लखनऊः वाद-विवाद प्रतियोगिता का जीवन में अपना महत्व है। वाद-विवाद से जहाँ एक ओर बुद्धि तीव्र होती है वहीं वक्तव्य देने की कला में निखार आता है। केवल किताबी कीड़ा न बने बल्कि विद्यार्थी वाद-विवाद प्रतियोगिता में भी भाग लें। वाद-विवाद स्पर्धा व्यक्तित्व विकास का अच्छा माध्यम है। राज्यपाल ने व्यक्तित्व विकास के चार मंत्र बताते हुये कहा कि सदैव मुस्कुराते रहें, दूसरों की सराहना करना सीखें, दूसरों की अवमानना न करें क्योंकि यह गति अवरोधक का कार्य करती हैं, अहंकार से दूर रहें तथा हर काम को अधिक अच्छा करने पर विचार करें। सूरज की तरह जगत वंदनीय होने के लिए निरन्तर आगे बढ़ते रहें। उन्होंने ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ को उद्धृत करते हुए कहा कि सफलता का मर्म निरन्तर आगे बढ़ने में है।

श्री नाईक ने छात्र-छात्राओं को राज्यपाल पद के दायित्व एवं कर्तव्यों के बारे में बताते हुये कहा कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोगों को अपने जीवन में पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। राज्यपाल ने बताया कि वे वर्ष 1978 से विधायक, सांसद, मंत्री तथा जनसेवा में रहते हुये निरन्तर अपना वार्षिक कार्यवृत्त जारी करते आ रहे हैं। पूर्व में अपनी रिपोर्ट ‘विधान सभा में राम नाईक’, ‘लोक सभा में राम नाईक’ तथा ‘लोक सेवा में राम नाईक’ के नाम से प्रकाशित करते थे। राज्यपाल रहते हुये लगातार चार वर्षों से वे हर साल ‘राजभवन में राम नाईक’ नामक कार्यवृत्त प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि आप अपने दायित्व का निर्वहन कैसे कर रहे हैं।

राज्यपाल ने कुलाधिपति के दायित्व की चर्चा करते हुये बताया कि गत वर्ष सभी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह समय से आयोजित किये गये तथा इस वर्ष 24 अगस्त से प्रारम्भ होकर अब तक 12 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह सम्पन्न हो चुके हैं। गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मात्र 84 दिवसों में सभी 26 दीक्षांत समारोह सम्पन्न हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि शिक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश का चित्र बदल रहा है। छात्राएं अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से महिला सशक्तीकरण का पर्याय बन रही हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि शिक्षा ग्रहण करना उनका धर्म है, इसलिये अपने छात्रधर्म का पालन करें।