नई दिल्ली: यदि दसॉल्‍ट एविएशन संग सौदेबाजी रोक कर वर्क-शेयर कॉन्‍ट्रैक्‍ट होता तो सावर्जनिक क्षेत्र की विमान निर्माता हिंदुस्‍तान एयरोनॉटिक्‍स लिमिटेड (HAL) भारत में ही राफेल लड़ाकू विमान बना सकती थी। यह कहना है हाल ही में HAL प्रमुख पद से रिटायर होने वाले टी सुवर्णा राजू का। उन्‍होंने पूछा था कि केंद्र सरकार फाइलें सावर्जनिक क्‍यों नहीं कर रही है। राजू ने माना कि HAL भले ही उसी ‘कॉस्‍ट-पर-पीस’ पर विमान नहीं बना पाती, मगर कंपनी उच्‍च गुणवत्‍ता के लड़ाकू विमान बनाने में सक्षम है। 1 सितंबर को रिटायर हुए राजू ने हिंदुस्‍तान टाइम्‍स से कहा, ”जब HAL 25 टन का सुखोई, चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान जिसे वायुसेना मुख्‍य रूप से इस्‍तेमाल करती है, बना सकती है तो हम क्‍या बात कर रहे हैं? हम जरूर ऐसा (राफेल विमान बना) कर लेते।” यह पहली बार है जब HAL से किसी ने सार्वजनिक रूप से सौदे पर टिप्‍पणी की है।

राजू ने कहा कि HAL पिछले 20 साल से मिराज-200 एअरक्राफ्ट की देखरेख कर रही है, जिसे राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्‍ट ने ही बनाया है। भारत में बनने वाले राफेल की कीमत ज्‍यादा होती, यह एक बड़ी वजह थी जिसके चलते यूपीए सरकार में सौदा पूरा नहीं हो पाया था। इस पर राजू ने कहा, ”हम राफेल भी बना लेते। मैं पांच साल तक तकनीकी टीम का प्रमुख था और सबकुछ ठीक था। आपको विमान की उम्र पर खर्च देखना है न कि हर पीस पर होने वाला खर्च। लंबे समय में भारतीय राफेल सस्‍ता ही पड़ता और यह स्‍वावलंबी होने की बात है। अगर फ्रांसीसी 100 घंटों में 100 विमान बना रहे हैं तो मैं 200 घंटे लूंगा पहली बार बनाने के लिए। मैं 80 घंटों में ऐसा नहीं कर सकता। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।”

राजू ने अनुसार, HAL एअरक्राफ्ट की गारंटी देने को भी तैयार होती। उन्‍होंने कहा, ”दसॉल्‍ट और HAL ने वर्क-शेयर कॉन्‍ट्रैक्‍ट साइन किया था और सरकार को दे दिया था। आप सरकार से क्‍यों नहीं कहते कि वह फाइलें सार्वजनिक करे? फाइल्‍स आपको सब कुछ बता देंगे। अगर मैंने विमान बनाता तो मैं उसकी गारंटी लेता।”

राफेल सौदे पर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने 18 सितंबर को कहा था कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार जेट सौदे में हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड(एचएएल) की उपेक्षा किए जाने के लिए जिम्मेदार है। सीतारमण ने कहा, “एचएएल के बारे में सारे आरोप जो हमपर मढ़े जा रहे हैं..इसके बारे में हमें नहीं, संप्रग को जवाब देना है कि क्यों दसॉल्ट और एचएएल के बीच समझौता नहीं हुआ। संप्रग सरकार एचएएल के ऑफर को मजबूत करने के लिए कुछ कर सकती थी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसकी शर्तें डसॉल्ट को आकर्षित करें। वे समझौता को पूरा करने के लिए शर्तो को आकर्षक बनाने के लिए सबकुछ कर सकते थे।”