंकि वहाँ एक ऐसा नेता दावेदारी कर रहा है जिसकी छवि साम्प्रदायिक बन जाने की वजह से कांग्रेस उसे न लड़ाए ऐसी कांग्रेस के गलियारो में चर्चा है यह भी सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है अगर ग़ैर साम्प्रदायिक नेता को उतारा गया , और अगर उसी साम्प्रदायिक चेहरे पर भरोसा किया गया तो उसके आसपास की सीटों पर फ़र्क़ पड़ेगा जैसा गुजरात विधानसभा चुनाव में उसके मोदी की बोटी-बोटी वाले बयान का मोदी ने खुद इस्तेमाल किया था कि सहारनपुर का एक नेता मेरी बोटी-बोटी करने की बात करता है और यह कांग्रेस उसे बढ़ावा देती है| राजस्थान के विधानसभा चुनाव में उनके इस बयान इस्तेमाल किया था और कांग्रेस को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा था क्या कांग्रेस ऐसे किसी नेता को मैदान में उतारेगी? क्या कांग्रेस मोदी की भाजपा को ध्रुवीकरण करने का मौक़ा देगी? मथुरा सीट से विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे पूर्व विधायक प्रदीप माथुर ,मिर्ज़ापुर सीट से ललितेश पति त्रिपाठी ,महाराजगंज सीट से भोला पाण्डेय ,बेहद चौंकाने वाला नाम कांग्रेस की सूची में सुल्तानपुर सीट से होगा वर्तमान में इसी सीट से भाजपा से सांसद गांधी परिवार के ही चश्मेचिराग वरूण गांधी का होगा जिसकी आज कल मोदी की भाजपा में दाल नही गल रही है उसी का परिणाम है कि वरूण की घर वापसी होगी और सुल्तानपुर से चुनाव लड़ेंगे ,जालौन सीट पर भी कांग्रेस जीतने की स्थिति में है , बरेली सीट से पूर्व सांसद व केन्द्र में मंत्री रहे प्रवीण ऐरन , बहराइच सीट से कमांडो कमल किशोर , बलरामपुर सीट से पूर्व सांसद रिज़वान ज़हीर , शाहजहाँपुर सीट सुरिक्षत है यह सीट स्वं जितेन्द्र प्रसाद के दबदबे की मानी जाती है , आँवला सीट से पूर्व सांसद सलीम शेरवानी का नाम सम्भावित के तौर पर लिया जा रहा है हमारे सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान इन्हीं नामों पर गंभीर विचार विमर्श कर रहा सम्भत इनके ही नामो पर मोहर लगे यही वह सीटें है जहाँ कांग्रेस के जीतने के ज़्यादा चांस लग रहे है क्योंकि यहाँ दावेदार भी मज़बूत और भारी भरकम है इसी लिये राजनीतिक जानकार यह क़यास लगा रहे है कि महागठबंधन हो या न हो फ़ायदा कांग्रेस को होने जा रहा है।कांग्रेस के रणनीतिकारों ने अकेले चुनाव में जाने की तैयारी शुरू कर दी है करे भी क्यों न परिणाम जब अच्छे आने की उम्मीद हो।